किसी इंसान की पहचान उसके काम से होती है। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है जावेद अख्तर। इनका हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत बड़ा योगदान रहा है। जावेद अख्तर भारतीय कवि होने के साथ-साथ लिरिसिस्ट और स्क्रीनराइटर भी हैं। उन्होने अपने जीवन से जुड़ी कुछ बातें अपनी फेमस किताब तरकश में लिखी है।
वैसे ये कहाना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि जावेद अख्तर के खून में कविता लिखने का हुनर बसा हुआ है। यहां तक की एक्टर शाहरुख खान का मानना है कि “जावेद ने भारतीय सिनेमा में जो योगदान दिया है वो ऐसा करने वालों से कहीं ज्यादा है।’ जावेद अख्तर ने 1970 के दशक में जंजीर, दीवार, शोले और त्रिशूल जैसी सबसे शानदार फिल्मो में सलीम खान के साथ काम करके अपनी अलग पहचान बनाई थी, लेकिन वो फिल्म निर्देशक यश चोपड़ा थे जिन्होंने हमें गीतकार जावेद अख्तर जैसा टैलेंट दिया। उनकी फिल्मों में जावेद अख्तर ने जादू चलाने का काम किया है। जब वे राज्यसभा सदस्य के रूप में रिटायर्ड हुए तो उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ-साथ विपक्ष की सरकार को बेहतरीन तरीके से प्रभावित किया था। चलिए उनकेइस खास दिन पर जानते हैं उनसे जुड़े कुछ अनकहें फैक्ट्स।
– जावेद अख्तर का असली नाम जादू है, जो अपने पिता द्वारा लिखी गई एक कविता की एक लाइन में से लिया गया है। कविता की लाइन है “लम्हा लम्हा किसी जादू का फसाना होगा”। उन्हें जावेद के नाम से जाना जाता है क्योंकि वह जादू शब्द के सबसे करीब है।
– जावेद और उनकी पहली पत्नी हनी ईरानी जो कि फिल्म ‘सीता और गीता’ के सेट पर मिले थे, वह एक ही दिन 17 जनवरी को अपना जन्मदिन मानते हैं।
– जावेद अख्तर एक नास्तिक हैं और उन्होंने अपने बच्चों फरहान और जोया अख्तर को भी इसी तरह से पाला है।
– जावेद अख्तर उर्दू कवि कैकी आजमी को असिस्ट किया करते थे। बाद में उन्होंने हनी ईरानी से तलाक लेने के बाद कैफी की बेटी शबाना आजमी से शादी कर ली थी।
– जब जावेद अख्तर 1964 में मुंबई आए थे, तो उन्हें बिना खाने और रहने की जगह के चलते बेघर की जिंदगी बितानी पड़ी थी। उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में काम पाने के लिए संघर्ष किया था। वे जोगेश्वरी में कमाल अमरोही स्टूडियो में शरण लेने तक पेड़ों के नीचे या गलियारों में सोया करते थे।
– सलीम खान पहली बार ‘सरहदी लुटेरा’ फिल्म में काम करते हुए जावेद अख्तर से मिले थे, जहाँ सलीम एक एक्टर थे और जावेद एक क्लैपर बॉय। जावेद को बाद में फिल्म का संवाद-लेखक बना दिया गया था क्योंकि डायरेक्टर एसएम सागर को उस समय कोई और नहीं मिला था।
– एक स्क्रिप्ट -राइटर की जोड़ी के रूप में, सलीम ने कहानियों के बारे में सोचा और जावेद ने डायलॉग लिखने में उनकी मदद की। जावेद उर्दू में अपनी स्क्रिप्ट लिखते थे जो बाद में उनके सहायक द्वारा हिंदी में ट्रांसलेट की जाती थी।
– 70 के दशक में फिल्म के स्क्रिप्ट राइटर्स को फिल्म के पोस्टर पर क्रेडिट नहीं दिया जाता था। ऐसे में दोनों ने फैसला किया की हर वो फिल्म जिस पर दोनों ने साथ काम किया है उस पर वो अपना नाम जरुर देंगे।
– 1982 में जावेद और सलीम की जोड़ी एक ईगो की वजह से टूट गई। दोनों ने मिलकर 24 फिल्में लिखी थी, जिसमें से 20 हिट रहीं। इसमें दो तेलगू फिल्में भी थी- मनुशुलु चेसिना डोंगलु और युगांधर। साथ ही एक कन्नड फिल्म भी उनकी लिस्ट में शामिल थी – प्रेमदा कानिके।
– जावेद अख्तर ने चौदह बार फिल्मफेयर पुरस्कार जीता है – सर्वश्रेष्ठ स्क्रिप्ट के लिए सात बार और सर्वश्रेष्ठ गाने के लिए सात बार। उन्होंने पांच बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है। 2013 में, उन्हें उर्दू में, उनके कविता संग्रह ‘लावा’ के लिए भारत का दूसरा सर्वोच्च साहित्य सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
यहां देखिए जावेद अख्तर से जुड़ा हुआ वीडियो…
यहां देखिए जादेव अख्तर की तस्वीरें…