आज के समय की महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रही हैं. वे किसी भी क्षेत्र में आदमियों से कम नही हैं. एक ज़माना ऐसा भी था जब महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कमजोर समझा जाता था लेकिन अब ऐसा नही है. महिलाओं ने साल दर अपने लिए एक लंबी लड़ाई लड़कर समाज में समान अधिकार और समान इज़्ज़त प्राप्त की है. भारत में आज भी ऐसी बहुत सी जगह हैं जहां पर महिलाओं को पुरुषों से कम आंका जाता है और उन्हें सिर्फ चूल्हा चौका संभालने मात्र के काम के लिए ही बढ़ावा दिया जाता है.
लेकिन अब धीरे धीरे यह रूढ़िवादी सोच विलुप्त होती जा रही है. अब हमारे देश की बेटियां आगे बढ़ चढ़कर हर चीज में भाग ले रही हैं और देश का नाम ऊंचा कर रही हैं. आज हम आप सभी को हमारे भारत देश की ऐसी ही कुछ वीरांगनाओं के विषय में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने देश की महिलाओं को बढ़ावा दिया और उनके अधिकारों के लिए भी लड़ी, व हमारे देश भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गर्व से ऊंचा किया-
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1. पंडिता रमाबाई
पंडिता रमाबाई को देश की पहली फेमिनिस्ट कहा जाता है. पंडिता रमाबाई ने अपने पति की मृत्यु के कुछ साल बाद ‘आर्य महिला समाज’ की स्थापना की थी और वहां उन्होंने लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया था. उनकी यह संस्था बाल विवाह रोकने के लिए भी काम करती थी. 1878 में पंडिता रमाबाई भारत देश की पहली महिला बनी जिन्होंने शास्त्रों पर पुरुषों के अधिकार को चुनौती देने के लिए पांडित्य की पढ़ाई करके पंडिता पदवी हासिल की.
2. सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू भारत देश के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थी उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए खूब संघर्ष किया था. उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से मैट्रिक परीक्षा में टॉप किया था और वह महज 16 साल की उम्र में हायर एजुकेशन के लिए इंग्लैंड चली गई थी वह भारत की पहली महिला राज्यपाल भी बनी थी.
सरोजिनी नायडू 1914 में पहली बार महात्मा गांधी जी से मिली थी और तभी से वह देश के लिए मर मिटने को तैयार हो गई थी. उन्हें 1925 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था, और 1928 में सरोजिनी जी को केसर ए हिंद से सम्मानित किया गया था. उनके सम्मान में प्रतिवर्ष 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है.
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3. सावित्रीबाई फुले
सावित्रीबाई ज्योतिराव फूले जी को भारत की प्रथम महिला शिक्षिका कहा जाता है वह एक समाज सुधारक एवं मराठी कवित्री भी थी. सावित्रीबाई फूले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक भी थी. उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है. सावित्री बाई के जीवन का लक्ष्य विधवा लड़कियों का विवाह कराना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षा प्रदान करना था.
4. ताराबाई शिंदे
ताराबाई शिंदे एक नारीवादी कार्यकर्ता थी उन्होंने 1914 में भारत के पितृसत्ता और जाति का विरोध किया व मूल रूप से 1882 में उनकी मराठी में प्रकाशित स्त्री पुरुष तुलना पैम्फलेट के लिए जानी जाती थी. उन्होंने महिलाओं के समान अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी, और समाज में जागरुकता फैलाई थी.
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