बॉलीवुड में धाक जमाने वाले कलाकारों का राजनीति में ऐसा रहा हश्र, किसी को मिली फतेह तो कोई हुआ पस्त!

क्या राजनीति में बॉलीवुड स्टार्स की कोई कद्र नहीं होती? अगर होती है तो उन्हें किस हद तक प्रमोट किया जाता है? क्या इन सितारों का सिक्का भी बॉलीवुड की तरह राजनीति में चला? यहां हम इन सारे सवालों का जवाब तथ्यों के साथ बताएंगे।

राजीनीति में उतरने वाले बॉलीवुड स्टार। (फोटोः क्रिएटिव)

बॉलीवुड एक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर कांग्रेस में शामिल हुई हैं और नॉर्थ मुंबई से लोकसभा चुनाव 2019 की प्रत्याशी बनी हैं। वहीं, उर्मिला मातोंडकर से पहले बॉलीवुड एक्ट्रेस जया प्रदा ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ली और वह अपनी पूर्व पार्टी समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के खिलाफ उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से चुनाव लड़ने जा रही हैं। इन दोनों ही एक्ट्रेस का बॉलीवुड में अपने-अपने समय-समय में अलग रुतबा रहा है। लेकिन राजनीति में आने के बाद से ही उर्मिला मातोंडकर ट्रोल होने लगी हैं तो वहीं जया प्रदा अपनी पूर्व पार्टियों तेलुगु देशम और समाजवादी पार्टी में काफी कुछ अपमान सहना पड़ा है। उन्होंने स्वयं इस बात को सार्वजनिक तौर पर कहा है। क्या राजनीति में बॉलीवुड स्टार्स की कोई कद्र नहीं होती? अगर होती है तो उन्हें किस हद तक प्रमोट किया जाता है? क्या इन सितारों का सिक्का भी बॉलीवुड की तरह राजनीति में चला? यहां हम इन सारे सवालों का जवाब तथ्यों के साथ बताएंगे।

शत्रुघ्न सिन्हा


सबसे पहले हम बात करेंगे राजनीति में सक्रिय रहने वाले बॉलीवुड के सबसे पुराने खिलाड़ी शत्रुघ्न सिन्हा की। शत्रुघ्न सिन्हा ने हाल ही में कांग्रेस पार्टी का दामन थामा है और बिहार की पटनासाहिब सीट से उम्मीदवार भी बने हैं। वह भारतीय जनता पार्टी यानि अपनी पूर्व पार्टी के नेता और केंद्रीय कानून मंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। इससे आपको तो पता चल गया होगा कि शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा से लोकसभा सांसद रहे हैं।

आपको बता दें कि शत्रुघ्न सिन्हा ने साल 1992 में राजनीति में कदम रखा। 1922 के लोकसभा उपचुनाव के दौरान वह बॉलीवुड के आनंद राजेश खन्ना के खिलाफ नई दिल्ली सीट चुनाव लड़े और हार गए। वह 25000 वोटों से हारे। इसके बाद लोकसभा चुनाव 2009 में वह बिहार की पटनासाहिब से चुनाव लड़े और उन्होंने बॉलीवुड की एक सेलिब्रिटी शेखर सुमन को हरा को दिया। इसके बाद वह 2014 लोकसभा चुनाव में भी पटनासाहिब से चुनाव लड़े और जीते। इस जीत के बाद उनका कद और बढ़ गया। लेकिन पार्टी में उनकी बातों को नजरअंदाज करने की वजह से वह खुलकर पार्टी के खिलाफ बोलने लगे। जिसकी वजह से पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव 2019 के लिए टिकट नहीं दिया। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए।

राजनीतिक फतेहः शत्रुघ्न सिन्हा ने राजनीति में बॉलीवुड की तरह अपना राजनीति में अपना सिक्का चलाया है। तभी भाजपा के दामन छोड़ने के बाद भी उन्हें कांग्रेस से आसानी से टिकट मिल गया और अपनी मन मुताबिक सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।

