दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की शादी (Deepika Padukone Ranveer Singh Wedding) 14 नवंबर को पूरी हुई। दीपवीर ने अपनी शादी की तस्वीरें आज सोशल मीडिया में शेयर की है। शेयर की गई तस्वीरें कोकंणी रस्म और सिंधी रस्म के दौरान की है। इसमें दोनों ही कपल बेहद ही खूबसूरत लग रहे हैं।
दक्षिण भारत के इस खास रस्म के अनुसार दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह ने साथ जीने-मरने की कसमें खाईं। चलिए आपको बताते हैं कि कोंकणी रस्म कैसे किया जाता है। इसकी आखिर क्या मान्यता है? इस रस्म में दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह का परिवार शामिल हुआ।
उडिडा मुहूर्त
कोंकणी रस्म की पहली विधि उडिडा मुहूर्त UDIDA MAHURAT होती है। इसको सीधे भाषा में कहें तो इसका मतलब चना से है। इस रस्म के अनुसार लड़का-लड़की के घर वाले वर-वधु को चना पीसना सीखाते हैं। इसके बाद इस पीसे हुए चने के आटा यानी के बेसन से इडली बनाई जाती है। दरअसल, इस रस्म के अनुसार वर-वधु को गृहस्थ जीवन का पाठ पढाया जाता है। आखिर शादी का मतलब गृहस्थ जिंदगी ही तो होती है।
घडे उद्दा
घडे उद्दा GHADE UDDA ये रस्म केवल दुल्हन के लिए होती है। इसमें दुल्हन कुएं से पानी भरती है। इसमें दुल्हन को 5 बाल्टी पानी भरना होता है। अधिकांस अब जहां से शादी होती है यदि वहां कुआं नहीं होता तो एक टब में पानी भर दिया जाता है। जिसे पांच बार एक लोटे से दुल्हन पानी निकालती है। इसी के चलते बाल्टी को सजा दिया जाता है। जब दुल्हन इस रस्म को पूरा कर लेती है तब दुल्हन को साड़ी बदलने के लिए कहा जाता है। जिसे बाद में नववारी साड़ी पहननी होती है।
काशी यात्रा
काशी यात्रा KASHI YATRA के इस शुभ मौके पर चने का उपयोग किया जाता है। इसके बाद अगली रस्म के अनुसार लड़का काशी यात्रा पर निकलता है। इसी बीच लड़की के पिता लड़के को रोकते हैं और शादी के गिफ्ट्स आदि देते हैं। फिर आगे का काम मंत्रोच्चारण के साथ किया जाता है। फिर इसके बाद वरमाला, सिंदूरदान आदि की प्रक्रियाएं होती है। फिर वर-वधु एक-दूसरे के हो जाते हैं। इसे अपना कर दीपिका-रणवीर ने 14 नवंबर को शादी की।
मनताप पूजा
मंनताप पूजा MANTAP POOJA के दौरान इस रस्म में दुल्हन नववारी साड़ी और ढेर सारे सोने के गहने पहने होती है। दुल्हन और उसकी मां पूजा करते हैं। इसके बाद दुल्हन की मां उसे एक काले मोती और सोने के दानों से बना एक माला पहनाती है। इसे दारेमानी कहते हैं। दारेमानी को परिवार में सभी विवाहिता महिलाओं द्वारा पहली बार आशीर्वाद दिया जाता है। इस रस्म के बाद दुल्हन को फिर से ड्रेसिंग रूम में भेजा जाता है।
वरमाला
वरमाल VARMALA की इस रश्म के बीच दूल्हे को कुछ और रस्मे कराई जाती है। फिर आखिरकार दुल्हें को दुल्हन के इंतजार के लिए छोड़ दिया जाता है। दुल्हन को उसके मामा स्टेज पर गोद पर उठाकर ले जाते हैं। इसके बाद दुल्हन और दुल्हे के बीच में एक पर्दा किया जाता है जिसे अन्तरपत कहा जाता है। फिर दुल्हे और दुल्हन को नीचे बैठा दिया है और दुल्हन पिता की मदद से दुल्हे को माला पहनाती है।
कन्यादान
कन्यादान KANYADAAN की इस रस्म में दुल्हन के पिता अपनी बेटी के हाथों को लड़के के हाथों में सौंपते है। इस दौरान दुल्हन की मां हाथों में दूध डालती है। मंत्र के साथ दुल्हन के पिता अपनी बेटी को वर के हवाले सौंप देते हैं।
कस्थली
कस्थली KASTHALI की इस रस्म में दुल्हा दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाता है। दुल्हें को सोने का एक मंगलसूत्र दिया जाता है। जिसे दुल्हा दुल्हन के गले में पहनाकर इस रस्म को पूरा करता है।
लाई होम
लाई होम LAYI HOMA की इस रस्म में दुल्हन की मां हवन सामग्री लाती है। इसमें इन दोनों को चार फेरे कराए जाते हैं। दो फेरे में दुल्हा आगे रहता है, दो फेरे में दुल्हन इस फेरे में दुल्हा दुल्हन के अंगूठे को पकड़ता है। इसमें दुल्हन के मामा के लिए सिलवर की पैर में पहनने वाली बिछिया ले कर आते हैं। इस दौरान दुल्हन के भाई और मामा दुल्हे को कपड़े उपहार के तौर पर देते हैं।
सप्तपदी
सप्तपदी SAPTAPADI के इस रस्म में दुल्हा-दुल्हन के बीच में चावल के सात ढेर रखे जाते हैं। मंत्रों के बीच में दुल्हन चावल के ढेरों पर कदम रखती हुई आगे बढ़ती है। ये रस्म सात प्रतिज्ञाओं का प्रतीक है। अब इस रस्म के बाद दुल्हा और दुल्हन सारे रस्मों को पूरा करते हैं।
होन्टी भोर्चे
होन्टी भोर्चे HONTI BHORCHE के इस रस्म में दुल्हन को कपड़े बदलकर शादी की साड़ी पहन लेते है। उसकी आधी चंद्र स्टाईल में लगी बिंदी को पूरा चांद बना दिया जाता है। जो उसके शादीशुदा होने का प्रतीक है। इसके बाद दुल्हन को उसकी सास नारियल, फूल-कुमकुम और ब्लाउज का कपड़ा देती हैं।
वर उभर्चे
वर उभर्चे VAR UBBARCHE के इस रस्म शादी की आखिरी रस्म होती है। दुल्हन के मामा और मामी, जोड़े को मंड़प से उठाकर ले जाते है। दुल्हन को जमीन पर बैठाया जाता है और दुल्हा उसके पल्लू पर एक सोने का सिक्का बांधता है। इस रस्म के बाद दुल्हा-दुल्हन दोपहर का भोजन करके दूल्हे के घर की ओर बढ़ जाते हैं।