Assembly Elections Result 2018: जानिए क्यों हुआ भारतीय जनता पार्टी का सूपड़ा साफ

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना के विधानसभा चुनावों के नतीजे बीजेपी के लिए चौंकाने वाले हैं। तीन बड़े हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी का कमल मुरझा चुका है और कांग्रेस का हाथ सत्ता पर काबिज होने की तैयारी कर रहा है। इन सबके बीच आइए जानते हैं कि आखिर क्यों हुआ भारतीय जनता पार्टी का सूपड़ा साफ?

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महंगी पड़ी ये गलतियां।

मंगलवार का पहला पहर शुरू हुआ, सुबह के 6 बजे और तमाम न्यूज चैनल चुनावी नतीजों की लाइव कवरेज दिखाने लगे। सुबह 8 बजे से पांच राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम) में वोटों की गिनती शुरू हुई और सभी दलों के नेताओं की धड़कनें तेज हो गईं। जैसे-जैसे रुझान आने शुरू हुए कमल का फूल मुरझाने लगा और हाथ लहराने लगा। दरअसल पांच राज्यों के चुनावी नतीजे आज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए मायूसी लेकर आए हैं। तीन बड़े हिंदी भाषी राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ बीजेपी के हाथ से अप्रत्याशित तौर पर खिसक चुके हैं और हाशिये पर खड़ी कांग्रेस एक बार फिर जिंदा हो उठी है और फ्रंट पर आकर खेलने के लिए तैयार हो चुकी है।

राजस्थान और छत्तीसगढ़ में साफ हो चुका है कि कांग्रेस यहां सरकार बनाने जा रही है। राजस्थान में ‘पांच साल तू तो पांच साल मैं’ वाला ट्रेंड इस बार भी सटीक साबित हुआ है जनता ने इस बार कांग्रेस के हाथ से हाथ मिला लिया है। वहीं छत्तीसगढ़ में पिछले 15 साल से सत्ता पर काबिज डॉक्टर रमन सिंह सत्ता विरोधी लहर का ठीक से आंकलन नहीं कर पाए और नतीजा अब सबके सामने है। कुछ अन्य अहम मुद्दे इन सभी बीजेपी शासित राज्यों पर हावी रहे, जिनका जिक्र हम नीचे करेंगे। मध्य प्रदेश में सीटों के समीकरण के उठापटक के बीच कांग्रेस मजबूत स्थिति में नजर आ रही है और यहां भी लगभग-लगभग साफ हो चुका है कि ‘शिवराज’ का राज अब खत्म होने जा रहा है।

प्रचंड बहुमत से फिर सरकार बनाएंगे KCR

तेलंगाना में कुछ एग्जिट पोल्स गलत साबित हुए और राज्य के कार्यकारी मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव फिर किंग बनकर उभरे। KCR प्रचंड बहुमत से राज्य में एक बार फिर सरकार बनाने जा रहे हैं। केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी ने इस राज्य से जितनी उम्मीदें लगा रखी थी वह सभी KCR की एकतरफा आंधी में कहां गईं, किसी को पता ही नहीं चला। तेलंगाना को पिछड़ा हुआ राज्य बताने वाले पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी की जीत के बाद हैदराबाद का नाम ‘भाग्यनगर’ रखने वाले सीएम योगी आदित्यनाथ की तमाम चुनावी रैलियां भी यहां बीजेपी की झोली में सम्मानजनक सीटें नहीं डाल पाईं।

मिजोरम में कांग्रेस को हुआ नुकसान

पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में कांग्रेस को जरूर नुकसान हुआ है। 40 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में क्षेत्रीय दल मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने 26 सीटें झटककर सभी दलों को झटका दे दिया। यहां 5 सीटों पर कांग्रेस, 1 सीट पर बीजेपी और 8 सीटों पर निर्दलीयों ने कब्जा जमाया। फिलहाल एक के बाद एक मिल रही हार के बाद बेदम होकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस को आखिरकार आज जीवनदान मिल ही गया। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के कांग्रेस दफ्तर और दिल्ली के 24 अकबर रोड पर जश्न का माहौल है। दूसरी ओर बीजेपी मुख्यालय और राज्य के दफ्तरों में सन्नाटा पसरा हुआ है। कुल मिलाकर तीन बड़े राज्यों में बीजेपी का सूपड़ा साफ होने के यह कारण सबसे अहम माने जा रहे हैं।

किसानों को समझने में फेल हुई वसुंधरा, शिवराज और रमन सरकार

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसानों में सरकारों के प्रति आक्रोश था। अपनी विभिन्न मांगों को लेकर किसानों के लगातार हो रहे प्रदर्शनों और दिल्ली कूच से अन्नदाता की नाराजगी अगर किसी को दिखाई नहीं दी तो वह है नरेंद्र मोदी सरकार। किसानों के गुस्से की भागीदार मोदी सरकार भी उतनी ही है जितनी कि तीनों राज्य सरकारें, लेकिन फिलहाल के लिए तो केंद्र के सिर अभी ठीकरा नहीं फोड़ा जाएगा क्योंकि चुनाव विधानसभा के थे और किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री ही सूबे का मुख्य ‘मंत्री’ होता है, यानी जीत भी उसकी और हार भी। तीनों राज्यों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कर्जमाफी वाला फैक्टर भी काम कर गया। किसानों को राहुल गांधी में अपना मसीहा दिखने लगा और राहुल के सत्ता में आने के बाद महज 10 दिनों में कर्जमाफी के वादे पर भरोसा कर किसानों ने चुनावी हवा का रुख ही मोड़ दिया।

SC-ST कानून पर मोदी सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा भारी?

