HBD Lata Mangeshkar: स्वर कोकिला के सुरों का सफर और अधूरी प्रेम की दास्तान

सुर-संगीत की 'दीदी' लता मंगेश्कर आज 89 की हो गईं हैं, लेकिन उनकी जिंदगी में उतराव-चढ़ाव कम नहीं थे...

भारत रत्न स्वर कोकिला सुर-संगीत की रानी लता मंगेशकर आज 89 वां जन्मदिन मना रहीं हैं। लेकिन इनकी आवाज सुनकर उम्र का तकाजा नहीं लगाया जा सकता है। आज भी ऐसा ही लगता है कि ये वही लता मंगेशकर हैं जिन्होंने 1947 में पहला गाना (हिंदी) गाया था। 1947 में फिल्म ‘आपकी सेवा में’ पहला गाना गया लेकिन जैसे ही 1949 में ‘आएगा आने वाला…’ गाया तो लोगों के दिल में उतर गईं। यहां से इनकी आवाज को पहचान मिलने लगी। आज भी इनकी आवाज का कसक बरकरार है। हिंदी से पहले वह 1942 में मराठी फिल्म के लिए गा चुकीं थीं।

आज पूरा देश अपनी लोकप्रिय गायिका का जन्मदिन मना रहा है। इनकी लंबी आयु के लिए लोगों ने दुआएं दी हैं। इसके साथ ही इनके गाने भी खूब शेयर हो रहे हैं। लता मंगेशक एक तरफ ‘ए मेरे वतन के लोगों…’ से लोगों की आंखे नम करती हैं, देशभक्ति के लिए जान भर देती हैं तो वहीं ‘कांटा लगा…’, ‘तन डोले मेरा मन डोले…’ जैसे हजारों सदाबहार गाना गाकर मनोरंजन कराने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी हैं। इनके गाने और आवाज का जादू लोगों को दिवाना बना देता है। लेकिन इनके जीवन की दो अधूरी दास्तान है। पहली स्कूल छोड़ने की और दूसरी लव स्टोरी है। ये दो कहानियां लता मंगेशकर को और भी महान बना देती हैं।

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इसलिए छोड़ दिया स्कूल
स्वर कोकिला लता मंगेशक को यूं ही दीदी नहीं कहा जाता है। दरअसल, ये चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। एक बार जब ये अपनी बहन के साथ स्कूल गईं तो मास्टर ने कहा कि एक लड़की के फी में दो को नहीं पढ़ाया जा सकता। इसके बाद बड़ी बहन होने के नाते इन्होंने स्कूल छोड़ दिया। 5साल की उम्र में ही इतना बड़ा त्याग किया था। ये कहानी मशहूर गायिका और इनकी छोटी बहन आशा भौंसले ने एक टीवी प्रोग्राम के दौरान शेयर किया था। इसके अलावा फिल्म इंडस्ट्री में भी बड़ी बहन की तरह अपना फर्ज निभाती हैं जिसके कारण इन्हें ज्यादातर कलाकार इनको ‘दीदी’ ही बुलाते हैं।

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महाराजा को दिल दे बैठीं
एक उम्र में हर किसीको किसी ना किसीसे प्यार हो ही जाता है। ऐसे हीं गायिका लता मंगेशकर भी डूंगरपुर महाराजा राज सिंह को दिल दे बैठीं। लता मंगेशकर और राज सिंह की मुलाकात मुंबई में हुई थी। इसके बाद दोस्ती फिर रिश्ता प्यार तक बढ़ा। लता मंगेशकर शादी करना चाहतीं थीं लेकिन राजा ने अपने माता-पिता को वचन दिया था कि वह कभी आम घर की लड़की संग शादी नहीं करेंगे। इसलिए दोनों की शादी नहीं हो पाई और प्यार अधूरा रह गया। लता मंगेशकर के कुआंरा रहने के पीछे ये कहानी मीडिया में अक्सर चलती है। हालांकि लता मंगेशकर इसको लेकर कभी नहीं बोलीं हैं। लेकिन इनकी सादगी और त्याग के हम तो कायल हैं और हमेशा रहेंगे।

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रवि गुप्ता :पत्रकार, परिंदा ही तो है. जैसे मैं जन्मजात बिहारी, लेकिन घाट-घाट ठिकाने बनाते रहता हूं. साहित्य-मनोरंजन के सागर में गोते लगाना, खबर लिखना दिली तमन्ना है जो अब मेरी रोजी रोटी है. राजनीति तो रग-रग में है.