नंबी नारायणन: USA का ऑफर ठुकराकर आए ISRO, गद्दार बताकर यूं दी गई यातना

नंबी नारायणन इसरो के संस्थापक वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई के एक कॉल पर देश चले आए। वह 24 साल की उम्र में उन्होंने विक्रम साराभाई से मुलाकात की थी।

50 दिन जेल की सजा काटी और बाकि उम्र कोर्ट कचहरी में बिती। 24 साल की उम्र में जो सपना लेकर आए थे। अब 76 साल के उसी वैज्ञानिक के जीवन की दर्दनाक दास्तान बन गई है। जिसे वह कभी भूल नहीं पाएंगे। रॉकेट्री मिशन की हर कामयाबी पर नंबी नारायणन का काला दिन हमें डरा कर चला जाएगा। कैसे एक सफल आदमी षड्यंत्र, कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पूरी जिंदगी तबाह कर देता है। कैसे एक सच्चा इंसान देशद्रोही बता दिया जाता है। नंबी नारायणन तो कभी सोचा ही नहीं होगा कि जिस देश के उत्थान के लिए अमेरिका को ठोकर मार के आए उसी देश में वह पाकिस्तानी करार दे दिए जाएंगे।

नंबी नारायणन इसरो के संस्थापक वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई के एक कॉल पर देश चले आए। इससे पहले वह 24 साल की उम्र में ही उन्होंने विक्रम साराभाई से मुलाकात की थी। वहां पर नंबी ने साराभाई का नाम पूछा था और उन्होंने हंस कर जवाब दिया था, ‘मेरा नाम विक्रम है’। इसके बाद नंबी की काबिलियत देखकर साराभाई उनके मुरीद बन गए। रॉकेट मिशन के लिए देश को शानदार वैज्ञानिक मिला लेकिन राजनीति के कारण सब गुड़ गोबर हो गया। कितनी आसानी से पुलिस-प्रशासन ने पाकिस्तानी एजेंट साबित कर दिया।

क्या यह इंसाफ है?

1994 में नंबी नारायणन के बुरे दिन शुरू हो गए। बिना किसी सबूत के केरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 50 दिन तक जेल में रखा। इतना ही नहीं उनके पूरे परिवार को हर पता नहीं क्या-क्या सहना पड़ा। जेल से निकलने के बाद वैज्ञानिक रॉकेट्री मिशन को भूल खुद को बेदाग साबित करने की लड़ाई लड़ने लगा। आखिरकार सच की जीत हुई। 1998 तक सबूत के अभाव में कुछ साबित ना हो पाया। 2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा ने सुनवाई करते हुए बाइज्जत बरी कर दिया। इसके साथ ही 75 लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया। लेकिन जो नुकसान देश और नंबी नारायणन को हुआ उसकी भरपाई कर पाना असंभव है।

इसरो से लेकर विवादों तक का सफर
-प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से 10 माह में ही मास्टर्स करने के बाद यूएस से ऑफर मिला।
-24 साल की उम्र में इसरो के संस्थापक वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई से मिले थे।
-वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई के कहने पर वह 1966 में इसरो आ गए।
-35 साल तक रॉकेट्री मिशन के लिए काम करते रहे।
-इसी बीच उनको क्रायोजनिक परियोजना का निदेशक बनाया गया। यही से शुरू हुई विवादों का सफर।
-इसी बीच नवंबर 1994 में पाकिस्तानी एजेंट करार देकर गिरफ्तार किया गया।
-1997 में सीबीआई को कोई सबूत हाथ नहीं लगा और केस खत्म किया।
-वह गिरफ्तार ना होते तो क्रायोजनिक परियोजना 15 साल पहले सफल हो जाती। हम ऑरबिट मिशन में और भी आगे होते।
-1998 में सीबीआई को कोई सबूत ना मिला।
-2018 तक वह बाइज्जत बरी करार दिए गए।
-किताब ‘रेडी टू फायर : हाउ इंडिया एंड आई सरवाइव्ड द इसरो स्पाई केस’ में नारायणन और पत्रकार अरुण राम इसरो जासूसी मामले को उजागर करते हैं।

नंबी नारायणन और उनका परिवार
-इनका पूरा नाम एस नंबी नारायणन है।
-सन् 1941 में नंबी नारायणन का जन्म केरल में हुआ।
-तिरुवंतपुरम में स्कूल, कॉलेज और इंजीनियरिंग के बाद न्यू जर्सी के प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से पढाई किए।
-इनती पत्नी का नाम मीरा नारायणन है।
-इनके दो बच्चे (एक बेटा और बेटी) हैं।
-संकारा कुमार नारायणन है जो कि बिजनेसमैन हैं।
-बेटी गीता अरूणन हैं जो बेंगलुरु में शिक्षक हैं।

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रवि गुप्ता :पत्रकार, परिंदा ही तो है. जैसे मैं जन्मजात बिहारी, लेकिन घाट-घाट ठिकाने बनाते रहता हूं. साहित्य-मनोरंजन के सागर में गोते लगाना, खबर लिखना दिली तमन्ना है जो अब मेरी रोजी रोटी है. राजनीति तो रग-रग में है.