परेश रावल


बॉलीवुड में शुरुआती दौर में विलेन और बाद में कॉमेडी का किरदार निभाने वाले एक्टर परेश रावल ने साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी से अहमदाबाद पूर्व से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इन्होंने 3 लाख से भी ज्यादा मतों के अंतर से कांग्रेस के उम्मीदवार को हराया। पार्टी में परेश रावल को काफी सम्मान मिला और संसद के सत्रों में भी इस दौरान काफी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। लेकिन साल 2017 में परेश रावल को ट्रोल हुए। जिसकी वजह से उनकी खाफी किरकिरी हुई। कांग्रेस के कई नेताओं और यहां तक एक्ट्रेस स्वरा भास्कर ने भी उनकी आलोचना की। दरअसल, परेश रावल ने 21 मई 2017 को एक ट्वीट किया था।, जिसमें उन्होंने लिखा कि पत्थरबाजों को आर्मी जीप से बांधने के बजाय अरुंधती रॉय को बांध दो। हालांकि इस लोकसभा चुनाव 2019 में उनका भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बनाया है। परेश रावल का कहना है कि फिल्म की शूटिंग में व्यस्त होने वाले हैं जिसकी वजह से चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं।

राजनीतिक हश्रः परेश रावल ने बॉलीवुड में लगभग हर किरदार निभाया। लेकिन राजनीति में वह नेता किरदार ढंग से नहीं निभा पाए। तभी तो 2014 के लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड  तोड़ जीत के बाद भी उन्हें इस बार पार्टी से टिकट नहीं दिया गया। हालांकि उन्होंने इस पर अपना पक्ष भी रखा है।

हेमा मालिनी

बॉलीवुड की बसंती हेमा मालिनी साल 1999 में राजनीति में एंट्री की। उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी और एक्टर विनोद खन्ना के लिए पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट से चुनाव प्रचार किया। फरवरी 2004 में उन्होंने आधिकारिक तौर पर भाजपा की सदस्यता ली। साल 2003 से 2009 तक भाजपा की और से राज्यसभा सांसद बनाया गया है। 2010 में वह भाजपा की महासचिव बनीं। साल 2014 में वह उत्तर प्रदेश की मथुरा लोकसभा सीट से जीत दर्ज की। पार्टी से हेमा मालिनी को सम्मान भी मिला और पद भी लेकिन वह कई बार सोशल मीडिया पर ट्रोल हुईं है। हाल ही में उनकी खेत में गेंहू काटने वाली एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल जिसकी वजह से उन्हें कई लोगों की आलोचना का सामना करना पड़ा। हालांकि इस बार भी वह मथुरा से भाजपा की प्रत्याशी बनीं हैं।

राजनीतिक फतेहः हेमा मालिनी से भाजपा से लगभग 15 साल से जुड़ी हुई हैं। फिल्म की पॉपुलेरिटी के अलावा एक नेता के तौर पर भी मथुरा की जनता उन्हें पसंद करती है। और भाजपा के बड़े पदाधिकारियों को उन पर भरोसा है, तभी तो उन्हें मथुरा से दोबारा प्रत्याशी बनाया है।

राज बब्बर


बॉलीवुड में अपनी धाक जमाने वाले बॉलीवुड एक्टर राजब्बर ने साल 1989 में जनता दल शामिल हुए। इसके बाद वह समाजवादी पार्टी में शामिल हुए। 1994 से 1999 तक राज्यसभा सांसद रहे। वह 2004 में दोबारा राज्यसभा सांसद बने। इसके बाद 2008 में उन्होंने कांग्रेस ज्वॉइन किया और 2009 में चौथी पर सांसद बने। उन्होंने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को हराया। लोकसभा 2014 में उन्होंने गाजियाबाद से चुनाव लड़ा और भाजपा के प्रत्याशी जनरल वी.के सिंह से हार गए। इसके बाद उन्हें उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाया गया।

राजनीति फतेहः राज बब्बर का फिल्मी करियर की तरह ही राजनीति में सिक्का चला। उन्होंने जनता दल, समाजवादी पार्टी के कांग्रेस में अपना एक मजबूत नेता का पक्ष रखा। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में अगर कांग्रेस की जीत होती तो वह राज्य प्रशासन के बड़े मंत्री होते।

गोविंदा


बॉलीवुड कॉमेडी के किंग और डांसर गोविंदा ने साल 2004 में कांग्रेस पार्टी से मुंबई लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। उन्होंने ट्रांसप्रोर्टेश, स्वास्थ्य और एजुकेशन के क्षेत्र में काम किया। उन्होंने अपने क्षेत्र में पीने की पानी का समस्या का समाधान किया। इतना ही नहीं उन्होंने कई आंगनवाड़ी केंद्रो का भी निर्माण करवाया। लेकिन संसद हाजिर नहीं रहने की वजह से उन्हें काफी आलोचना का शिकार होना पड़ा। साल 2007 में सलमान खान के साथ फिल्म पार्टनर के साथ उन्होंने बॉलीवुड में कमबैक किया। साल 2008 में राजनीति छोड़ने का फैसला किया और अपने पद से इस्तीफ दे दिया। इसका मतलब गोविंदा ने समाज के लिए काम तो किया लेकिन उन्हें राजनीति रास नहीं आई।

