दुनियाभर के प्रेमी जोड़ों को कल यानी 14 फरवरी को मनाए जाने वाले प्यार के दिन ‘वेलेंटाइन डे’ का बेसब्री से इंतजार है। 7 फरवरी से वेलेंटाइन वीक की शुरूआत होती है और इस बीच प्यार के तमाम अहसासों और अलग-अलग तरह से मनाए जाने वाले खास दिनों से लेकर 14 फरवरी तक कपल्स प्यार के सभी रंगों को इन दिनों में अलग-अलग नामों के तौर पर मनाते हैं। प्यार की कहानी रुपहले पर्दे पर भी हमेशा से सुपरहिट रही है। वहीं कई दशकों से बॉलीवुड पर समाज को भटकाने के आरोप भी लगते आए हैं। प्यार के नाम पर लड़कियों का पीछा करने के ट्रेंड की शुरूआत का ठीकरा हिंदी फिल्मों के सिर ही फोड़ा जाता रहा है।
बॉलीवुड फिल्मों में खूबसूरत प्रेम कहानियां दिखाई जाती हैं तो इनमें लड़कियों को रिझाने का चलन भी दिखाया जाता रहा है। ‘डर’ फिल्म में जूही चावला को शाहरुख खान द्वारा अपने प्यार की शिद्दत बताना, ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ फिल्म में वरुण धवन का आलिया भट्ट को रिझाने की कोशिश करना और ‘टॉयलेट- एक प्रेम कथा’ फिल्म में अक्षय कुमार द्वारा भूमि पेडनेकर की इजाजत लिए बिना उनका पीछा कर और उनकी तस्वीरें लेना इसी मुद्दे का जीता-जागता उदाहरण रहा है।
‘समाज में महिलाओं का पीछा करने के चलन के लिए सिनेमा ही जिम्मेदार’
सामाजिक कार्यकर्ता रंजना कुमारी कहती हैं कि समाज में महिलाओं का पीछा करने के चलन के पीछे सिनेमा ही जिम्मेदार है। उन्होंने कहा, ‘फिल्ममेकर्स फिल्मों में दिखाते हैं कि शुरू में अगर कोई महिला इश्क का इजहार करने वाले को नहीं कहती है तो उसके नहीं को इंकार के तौर पर न लिया जाए। हकीकत में ये हां है। ये लंबे समय से रहा है। फिल्मों में लड़कियों का पीछा करने को रोमांटिक तरीके से दिखाया जाता रहा है। ये समाज में उस पुरुष प्रधानता को दिखलाता है जो हमेशा से रहा है। किसी भी तरह महिला को पुरुषों के आगे झुकना ही होगा। ये एक मिथक है जिसे इस संस्कृति को बनाकर बढ़ावा दिया जा रहा है। महिला अभी भी पुरुष की इच्छा पूर्ण करने की एक वस्तु ही है।’
स्वरा भास्कर ने कहा- ‘रांझणा’ में पुरुषों की इस आदत का महिमामंडन किया गया
धनुष, अभय देओल और सोनम कपूर की फिल्म ‘रांझणा’ में नजर आईं अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने यह कबूल करते हुए कहा कि आनंद एल. राय निर्देशित इस फिल्म में पुरुषों द्वारा महिलाओं का पीछा करने की आदत का महिमामंडन किया गया है। स्वरा ने करीना कपूर खान के रेडियो टॉक शो में कहा, ‘जब ये बात सामने आई तो लंबे समय तक मैंने इस पर विश्वास नहीं किया। जैसे-जैसे वक्त बीतता गया तो मुझे लगा कि शायद ये बात सच है।’ साइकोलोजिस्ट समीर पारिख कहते हैं कि किसी न किसी तरह लोगों पर फिल्मों का प्रभाव जरूर पड़ता है। जब आप किसी चीज को शानदार तरीके से प्रस्तुत होते हुए देखते हैं तो आपको वो काम करना सही लगता है। वह वास्तविकता के प्रति आपके नजरिए को बदल देता है।
साइकोलोजिस्ट समीर पारिख कहते हैं- प्यार में सब जायज नहीं है
पारिख आगे कहते हैं कि खासकर युवा वर्ग अपने रोल मॉडल को जो काम करते हुए देखता है वह भी वही करना शुरू कर देता है। समीर पारिख ने कहा, ‘इस मामले में लोगों को शिक्षित करना बहुत जरूरी है। युवाओं को सही सपोर्ट और मार्गदर्शन देना जरूरी है। प्यार में सब जायज नहीं है और इस नजरिए को महिलाओं का पीछा करने के संदर्भ में भी अपनाए जाने की विशेष जरूरत है।’
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