रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्यौहार भाई बहन के पवित्र रिश्ते को दर्शाता है. रक्षाबंधन के इस पावन त्यौहार पर बहनें अपने भाइयों के हाथ पर राखी बांधती हैं रक्षाबंधन के की प्रचलित कथाओं के अनुसार इस त्यौहार पर बहन द्वारा भाई को बांधी गई राखी भाई के जीवन की रक्षा करती है. जितने भी वैदिक लेख अब तक मिले हैं उनमे यह स्पष्ट है कि भाई की कलाई पर राखी बांधकर बहन अपने भाई के जीवन की रक्षा. उन्नति और संपूर्ण विकास की प्राथना करती है और भाई से अपनी रक्षा. सहयोग और सदैव स्नेहा बनाए रखने का वचन लेती है. इसीलिए रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्यौहार बड़े ही श्रद्धा भाव और प्रेम भाव के साथ विधि विधान से मनाया जाता है.
इंद्र की पत्नी ने कि थी रक्षाबंधन की शुरुआत
रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) पर वैसे तो कोई स्पष्ट लेख और कथा नहीं है. लेकिन भविष्य पुराण के अनुसार रक्षाबंधन की शुरुआत स्वर्ग के देवता देवराज इंद्र की पत्नी ने कि थी. कहा गाया है कि जब देवासुर संग्राम हो रहा था उस समय देवराज की पत्नी ने इसी दिन देवराज इंद्र की विजय कामना करते हुए उन्हें अभिमंत्रित कर रक्षासूत्र बांधा (Raksha Bandhan) था. इस देवासुर संग्राम में यह रक्षा सूत्र कारगर साबीत हुआ कि देवराज इंद्र को विजय की प्राप्ति हुई.
कृष्ण ने रखी द्रौपदी के सूत की लाज
इसके अलावा रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) को मनाने की एक और कथा है- एक पूरानी कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का कर रहे थे, तो उस समय उनकी एक उंगली कट गई थी. जिसकी वजह से भगवान श्री कृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा और इसे देख कृष्ण की बहन द्रौपदी ने अपने आंचल का टुकड़ा फाड़कर भगवान श्री कृष्ण की उंगली में बांधा दिया था. उस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को एक वचन दिया और कहा कि- बहन तुम्हारे इस कपड़े में लगे एक-एक सूत का कर्ज़ उतार लूंगा. इसके बाद जब भगवान श्री कृष्ण ने जब द्रौपदी का चीर हरण होता देखा तो उन्होंने अपने इस वचन को पूरा किया और द्रौपदी की लाज बचाई
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