Maharishi Dayanand Saraswati Jayanti 2020:महर्षि दयानंद सरस्‍वती जयंती के अवसर पर यहाँ पढ़ें उनके उच्च विचार

आज हम आपके स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के अनमोल विचार बताने वाले है जिसकी वजह से आपकी जिंदगी में भी सुधार आसकता है:

Maharishi Dayanand Saraswati Jayanti 2020

Maharishi Dayanand Saraswati Jayanti 2020: 18 फरवरी को महार्षि दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) की जयंती है। महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक थे जिन्होंने भारत को जोड़ने का काम किया। उन्होंने अपने ज्ञान से लोगों को सही राह दिखाकर लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देश को इकठ्ठा किया और उनको इसके बारे में सचेत किया। आइये जानते है महार्षि दयानंद सरस्वती जयंती और उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें और उनके अनमोल विचार:

आज हम आपके स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के अनमोल विचार बताने वाले है जिसकी वजह से आपकी जिंदगी में भी सुधार आसकता है:

– यश और कीर्ति ऐसी विभूतियां हैं, जो मनुष्य को संसार के मायाजाल से निकलने में सबसे बड़े अवरोधक हैं। ~दयानन्द सरस्वती

– घमंड, मनुष्य की वो स्थिति या दशा है, जिसमें वह अपने मूल कर्तव्य से भटककर विनाश की ओर चला जाता है। ~दयानन्द सरस्वती

– ये शरीर नश्वर है, हमें इस शरीर के जरीए सिर्फ एक मौका मिला है, खुद को साबित करने का कि मनुष्यता और आत्मविवेक क्या है। ~दयानन्द सरस्वती

– क्रोध का भोजन विवेक है, अतः इससे बचके रहना चाहिए. विवेक नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है। ~दयानन्द सरस्वती

–अहंकार, मनुष्य के अन्दर वो स्थिति लाता है, जब वह आत्मबल और आत्मज्ञान को खो देता है। ~दयानन्द सरस्वती

– क्षमा करना सबके बस की बात नहीं, क्योंकि ये मनुष्य को बहुत बड़ा बना देता है।~दयानन्द सरस्वती

– ईष्या से मनुष्य को हमेशा दूर रहना चाहिए. क्योकि ये मनुष्य को अन्दर ही अन्दर जलाती है और पथ भ्रष्ट कर देती है। ~दयानन्द सरस्वती

– संस्कार ही मानव के आचरण की नींव है. जितने गहरे संस्कार होते हैं, उतना ही अडिग मनुष्य अपने कर्तव्य पर, धर्म पर, सत्य पर और न्याय पर चलता है।~दयानन्द सरस्वती

– मानव को अपने पल-पल को आत्मचिन्तन में लगाना चाहिए, क्‍योंकि हर क्षण हम परमेश्वर द्वारा दिया गया समय खो रहे हैं। ~दयानन्द सरस्वती

– जिसको परमात्मा और जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान, जो आलस्य को छोड़कर सदा उद्योगी, सुख-दुःख आदि का सहन, धर्म का नित्य सेवन करने वाला, जिसको कोई पदार्थ धर्म से छुड़ाकर अधर्म की ओर ना खींच सके, वह पंडित कहलाता है। ~दयानन्द सरस्वती

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