Rohini Vrat 2020: जैन धर्म में रोहिणी व्रत का बहुत ही अधिक महत्व है। पति की लंबी उम्र और घर में सुख शांति के लिए जैन धर्म की महिलाएं यह व्रत रखकर माता रोहिणी और भगवान वासुपूज्य का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
रोहिणी व्रत का पौराणिक कथा
रोहिणी व्रत के एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में चंपापुरी नामक नगर में एक राजा थे जिनका नाम माधवा था वह अपनी रानी लक्ष्मीपति के साथ राज करते थे। उनके 7 पुत्र और 1 रोहिणी नाम की पुत्री थी। एक बार राजा ने निमित्तज्ञानी से पूछा कि मेरी पुत्री का वर कौन होगा? तो उन्होंने कहा कि हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ तेरी पुत्री का विवाह होगा। यह सुनकर राजा ने स्वयंवर का आयोजन किया जिसमें कन्या रोहिणी ने राजकुमार अशोक के गले में वरमाला डाली और उन दोनों का विवाह हसी-खुशी संपन्न हुआ।
एक समय हस्तिनापुर नगर के वन में गुरु श्री चारण मुनिराज आए थे। तभी यह खबर राजा को मिलते ही, राजा अपने प्रियजनों के साथ उनके दर्शन के लिए गया और प्रणाम करके धर्मोपदेश को ग्रहण किया। इसके पश्चात राजा ने मुनिराज से पूछा कि मेरी रानी इतनी शांतचित्त क्यों रहती है?
तब गुरुवर ने कहा कि इसी नगर में वस्तुपाल नाम का राजा था और उसका धनमित्र नामक एक मित्र था। उस धनमित्र की दुर्गंधा कन्या उत्पन्न हुई। धनमित्र को हमेशा चिंता रहती थी कि इस कन्या से कौन विवाह करेगा? धनमित्र ने धन का लोभ देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण से उसका विवाह कर दिया, लेकिन अत्यंत दुर्गंध से पीडि़त होकर वह एक ही मास में उसे छोड़कर कहीं चला गया।
इसी समय अमृतसेन मुनिराज विहार करते हुए नगर में आए, तो धनमित्र अपनी पुत्री दुर्गंधा के साथ वंदना करने गया और मुनिराज से पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि गिरनार पर्वत के निकट एक नगर में राजा भूपाल राज्य करते थे। उनकी सिंधुमती नाम की रानी थी। एक दिन राजा, रानी सहित वनक्रीड़ा के लिए चले, सो मार्ग में मुनिराज को देखकर राजा ने रानी से घर जाकर मुनि के लिए भोजन बनाने के लिए कहा । राजा की आज्ञा से रानी भोजन तो बना दी थी, लेकिन ग़ुस्से से रानी ने मुनिराज को बहुत भला बुरा बोल दी थी। यह भोजन करते ही मुनिराज को भयानक सा दर्द शुरू हो गया था जिसके चलते मुनिराज ने थोड़े ही समय बाद दम तोड़ दिया था।
Jaya Ekadashi 2020 Date: जया एकादशी कब है? जानिए इसका महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
जब राजा को रानी की इस हरकत का पता चला, तो उन्होंने रानी को उसी समय नगर में बाहर निकाल दिया और इस पाप से रानी के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया था। अत्यधिक वेदना व दु:ख को भोगते हुए वो रौद्र भावों से मरकर नर्क में गई। वहां अनंत दु:खों को भोगने के बाद पशु योनि में उत्पन्न और फिर तेरे घर दुर्गंधा कन्या हुई।
यह पूर्ण वृत्तांत सुनकर धनमित्र ने पूछा- कोई व्रत-विधानादि धर्मकार्य बताइए जिससे कि यह पातक दूर हो। तब स्वामी ने कहा- सम्यग्दर्शन सहित रोहिणी व्रत पालन करो अर्थात प्रति मास में रोहिणी नामक नक्षत्र जिस दिन आए, उस दिन चारों प्रकार के भोजन का त्याग करें और श्री जिन चैत्यालय में जाकर धर्मध्यान सहित 16 प्रहर व्यतीत करें अर्थात सामायिक, स्वाध्याय, धर्मचर्चा, पूजा, अभिषेक आदि में समय बिताए और स्वशक्ति दान करें। इस प्रकार यह व्रत 5 वर्ष और 5 मास तक करें।
दुर्गंधा ने मुनिराज के कहने पर व्रत रखना शुरू कर दिया और आयु के अंत में संन्यास सहित मरण कर स्वर्ग में प्रथम देवी बन गई। वहां से आकर तेरी परमप्रिया रानी हुई। इसके बाद राजा अशोक ने अपने भविष्य के बारे में पूछा, तो स्वामी बोले- भील होते हुए तूने मुनिराज पर घोर उपसर्ग किया था, सो तू मरकर नरक गया और फिर अनेक कुयोनियों में भ्रमण करता हुआ एक वणिक के घर जन्म लिया, सो अत्यंत घृणित शरीर पाया, तब तूने मुनिराज के उपदेश से रोहिणी व्रत किया। फलस्वरूप स्वर्गों में उत्पन्न होते हुए यहां अशोक नामक राजा हुआ।
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा अशोक और रानी रोहिणी, रोहिणी ने व्रत के प्रभाव से सुख प्राप्त किया।
यहाँ देखे हिंदी रश का ताजा वीडियो: