दिवाली के एक या दो दिन पहले देशभर में धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है| इस प्रथा की शुरुआत कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन हुई थी जिस दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था तभी से इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है।
क्यों ख़रीदा जाता है बर्तन?
ऐसा कहा जाता है कि जब धन्वन्तरी प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था कलश एक बर्तन होता है जिसकी वजह से लोग बर्तन ही खरीदते हैं| इतना ही नहीं बल्कि धनतेरस के दिन बर्तन खरीदने की परम्परा है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि कई जगह की मान्यता के अनुसार इस दिन धन खरीदने से उसमें तेरह गुना बढ़ोतरी होती है|
चाँदी खरीदने की परम्परा
धनतेरस के दिन चांदी भी ख़रीदा जा सकता है| अगर चांदी नहीं तो बर्तन ख़रीदा जा सकता है| ऐसा माना जाता है कि चांदी शीतलता प्रदान करता है और ये चन्द्रमा का प्रतिक है|इससे जीवन में संतोष आता है|
गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति
दिवाली में हम गणेशा और लक्ष्मी की मूर्तियों की पूजा करते हैं जिन्हें धनतेरस के दिन खरीदने की प्रथा है|
जलाएं दिए
धनतेरस के दिन अपने घर के मुख्य द्वार और आंगन में दिए जलाये|
पूजा का मुहूर्त
धनतेरस पूजा समय- 1 9: 32 बजे से 20: 18 बजे तक
प्रदोष काल – 17:49 बजे से 20:18 बजे तक
वृषभ काल – 1 9: 32 बजे से 21:33 बजे तक
त्रयोदशी तिथी की शुरूआत 00:26 बजे 17 अक्टूबर, 2017 को शुरू होगी
त्रयोदशी तिथी 18 अक्टूबर, 2017 को सुबह 00:08 बजे समाप्त होगी
सूर्योदय के बाद शुरू होने वाले प्रसाद काल के दौरान लक्ष्मी पूजा की जानी चाहिए।