Yogini Ekadashi 2020: 17 जून को है योगिनी एकादशी, यहां जानिए भगवान श्रीहरि विष्णु के पूजा की मान्यताएं

Yogini Ekadashi 2020: योगिनी एकादशी व्रतकथा पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में प्राप्त होती है। आषाढ़ मास की कृष्ण एकादशी को "योगनी" अथवा "शयनी" एकादशी कहते है। इस व्रतकथा के वक्ता श्रीकृष्ण एवं मार्कण्डेय हैं। श्रोता युधिष्ठिर एवं हेममाली हैं। जब युधिष्ठिर आषाढकृष्ण एकादशी का नाम एवं महत्त्व पूछते हैं, तब वासुदेव जी इस कथा को कहते हैं।

Yogini Ekadashi 2020

Yogini Ekadashi 2020: योगिनी एकादशी व्रतकथा पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में प्राप्त होती है। आषाढ़ मास की कृष्ण एकादशी को “योगनी” अथवा “शयनी” एकादशी कहते है। इस व्रतकथा के वक्ता श्रीकृष्ण एवं मार्कण्डेय हैं। श्रोता युधिष्ठिर एवं हेममाली हैं। जब युधिष्ठिर आषाढकृष्ण एकादशी का नाम एवं महत्त्व पूछते हैं, तब वासुदेव जी इस कथा को कहते हैं। हिंदी पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। इस बार योगिनी एकादशी 17 जून को मनाई जा रही है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य-प्रताप से व्रती को बुरे से बुरे पापकर्मों के पाश से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही भौतिक जीवन में सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। यहां जानिए व्रत की पूजा शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के बारे में:

इस बार योगिनी एकादशी पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः काल है। इसके बाद व्रती चौघड़िया तिथि देखकर पूजा आराधना कर सकते हैं। योगिनी एकादशी की तिथि 16 जून को ब्रह्म बेला में 5 बजकर 40 मिनट से शुरू होकर 17 जून को 7 बजकर 50 मिनट पर समाप्त होगी।

श्री हरि के साथ पीपल की पूजा 

पदम् पुराण के अनुसार योगिनी एकादशी समस्त पातकों का नाश करने वाली संसार सागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए सनातन नौका के सामान है। यह देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रूप ,गुण और यश देने वाली है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ पीपल के वृक्ष की पूजा का भी विधान है। साधक को इस दिन व्रती रहकर भगवान विष्णु की मूर्ति को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र ,चन्दन ,जनेऊ ,गंध, अक्षत ,पुष्प , धूप-दीप नैवेध,ताम्बूल आदि समर्पित करके आरती उतारनी चाहिए।

 

इस व्रत का फल 88 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के फल के समान है। इस एकादशी के सन्दर्भ में श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई थी जिसमें राजा कुबेर के श्राप से कोढ़ी  होकर हेममाली नामक यक्ष मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया,और योगिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। यक्ष ने ऋषि की बात मान  कर व्रत किया और  दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया।

योगिनी एकादशी व्रत महत्व

धार्मिक ग्रंथों में एकादशी की महत्ता को बताया गया है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अगहन माह में शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी को गीता उपदेश दिया है। अतः एकादशी पर्व का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्रती को हजारों ब्राह्मणों को भोजन कराने के समतुल्य फल की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही व्रती के सभी दुःख, दर्द, कष्ट और क्लेश दूर हो जाते हैं।

योगिनी एकादशी पूजा विधि

इस व्रत की शुरुआत दशमी तिथि से हो जाती है। इस दिन व्रती को लहसुन, प्याज और तामसी भोजन का परित्याग कर देना चाहिए। निशाकाल में भूमि पर शयन करना चाहिए। एकादशी को ब्रह्म बेला में उठकर सर्वप्रथम अपने आराध्य देव को स्मरण और प्रणाम करना चाहिए। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात, आमचन कर व्रत संकल्प लें। अब भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा, फल, फूल, दूध, दही, पंचामृत, कुमकुम, तांदुल, धूप-दीप आदि से करें। दिनभर उपवास रखें। व्रती चाहे तो दिन में एक फल और एक बार पानी ग्रहण कर सकते हैं। शाम में आरती-प्रार्थना के बाद फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।

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