राजनीतिक हश्रः बॉलीवुड में सुपरस्टार गोविंदा का जलवा कभी कम नहीं हुआ। उन्होंने एक अपना अलग मुकाम स्थापित किया। लेकिन राजनीति में उनको रास नहीं आई और  तीन साल के भीतर ही राजनीति से सन्यास ले लिया। इसके बाद फिल्म करियर पर फोकस किया।

अमिताभ बच्चन


बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने साल 1984 में फिल्मों से ब्रेक लिया और अपने दोस्त राजीव गांधी (पूर्व प्रधानमंत्री) के समर्थन में प्रचार किया और इलाहाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और हेमवती नंदन बहुगुणा को भारी मतों से हराया। लेकिन उन्होंने तीन साल बाद ही इस्तीफा दे दिया। अमिताभ बच्चन और उनके भाई बोर्फोस घोटाले में आरोपी बनाए गए लेकिन दोषी नहीं पाया गया। उनके पुराने दोस्त अमर सिंह ने उनकी काफी मदद की। जिसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी का समर्थन करना शुरू कर दिया। अमर सिंह इसी पार्टी से ताल्लुक रखते थे। लेकिन इसके बाद उन्होंने कभी राजनीति में कदम नहीं रखा और इससे दूर रहे हैं। हालांकि उनकी पत्नी और एक्ट्रेस जया बच्चन समाजवादी पार्टी से ही सांसद बनी। इसके बाद जया बच्चन

राजनीतिक हश्रः बॉलीवुड में लगभग 4 दशक से भी ज्यादा राज करने वाले महानायक ने राजनीति में उत्तर प्रदेश के तत्कालिक मुख्यमंत्री को हेमवती नंदन बहुगुणा को हराया। लेकिन वह राजनीति में ज्यादा सफल  नहीं हो सके। उन्होंने मात्र तीन साल बाद ही इस्तीफा दे दिया।

जया बच्चन


अमिताभ बच्चन और अमर सिंह की दोस्ती की वजह से वह समाजवादी पार्टी की ओर से उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद बनीं। साल 2006 में वह दूसरी बार राज्यसभा सांसद, जिसका टर्म 2010 में खत्म हुआ। हालांकि इसके बाद भी समाजवादी पार्टी ने उनपर भरोसा जताया और तीसरी बार 2012 में और 2018 में चौथी बार अपने कोटे से राज्यसभा सांसद बनाया। लेकिन जया बच्चन को कभी संसद में उत्तर प्रदेश के रिप्रजेंट करते नहीं देखा गया। जिसके चलते वह विवादों में घिरी रही। कई बार समाजवादी पार्टी के लोगों ने भी उनको राज्यसभा सांसद बनाए जाने का विरोध किया। लेकिन पार्टी में अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव के आगे किसी की नहीं मानी गई।

राजनीतिक फतेह/हश्रः जया बच्चन ने बॉलीवुड में लोगों पर सीधे तौर पर प्रभाव डाला लेकिन राजनीति में कभी प्रत्यक्ष तौर पर नहीं चुनी गई। मतलब यह कि वह चौथी बार सांसद बनी हैं लेकिन राज्यसभा से। उन्हें समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के कोटे से राज्यसभा में भेजती है। ऐसा में उनका राजनीतिक करियर असफल हुआ है या फ्लॉप ये तो आप ही तय करिए।

जया प्रदा


एक्ट्रेस जया प्रदा का राजनीतिक करियर काफी बड़ा और अहम है। साल 194 में उन्होंने तेलुगु देशम पार्टी की सदस्यता ली और चंद्रबाबू नायडु के साथ पार्टी में काफी एक्टिव रहीं। पार्टी में 10 साल बिताने के बाद जया प्रदा ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हुई और आजम खान ने उन्हें रामपुर की लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया और वह जीत गईं। चुनाव जीतने के बाद उनके और आजम खान के बीच काफी विवाद हुआ जिसकी वजह से उन्होंने आजम खान के खिलाफ खुले आम बोलने लगी। साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान जया प्रदा ने चुनाव लड़ा तो आजम खान के समर्थकों ने अपनी पार्टी की प्रत्याशी (जया प्रदा) के खिलाफ प्रचार किया लेकिन वे चुनाव जीत गई।

