दीपवीर वेडिंग: अब एक ‘चुटकी सिंदूर’ की कीमत जान जाएंगे ‘रणवीर बाबू’…

दीपिका पादुकोण के सिंदूर की कीमत 'रणवीर बाबू' समझ गए हैं। आज 14 नवंबर को इसी एक चुटकी सिंदूर से वह अपना बना लिए हैं। इटली में शादी की रस्म पूरी हो गई है।

2007 में दीपिका पादुकोण और शाहरुख खान की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ का डायलॉग आज पूरी तरह हकीकत लगने लगा है। 11 साल बाद दीपिका पादुकोण के सिंदूर की कीमत ‘रणवीर बाबू’ समझ गए हैं। आज 14 नवंबर को इसी एक चुटकी सिंदूर से वह अपना बना लिए हैं। इटली के लेक कोमो विला में शादी के सात फेरे संपन्न हो गए हैं। बस एक पल और एक चुटकी सिंदूर के साथ ही रणवीर और दीपिका हमेशा के लिए एक-दूसरे के हो गए हैं। चलिए, हम आपको इस डायलॉग की एक-एक लाइन-शब्द और सिंदूर की परंपरा से लेकर महत्ता को बताते हैं। इटली के लेक कोमो के विला में जब रणवीर दीपिका की मांग भरने को बढ़ें होंगे तो बरबस ये लाइनें दीपिका और उनके गेस्ट के मन में उभर आईं होंगी।

“एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू…

ईश्वर का आशीर्वाद होता है, एक चुटकी सिंदूर…

सुहागन के सर का ताज होता है, एक चुटकी सिंदूर…

हर औरत का ख्वाब होता है. एक चुटकी सिंदूर…”

एक चुटकी सिंदूर की कीमत…
अगर आप भारतीय हिंदू हैं, साथ ही साथ विवाहित हैं तो फिर आपको सिंदूर का महत्व पता होगा। लेकिन इस एक चुटकी के पीछे बहुत गहरा संदेश है। शादी के दिन चाहे आप जितना गहना-कपड़ा लेकर जाएं लेकिन सिंदूर का एक अलग ही महत्व होता है। जैसे इस सिंदूर का एक चुटकी दुल्हन की मांग में दूल्हा भरता है वहीं से शादी पूरी मानी जाती है।

शादी के सिंदूर को ताउम्र बचाकर रखना होता है।बाद में उसी एक चुटकी वाले सिंदूर में बाकि सिंदूर को मिलाकर सारी उम्र लगाना होता है। पति की मृत्यु के बाद ही इस सिंदूर से नाता तोड़ा जाता है। इससे आस्था इस कदर जुड़ी है कि पहले के जमाने में दूल्हे की अनुपस्थिति में केवल सिन्होरा (सिंदूर रखने की विशेष वस्तु) के साथ ही लड़की की शादी कर दी जाती थी।

ईश्वर का आशीर्वाद…
ऐसा माना जाता है कि शादियां भगवान की मर्जी से होती है। फिल्मों में भी कहते हैं कि जोड़ियां तो रब बनाता है। लेकिन ये जोड़ियां शादी के बिना अधूरी रहती हैं। और सिंदूर के बिना शादी की कल्पना नहीं की जा सकती है। जिस तरह हम अपने भगवान या किसी पूजा सामाग्री को अपमानित नहीं करते हैं। ठीक उसी प्रकार से सिंदूर को सम्मान दिया जाता है। सिंदूर लगाने से लेकर इसके खरीदने तक का काम पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है। इतना ही नहीं कभी-कभार सिंदूर गिर जाता है तो उसको साफ पानी से पोछा जाता है। इतना ही नहीं पोछने के बाद क्षमा याचना भी मांगी जाती है। सुहागिन स्त्रियां सिंदूर को भगवान से भी ऊंचा दर्जा देती हैं।

सुहागन के सर का ताज…
चाहे कोई हिंदू रानी-महारानी, देवी, सीएम हो या डीएम या फिर गृहलक्ष्मी, हर विवाहित औरत पूरे शान के साथ सिंदूर को लगाती हैं। सिर सबसे ऊंचा ओहदा माना जाता है, इसी वजह से सिंदूर को वहां पर लगाया जाता है। तो इस प्रकार सर पर लगने वाला सिंदूर हर ताज से ऊंचा होता है। इस ताज के बिना हर औरत का श्रृंगार अधूरा होता है। इसलिए इसे सर का ताज माना जाता है। सिंदूर से बड़ा कोई गहना नहीं होता है। इतना ही नहीं सिंदूर के लिए तो औरते पूरी दुनिया से लड़ जाती हैं। ये ताज ही तो है। इसी ताज को आज दीपिका भी धारण कर ली हैं।

हर औरत का ख्वाब…
नर-नारी के बिना श्रृष्टि की कल्पना नहीं की जा सकती है। शादी के बिना नर-नारी विवाहित जीवन व्यतीत नहीं कर सकते हैं। अब एक बात तो हम समझ गए हैं कि चाहे आप कुछ भी बन जाएं शादी तो करनी है। लड़कियों को शादी के बाद घर छोड़ना पड़ता है। इस हिसाब से हर लड़की का यह सबसे बड़ा और प्यारा ख्वाब होता है कि उनको प्यार करने वाला पति मिले। इसके लिए वह कई सपनें बुनती हैं। ऐसा माना जाता है कि सिंदूर के बिना स्त्री अधूरी मानी जाती है। इस सिंदूर के मिलते ही लड़कियों का ख्वाब पूरा हो जाता है। यहां से वह पूरी तरह स्त्री बन जाती हैं।

सिंदूर के प्रति आस्था और मान्यता
शादी केलिए सिंदूर का महत्व बहुत होता है। अपने घर में देखिएगा मम्मी-दादी, दीदी या भाभी एक विशेष प्रकार का सिंदूर से भरा वस्तु रखी रहती हैं। बड़े ही आदर-सम्मान के साथ उसे सहेज कर रखती हैं। ये जो सिन्होरा होता है उसको लड़के वालों की तरफ से खरीदा जाता है। इसको खरीदते वक्त मोलभाव नहीं किया जाता है। बस पसंद कर के उस पर रूमाल रख दिया जाता है। इसके बाद दुकानदार कीमत बोलता है उसमें कुछ ज्यादा ही रुपया जोड़कर दे दिया जाता है। इसके बाद फिर उसे शादी के दिन दूल्हन को मिल जाता है। हिंदू समुदाय के लोग अपने-अपने क्षेत्रिय परंपरा के अनुसार पालन करते हैं।

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रवि गुप्ता :पत्रकार, परिंदा ही तो है. जैसे मैं जन्मजात बिहारी, लेकिन घाट-घाट ठिकाने बनाते रहता हूं. साहित्य-मनोरंजन के सागर में गोते लगाना, खबर लिखना दिली तमन्ना है जो अब मेरी रोजी रोटी है. राजनीति तो रग-रग में है.