35 साल इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में काम करने के बाद एक तरफ जहां बाकी के एक्टर्स लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड्स लेते हैं तो वहीँ अनुपम खेर (Anupam Kher) का कहना है कि अभी तो उनकी लाइफ का इंटरवल हुआ है| हाल में ही हिंदीरश के साथ खास बातचीत में अनुपम खेर ने अपनी आने वाली फिल्म, बायोग्राफी और पॉलिटिक्स के बारे में खुलकर बात की|
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में 35 साल पूरे करने पर बोले अनुपम खेर….
लोगों की धारणा ऐसी होती है कि 35 साल काम कर लिया, 515 फिल्में कर ली तो अब शायद ये रिटायरमेंट की तरफ बढ़ रहे हैं| लेकिन खुशकिस्मती से हम एक ऐसे प्रोफेशन में है जिसमें अगर आपका दिमाग और शरीर ठीक रहे तो आप 90 सालों तक काम कर सकते हैं| इसलिए मुझे लगता है कि मेरी ज़िन्दगी का इंटरवल हुआ है मेरे करियर का खासकर| तो 35 सालों तक काम करने के बाद ये थोड़ा सा विश्राम है लोगों से पूछ रहे हैं कि कैसा लगा फर्स्ट हाफ? अभी सेकेंड हाफ आना बाकी है| इन 35 सालों ने मुझे बहुत कुछ दिया है वरना एक छोटे से शहर का लड़का, फारेस्ट डिपार्मेंट के कलर्क का बेटा आज अपनी ज़िन्दगी के 35 साल पूरे कर चूका है और इतने सारे फिल्मों में भाग ले चूका है| उसके लिए मैं किस्मत का , मेहनत का और फिल्म इंडस्ट्री का मैं बहुत ही शुक्रगुज़ार हूँ| मैं कभी फेल होने से नहीं डरता हूँ, वो मुझे कभी किसी तूफ़ान जैसा नहीं लगता है| मेरे पिता जी ने कहा था कि असफलता सिर्फ एक घटना है कोई इंसान नहीं| मैं आशावादी हूँ| इसलिए मैंने इस दौरान अपनी ज़िन्दगी को बहुत एन्जॉय किया है| आगे भी उम्मीद है कि एन्जॉय करूँगा|
सवाल: वन डे फिल्म में आपका किरदार एक जज है जो रिटायर हो चूका है तो इसके बाद इस कहानी में वो क्या कर रहा है? कितना महत्वपूर्ण किरदार है?
अनुपम खेर : वन डे (One Day) हमारे लीगल सिस्टम पर एक बहुत बड़ी टिप्पणी है| जस्टिस त्यागी हैं जो रिटायर हुए हैं, कहानी वहाँ से शुरू होती है| मुझे हमेशा से लगता था कि जज के पीछे भी एक इंसान छिपा होता है| जज को कानून के दायरे में रहकर काम करना होता है| लेकिन उसके पीछे जो सामाजिक इंसान है वो क्या सोचता होगा कि इस केस में क्या होना चाहिए? यही कहानी है जस्टिस त्यागी की| जो वापस पीछे जाकर सोचते हैं कि उनके करियर में 4 ऐसे केसेस थे जिसमें उन्होंने गुनहगारों को कानून के दायरे में रहकर बेगुनाह साबित कर दिया था| वो उनको ढूंढते हैं और धीरे धीरे मारते हैं| और वो पकड़े ना जाएँ इसकी भी कोशिश करते हैं| वन डे एक ऐसी थ्रिलर फिल्म है जिसमें मुझे मौका मिला कि मैं इस किरदार को बिना नाटकीय बनाये निभा सकूँ क्योंकि ऑडिएंस बहुत ही समझदार हो गयी है| उनको इस तरह के एक्सपेरिमेंट अच्छे लगते हैं|
सवाल: हाल में ही आपने अमेरिकन सीरीज़ की शूटिंग की है, जल्द ही आपकी ऑटोबिओग्रफी आने वाली है..अब आगे की क्या प्लानिंग है? करियर में फिलहाल आपका फोकस क्या है?
अनुपम खेर : फोकस डिसाइड करने से नहीं होता है| मैंने जो अमेरिकन सीरीज़ की है उसका नाम है न्यू एम्स्टर्डम (New Amsterdam) ये एक मेडिकल ड्रामा है जिसमें मैं मिस्टर कपूर का किरदार कर रहा हूँ | इसके अलावा मैंने अपनी किताब लिखी है जो मेरी जीवनी (Lessons Life Taught Me Unknowingly) है| ज़िन्दगी को जीना बहुत जरुरी है| हर लम्हे को जीना बहुत जरुरी है| मैं हमेशा फोकस्ड रहता हूँ चाहें वो अभी आपसे बात कर रहा हूँ या खाना खा रहा हूँ
यहां देखिये ये इंटरव्यू…
सवाल: सनी देओल अब सांसद बन चुके हैं, आपने उनके साथ सलाखें, ज़िद्दी, ज़ोर जैसी कई फिल्में की हैं, क्या लगता है आपको जैसा उन्होंने ग़दर में पम्प उखाड़ा था राजनीती में भी उतना ही दम दिखा पाएंगे?
अनुपम खेर : फिल्मों की बात अलग होती है| इसमें जज़्बात राइटर लिखता है, डायरेक्टर उसको डायरेक्ट करता है कोई बैकग्राउंड म्युज़िक डालता है लेकिन सनी देओल (Sunny Deol) एक इंसान के तौर पर बहुत अच्छे हैं| उनके किरदार में दम है| उनकी पूरी जीवनी में उनके बहुत से फैंस हैं तो मुझे उम्मीद है कि वो एक सांसद के तौर पर बहुत अच्छा करेंगे|
सवाल: आप हमेशा ही देश के मुद्दों पर खुलकर बात करते हैं, राजनीती में जानें की कोई प्लानिंग?
अनुपम खेर : अभी तो नहीं है लेकिन जिस दिन होगा मैं उस दिन छत के ऊपर से खड़े होकर इसका एलान करूँगा| फिलहाल नहीं है, फिलहाल परिवार का एक सदस्य ही काफी है|
सवाल: कई सुपरहिट फिल्मों का रीमेक बनाई जा रही है…आपकी फिल्म जुड़वाँ को ही ले लीजिये..बॉलीवुड में रीमेक के चलन पर आप क्या कहेंगे?
अनुपम खेर : ये निर्भर करता है कि आप किस तरह की फिल्म का रीमेक बना रहे हैं| मुझे लगता है जुड़वाँ (Judwaa) है या कुली नंबर 1 (Coolie No. 1) इसकी पॉसिबिलिटी है क्योंकि ये बेसिक और एक एंटेरटेनिंग फिल्में हैं| लेकिन मुझे नहीं लगता है कि आप सारांश (Saransh) और खोसला का घोसला (Khosla Ka Ghosla) जैसी फिल्मों का रीमेक बना सकते हैं| लेकिन अपना अपना अंदाज़ है, ये निर्णय तो ऑडिएंस ही लेगी कि बनाना चाहिए था या नहीं|