फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ का ट्रेलर लॉन्च हो चुका है। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, आमिर खान, कैटरीना कैफ, फातिमा सना शेख ने अभिनय किया है। इसे विजय कृष्ण आचार्य ने निर्देशित किया है। इस फिल्म में ठगों का इतिहास दिखाया गया है। आमिर खान ने एक देसी ठग का रोल किया है। फिल्म में फिरंगी मल्लाह बने आमिर और आजाद बने अमिताभ बच्चन का आमना-सामना होता है।
ठगों का इतिहास बहुत ही खौफनाक है। उनकी क्रूरता की कहानी आज भी लोगों में सिहरन पैदा कर देती है। ऐसा ही एक ठग था बहराम। एक ऐसा कातिल जिसने एक पीले रूमाल और सिक्का से 900 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया। भारतीय इतिहास में खौफनाक सीरियल किलर के रूप में ठग बहराम पूरी दुनिया में कुख्यात है।
ठग बहराम का जन्म 1765 में मध्य भारत के जबलपुर में हुआ था। यदि आज के हिसाब से कहा जाए तो ठग बहराम का जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था। इन ठगों को पकड़ना किसी के बस की बात नहीं थी। हालांकि 75 साल की उम्र में बलराम को फांसी की सजा मिली। ठग बहराम को 1839-1840 के बीच में फांसी दी गई। दरअसल, फांसी देने को लेकर थोड़ी इतिहास की पुख्ता जानकारी ना होने के कारण फांसी का साल साफ तौर पर कहा नहीं जा सकता है।
और इ हैँ हम, फिरंगी मल्लाह.
हम से ज्यादा नेक इन्सान इस धरती पे कहीं नहीं मिलेगा आपको.
सच्चाई तो हमरा दूसरा नाम है, और भरोसा हमरा काम.
दादी कसम !!!https://t.co/GyIsrM2rNp#ThugsOfHindostan | @yrf | @TOHtheFilm | @SrBachchan | @fattysanashaikh | #KatrinaKaif— Aamir Khan (@aamir_khan) September 24, 2018
ठग बहराम और डॉली
उससे पहले इसको ठग बनाने वाले गुरु को भी पकड़ा गया था। इनको पकड़ने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। इतना ही नहीं बहराम के साथ एक महिला भी थी, जिसका नाम डॉली था। बाद में दोनों किसी कारणवश अलग हो गए। तत्कालीन सरकार में ठगों और डकैतों पर काम करने वाले जेम्स पैटोन ने लिखा है कि बहराम ठग ने वाकई में 931 लोगों को मौत के घाट उतारा था। उसने अपना जुर्म को कबूल किया था।
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इंग्लैंड सरकार भी हिल गई
इनके आतंक की कहानी इंग्लैंड तक गई और फिर इसके बाद गवर्नर-जनरल ने आर्मी जवान 1809 में कैप्टन स्लीमैन को भारत भेजा। कैप्टन स्लीमैन की जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि बहराम ठग का गिरोह इस काम को अंजाम देता है। इस गिरोह में करीब 200 सदस्य थे। स्लीमैन ने इनको पकड़ने के लिए दिल्ली से लेकर जबलपुर तक के हाईवे के किनारे के जंगल कटवा दिए। और गुप्तचरों का एक बडा जाल बिछाया।
गुरु बने बलराम के मौत का कारण
फिर भी कई साल तक कैप्टन को कुछ हाथ ना लगा तो उसने सीधे-साधे बहराम को खूंखार ठग बहराम बनाने वाले अमीर अली को पकड़ा। हालांकि अमीर अली को भी पकड़ने में नाकाम रहे कैप्टन स्लीमैन ने अमीर अली के मां और परिवार के अन्य लोगों को गिरफ्तार किया। इसके बाद परिवार को बचाने के लिए अमीर ने 1832 में सरेंडर किया।
बहराम को ऐसे मिली फांसी की सजा
जेल में अली को इतना प्रताड़ित किया गया कि उसने मजबूरन ठग बहराम के बारे में बता दिया। इसके साथ ही ठगों का सरदार बहराम भी 1838 में कैप्टन के हाथ लग गया। हालांकि इनके फांसी को लेकर यह भी कहा जाता है कि गिरफ्तारी के एक साल बाद बहराम को फांसी की सजा दे दी गई।
ऐसे देते थे घटनाओं को अंजाम
ऐसा कहा जाता है कि ये ठग एक विशेष भाषा में बात करते थे। ये किसीके पल्ले नहीं पड़ती थी। इस भाषा को समझने की ब्रिटिश गुप्तचरों ने बहुत कोशिश की लेकिन कुछ समझ में नहीं आया। ठग जिस खास भाषा में बातचीत करते थे, उसे ‘रामोसी’ कहते थे। रामोसी एक सांकेतिक भाषा थी।
गायब हो जाता था पूरा काफिला
ये ठग अचनाक गायब होने यानी कि सामने वाले को गुमराह करने में माहिर थे। व्यापारियों, पर्यटकों, सैनिकों और तीर्थयात्रियों का पूरा काफिला रहस्यमय तरीके से गायब हो जाता था। सबसे हैरानी की बात तो ये थी कि पुलिस को इन लगातार गायब हो रहे लोगों की लाश तक नहीं मिलती थी।
ऐसे करते थे अपना शिकार
अब आइए जानते हैं कि आखिर किस तरह ये लोग रुमाल और सिक्का से हत्या करते थे। काफिले के लोग जब सो जाते थे, तब ठग गीदड़ के रोने की आवाज में हमले का संकेत देते थे। इसके बाद गिरोह के साथ बहराम ठग वहां पहुंच जाता। अपने पीले रुमाल में सिक्का बांधकर तेजी से काफिले के लोगों का गला घोंटता जाता था। लोगों की लाश को कुआं आदि में दफन कर दिया जाता था।
ये थी ठग बहराम की कहानी जिसके आतंक ने पूरी दुनिया को सहमा दिया था।
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