इसी साल मार्च में महाराष्ट्र के एक मामले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट में कई अहम बदलाव किए थे। 2 अप्रैल, 2018 को कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित संगठनों ने ‘भारत बंद’ बुलाया था। दलित संगठनों के ‘भारत बंद’ के विरोध में सवर्ण वर्ग ने भी 10 अप्रैल को ‘भारत बंद’ बुलाया। दलित वर्ग की नाराजगी और प्रदर्शनों को देखते हुए मोदी सरकार इस मसले पर दलित वर्ग को खुश करने के लिए अध्यादेश ले आई लेकिन उसने ऐसा कर अपने वोट बैंक के बड़े हिस्से (सवर्ण वर्ग) को नाराज कर दिया। मोदी सरकार के फैसले को लेकर सवर्ण वर्ग से जुड़े संगठनों ने काफी प्रदर्शन किए लेकिन नतीजा बेनतीजा रहा। ऐसे में सरकार और सवर्णों की नाराजगी ने चुनावी नतीजों का रूप ले लिया और मोदी सरकार को इन तीन बड़े राज्यों में हार का सामना करना पड़ा।

बागियों ने भी बिगाड़ा भारतीय जनता पार्टी का खेल

बीजेपी के बागियों ने सबसे ज्यादा जिस राज्य को प्रभावित किया वह है राजस्थान। यहां इस हालात की सबसे बड़ी वजह मौजूदा 70 विधायकों का टिकट कटना रहा। सीएम वसुंधरा राजे कुछ विधायकों को मनाने में कामयाब रहीं तो कुछ विधायकों ने इसे प्रतिष्ठा का विषय बताते हुए चुनावी मैदान में निर्दलीय उतरने का ऐलान कर दिया। ऐसा नहीं है कि इस तरह की स्थिति कांग्रेस में देखने को नहीं मिली लेकिन नतीजों का निचोड़ निकालें तो कांग्रेस तो यहां फायदे में ही नजर आ रही है।

मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ में एंटी इनकंबेंसी, तो राजस्थान का अपना मिजाज

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उर्फ मामा और छत्तीसगढ़ के सीएम डॉक्टर रमन सिंह उर्फ चावल वाले बाबा, दोनों ही नेता अपने-अपने राज्यों में पिछले 15 साल से मुख्यमंत्री के पद पर काबिज हैं। जाहिर है जनता इस बार सत्ता परिवर्तन के मूड में थी और किसान, सवर्ण और कारोबारी वर्ग अपनी-अपनी राज्य सरकारों से नाराज थे। दरअसल 6 जून, 2017 को मंदसौर में हुए गोलीकांड में पांच किसानों की मौत हुई थी और एमपी के किसान इस घटना को हरगिज नहीं भूले थे। वहीं छत्तीसगढ़ में भी किसान बदहाली, कर्जमाफी की बात कहकर हुक्मरानों से गुहार लगा रहे थे लेकिन सत्ता में बैठे मठाधीशों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। नतीजतन दोनों ही राज्यों में अधिकतर ग्रामीण इलाकों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। शहरों में जरूर बीजेपी ठीक-ठाक सीट पाई है। वहीं राजस्थान में 5 साल में सत्ता का पाला बदलने का खेल इस बार भी दिखाई दिया है।

नोटबंदी और जीएसटी ने भी रोका बीजेपी की जीत का विजयरथ

‘हम रुटीन गर्वंमेंट चलाने के लिए सत्ता में नहीं आए हैं।’ यह कथन था वित्त मंत्री अरुण जेटली का। 8 नवंबर, 2016 की रात 8 बजे पीएम मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था। जिसके बाद वित्त मंत्री जेटली ने यह बयान दिया था। नोटबंदी के बारे में लोग कुछ समझ पाते कि उससे पहले एक पल के लिए देश में हाहाकार मच गया था। नोट बदलवाने, बैंकों से पैसा निकालने और एटीएम की लाइन में लगे कुछ लोगों की मौतें भी हुईं। सरकार के वित्त मंत्री अगर रुटीन गर्वंमेंट नहीं बल्कि कुछ अलग करने की बात कहते हैं तो मोदी सरकार की कुछ हटकर सरकार चलाने की नीत का नतीजा ही नोटबंदी था। नोटबंदी को विपक्ष ने आड़े हाथों लिया और इसे जनता के बीच बढ़-चढ़कर उठाया। रही-सही कसर गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) ने पूरी कर दी। जीएसटी लागू हुआ तो व्यापारी वर्ग मोदी सरकार से नाराज हो गया। कई राज्यों में जीएसटी रोल बैक की मांग को लेकर कई महीनों तक प्रदर्शन हुए। सरकार को व्यापारियों का खासा विरोध झेलना पड़ा। जीएसटी के मसले पर बनाया गया काउंसिल इसके टैक्स स्लैब में अब तक तीन बार संशोधन कर चुका है।

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राहुल सिंह :उत्तराखंड के छोटे से शहर हल्द्वानी से ताल्लुक रखता हूं। वैसे लिखने को बहुत कुछ है अपने बारे में, लेकिन यहां शब्दों की सीमा तय है। पत्रकारिता का छात्र रहा हूं। सीख रहा हूं और हमेशा सीखता रहूंगा।