Gulzar Birthday: बॉलीवुड के प्रसिद्ध शायर गुलज़ार (Gulzar) का जन्म वर्तमान समय में पाकिस्तान में स्थित झेलम जिला पंजाब में 18 अगस्त 1936 को हुआ. उनका पूरा नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है. भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद गुलज़ार परिवार सहित अमृतसर चले आये और उसके बाद मुंबई. आज जन्मदिन के मौके पर गुलजार साब की कुछ शायरी देखते हैं.
गुलज़ार शायरी (Gulzar Shayari)
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की.
बहुत मुश्किल से करता हूँ तेरी यादों का कारोबार,
मुनाफा कम है लेकिन गुज़ारा हो ही जाता है.
महफ़िल में गले मिलकर वह धीरे से कह गए,
यह दुनिया की रस्म है, इसे मुहोब्बत मत समझ लेना.
वो चीज जिसे दिल कहते हैं,
हम भूल गए हैं रख कर कहीं.
तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं,
तेरे बिना ज़िन्दगी भी लेकिन ज़िन्दगी तो नहीं.
इतने लोगों में कह दो अपनी आँखों से,
इतना ऊँचा न ऐसे बोला करे, लोग मेरा नाम जान जाते हैं.
कोई पूछ रहा है मुझसे अब मेरी ज़िन्दगी की कीमत,
मुझे याद आ रहा है हल्का सा मुस्कुराना तुम्हारा.
ये इश्क़ मोहब्बत की रिवायत भी अजीब है
पाया नहीं है जिसको उसे खोना भी नहीं चाहते.
मोहब्बत ज़िन्दगी बदल देती है,
मिल जाए तब भी और ना मिले तब भी.
सुनो, ज़रा रास्ता तो बताना
मोहब्बत के सफ़र से वापसी है मेरी.
इश्क़ में जलते हुए साँस तेजबी लगे
राज़ खुलता ही नहीं कोई तो चाबी लगे.
उस उम्र से हमने तुमको चाहा है,
जिस उम्र में हम जिस्म से वाकिफ ना थे.
यूँ तो रौनकें गुलज़ार थी महफ़िल, उस रोज़ हसीं चहरों से
जाने कैसे उस पर्दानशी की मासूमियत पर हमारी धड़कने आ गई.
नज़र झुका के उठाई थी जैसे पहली बार,
फिर एक बार तो देखो मुझे उसी नज़र से.
मौसम का गुरुर तो देखो,
तुमसे मिल के आया हो जैसे.
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ,
किसी की आँख में हम को भी इंतज़ार दिखे.
सफल रिश्तों के बस यही उसूल है,
बातें भूलिए जो फिजूल है.
कुछ रिश्तों में मुनाफा नहीं होता,
लेकिन ज़िन्दगी को अमीर बना देते हैं.
रिश्तों की अहमियत समझा करो जनाब
इन्हे जताया नहीं निभाया जाता है.
धागे बड़े कमजोर चुन लेते हैं हम,
और फिर पूरी उम्र गांठ बांधने में ही निकल जाती है.
कुछ अधूरे से लग रहे हो आज,
लगता है किसी की कमी सी है.
तेरे जाने से कुछ बदला तो नहीं,
रात भी आई थी और चाँद भी, मगर नींद नहीं.
एक खूबसूरत सा रिश्ता खत्म हो गया
हम दोस्ती निभाते रहे और उसे इश्क़ हो गया.
दिल अगर है तो दर्द भी होगा,
इसका शायद कोई हल नहीं.
मिलता तो बहुत कुछ है इस ज़िन्दगी में,
बस हम गिनती उसी की करते है जो हासिल ना हो सका.
आइना देख कर तसल्ली हुई,
हम को इस घर में जानता है कोई.
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में,
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया.
बेतअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
ज़िंदगी क्या मौत भी अच्छी नहीं.
तन्हाई अच्छी लगती है
सवाल तो बहुत करती पर,
जवाब के लिए
ज़िद नहीं करती.
मैं चुप कराता हूं हर शब उमड़ती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है.
Best Ghazal of Gulzar
कोई अटका हुआ है पल शायद,
वक़्त में पड़ गया है बल शायद.
लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायद,
वो अकेले हैं आज-कल शायद.
दिल अगर है तो दर्द भी होगा,
इस का कोई नहीं है हल शायद.
जानते हैं सवाब-ए-रहम-ओ-करम,
उन से होता नहीं अमल शायद.
आ रही है जो चाप क़दमों की,
खिल रहे हैं कहीं कंवल शायद.
राख को भी कुरेद कर देखो,
अभी जलता हो कोई पल शायद.
चांद डूबे तो चांद ही निकले,
आप के पास होगा हल शायद.
ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर,
सैली सी ख़ामोशी में आवाज़ सुनी फ़रमाइश पर.
फ़ासले हैं भी और नहीं भी नापा तौला कुछ भी नहीं,
लोग ब-ज़िद रहते हैं फिर भी रिश्तों की पैमाइश पर.
मुँह मोड़ा और देखा कितनी दूर खड़े थे हम दोनों,
आप लड़े थे हम से बस इक करवट की गुंजाइश पर.
काग़ज़ का इक चाँद लगा कर रात अँधेरी खिड़की पर,
दिल में कितने ख़ुश थे अपनी फ़ुर्क़त की आराइश पर.
दिल का हुज्रा कितनी बार उजड़ा भी और बसाया भी,
सारी उम्र कहाँ ठहरा है कोई एक रिहाइश पर.
धूप और छाँव बाँट के तुम ने आँगन में दीवार चुनी,
क्या इतना आसान है ज़िंदा रहना इस आसाइश पर.
शायद तीन नुजूमी मेरी मौत पे आ कर पहुँचेंगे,
ऐसा ही इक बार हुआ था ईसा की पैदाइश पर.
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था,
आज की दास्ताँ हमारी है।
आज की रात यूँ थमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है।
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई।
जिस की आंखों में कटी थीं सदियां
उस ने सदियों की जुदाई दी है।
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