Holi In Mahakal Temple Ujjain: भगवान महाकाल प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी अपने भक्तों के साथ होली खेलेंगे। होली हो या अन्य कोई त्योहार सबसे पहले महाकाल के आंगन से ही त्योहारों की शुरुआत होने की परंपरा रही है। महाकाल मंदिर प्रांगण में एक दिन पहले होलीका का दहन किया जाता है और फिर शयन आरती और सुबह भस्म आरती के दौरान उपस्थित भक्तों पर रंग-गुलाल छिड़का जाता है। इस वर्ष भी इस परंपरा को भलीभांति चलाया जाएगा।
महाकाल उज्जैन के मंदिर में ये परंपरा वर्षों से चली आ रही है। भस्म आरती में महाकाल बाबा के दरबार में प्रतिदिन सुबह 4 बजे भस्म आरती होती है। इस विशेष आरती में भस्म के अलावा बाबा का श्रृंगार भी किया जाता है। भक्तों के लिए इस आरती का दर्शन करना बड़े सौभाग्य की बात होती है। इस आरती को लेकर पुजारी प्रदीप गुरु का कहना है कि इस एक आरती में जीवन से लेकर मरण तक का दृश्य उपस्थित होता है। बाबा महाकाल निराकार से साकार और फिर साकार से निराकार रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। वहीं होली के अवसर पर मंदिर में अलग ही दृश्य देखने को मिलता है। भक्तों की लंबी-लंबी लाइन देखने को मिलती हैं।
मंदिर में होली पर विशेष सजावट का आयोजन किया जाता है। यहां विशेष प्रकार के फूलों से रंग तैयार किया जाता है। जिससे भगवान भोलेनाथ और उनके भक्त होली खेलते हैं। मंदिर में भस्म आरती का प्रातः 4 बजे होने वाली भस्म आरती में होली के दिन अनूठा दृश्य देखने को मिलता है। बाबा महाकाल को रंग-गुलाल अर्पण किया जाता है। इसके बाद नंदी हॉल, पीछे बने बैरिकेड्स में बैठे भक्तों पर पिचकारियों से रंग गुलाल उड़ाया जाता है। बाबा महाकाल पर लगाया जाने वाला रंग टेसू के फूलों से तैयार किया जाता है। इन रंगों में किसी तरह का कोई कैमिकल नहीं मिलाया जाता है।
बता दें बाबा की नगरी उज्जैन में सबसे बड़ी होली कार्तिक चौक में काफी समय से जलाई जाती है। चौक पर लगभग 5 हजार कंडों की होली का दहन किया जाता है। इस होलिका में लकड़ी का प्रयोग नहीं किया जाता है। होली की विशेषता यहाँ है कि इसमें हरि भक्त प्रहलाद स्वरूप एक झंडा गाड़ा जाता है, जो होलिका दहन के बाद भी सुरक्षित रहता है। इस झंडे के टुकड़ों को लोग अपने घरों में सालभर संभालकर रखते हैं।