जया प्रदा को पार्टी विरोध गतिविधियों के लिए समाजवादी पार्टी से बाहर निकाल दिया गया जिसके बाद साल 2011 में उन्होंने अमर सिंह के साछ मिलकर राष्ट्रीय लोकमंच का गठन किया। लेकिन पार्टी को अच्छा परफॉर्मेंस नहीं होने की वजह से उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल की सदस्यता ली और इसी पार्टी से 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन वह हार गई। अब लोकसभा चुनाव 2019 से पहले उन्होंने भाजपा ज्वॉइन की और आजम खान के खिलाफ रामपुर लोकसभा चुनाव सीट से लड़ रही हैं। कुल मिलाकर जया प्रदा का पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी अहम किरदार रहा है।

राजनीतिक फतेहः जया प्रदा ने का फिल्मी करियर से ज्यादा राजनीतिक करियर सफल रहा है। तभी तो अपनी पार्टी के कद्दावर नेता से पार्टी में रहते हुए भी टक्कर ली। वह चाहे तेलुगु देशम पार्टी में रही हो या समाजवादी पार्टी में उनका कद बढ़ा ही रहा। हाल ही में वह भाजपा में शामिल हुई है। उनकी मनचाही सीट से चुनाव लड़ना दिखाता है कि उनका व्यक्तित्व कितना महत्व रखता है।

राजेश खन्ना


बॉलीवुड के काका राजेश खन्ना ने 1984 के बाद राजनीति में कदम रखा और राजीव गांधी के लिए चुनाव प्रचार किया। इसके बाद राजेश खन्ना का 1991 में लोकसभा चुनाव नई दिल्ली से कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़ा और उस दौर के भाजपा के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी से मात्र 1589 से वोटों से हारे। इसके बाद इसी सीट पर अगले साल यानि 1992 में हुए उपचुनाव में राजेश खन्ना ने शत्रुघ्न सिन्हा को 25 हजार मतों से हराया। इसके बाद वह नई दिल्ली लोकसभा से 1996 तक सांसद रहे। इस दौरान उन्हों ने सिर्फ एक फिल्म को छोड़कर किसी भी फिल्म में कोई काम नहीं किया और न ही किसी अन्य प्रोजेक्ट में हाथ डाला। सांसद पद से हटने के बाद वह अपने अंतिम समय तक यानि 2012 तक कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार किया। कांग्रेस से राजेश खन्ना को काफी सम्मान मिला। राजेश खन्ना का स्टारडम बॉलीवुड के बाद भी राजीनीति बहुत कम समय तक रहा। इसलिए कहा जा सकता है कि राजनीति में उनका स्टारडम काम नहीं आया।

राजनीतिक हश्रः काका को बॉलीवु़ड में जो स्टारडम मिला वो राजनीति में नहीं मिल पाया। पहली बार वह लाल कृष्ण आडवाणी से हारे। दूसरी बार में उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा को हराया। लेकिन इसके बाद कभी जीत नहीं पाए और सिर्फ कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचारक का काम किया।

सुनील दत्त

बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन एक्टर्स में एक सुनील दत्त ने साल 1984 में कांग्रेस की सदस्यता ली और भाजपा के प्रत्याशी राम जेठमलानी को हराया। इसके बाद वह पांच बार मुंबई नॉर्थवेस्ट लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने। इतना ही नहीं सुनील दत्त इतने कद्दावर नेता थे कि शिवसेना और बाल ठाकरे भी उनके करीबी हो गए थे। इतना ही नहीं, जब संजय दत्त आर्म्स एक्ट मामले में फंसे तो बाल ठाकरे ने सुनील दत्त का काफी समर्थन किया। वह 1984 से 1996 तक लगतार सांसद रहे। इसके बाद वह साल 1999 में फिर सासंद बने। लोकसभा चुनाव 2004 में भी उन्होंने जीत दर्ज की। इसके बाद उन्हें केंद्र सरकार में जगह मिली। 2004 -2005 में केंद्रीय खेल एवं युवा मामले के मंत्री बनें। इसी मंत्रालय का पदभार संभालते हुए उनको हार्ट अटैक से निधन हो गया।

राजनीतिक फतेहः सुनील दत्त ने फिल्मी करियर में जितनी सफलता हासिल की, उतनी ही राजनीति में भी की। वह केंद्रीय मंत्री भी बने। उनका राजनीतिक व्यक्तित्व भी खास माना जाता है।

रमेश कुमार :जाकिर हुसैन कॉलेज (डीयू) से बीए (हॉनर्स) पॉलिटिकल साइंस में डिग्री लेने के बाद रामजस कॉलेज में दाखिला लिया और डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटकल साइंस में पढ़ाई की। इसके बाद आईआईएमसी दिल्ली।