Gulzar Poem On Migrant Workers: दिल को छू लेने वाली गुलजार की कविता, ‘मरेंगे तो वहीं जाकर जहां जिंदगी है…’

कोरोना वायरस के वजह से लाखों मजदूरों को काम-काज बंद होने के वजह से भूके, प्यासे और गर्मी को चीरते हुए अपने गांव वापस लौटना पड़ रहा है। ऐसे लाखों मजदूरों की कहानी एक कविता के जरिये प्रसिद्ध लेखक गुलज़ार (Gulzar) बता रहे हैं।

कोरोना वायरस के वजह से लाखों मजदूरों को काम-काज बंद होने के वजह से भूके, प्यासे और गर्मी को चीरते हुए अपने गांव वापस लौटना पड़ रहा है। ऐसे लाखों मजदूरों की कहानी एक कविता के जरिये प्रसिद्ध लेखक गुलज़ार (Gulzar) बता रहे हैं। गुलज़ार की यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है।

गुलज़ार (Gulzar) की हर कविता दिल को छू लेती है और यह कविता भी प्रवासी मजदूरों के दर्द को बयां कर रही है। कविता के लफ्ज कुछ इस तरह है-

महामारी लगी थी

घ[रों को भाग लिए थे सभी मज़दूर, कारीगर.
मशीनें बंद होने लग गई थीं शहर की सारी
उन्हीं से हाथ पाओं चलते रहते थे
वगर्ना ज़िन्दगी तो गाँव ही में बो के आए थे.

वो एकड़ और दो एकड़ ज़मीं, और पांच एकड़
कटाई और बुआई सब वहीं तो थी

ज्वारी, धान, मक्की, बाजरे सब.
वो बँटवारे, चचेरे और ममेरे भाइयों से
फ़साद नाले पे, परनालों पे झगड़े
लठैत अपने, कभी उनके.

वो नानी, दादी और दादू के मुक़दमे.
सगाई, शादियाँ, खलियान,
सूखा, बाढ़, हर बार आसमाँ बरसे न बरसे.

मरेंगे तो वहीं जा कर जहां पर ज़िंदगी है.
यहाँ तो जिस्म ला कर प्लग लगाए थे !

निकालें प्लग सभी ने,
‘ चलो अब घर चलें ‘ – और चल दिये सब,
मरेंगे तो वहीं जा कर जहां पर ज़िंदगी है !

– गुलज़ार

यहां देखें गुलजार का वीडियो