#MeToo: फैशन इंडस्ट्री में महिलाओं का ही नहीं पुरुषों का भी होता है यौन शोषण

फिल्म में काम के लिए यौन संबंध बनाने के पहलू को दिखाया गया था। भारत के पुरुष मॉडलों का कहना है कि फैशन जगत में यह प्रचलित है...

फिल्मकार मधुर भंडारकर की फिल्म ‘फैशन’ ने फैशन जगत के काले सच से रूबरू कराया था। फिल्म में काम के लिए यौन संबंध बनाने के पहलू को दिखाया गया था। भारत के पुरुष मॉडलों का कहना है कि फैशन जगत में यह प्रचलित है। उभर रहे मॉडलों को तत्काल सफलता की ललक होती है और कई मामलों में काम पाने के लिए वे समझौता कर लेते हैं।

मॉडल कंवलजीत सिंह आनंद (Kanwaljeet Singh Anand) के डिजायनर विजय अरोरा पर यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) का आरोप लगाने के बाद मीटू अभियान (MeToo) के तहत पुरुष मॉडलों के भी यौन उत्पीड़न का शिकार होने लेकर बहस चल पड़ी है।

दक्षिण सिनेमा में अब लोकप्रिय अभिनेता कबीर दुहन सिंह (kabir duhan singh) का कहना है कि बिना अनुमति कोई किसी को नहीं छू सकता। कबीर जल्द ही बॉलीवुड में शुरुआत करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि शुरुआत में उन्हें लगभग एक साल तक काम नहीं मिला था क्योंकि वे डिजायनरों से उनकी जगहों पर मिलने-जुलने के लिए खुले नहीं थे।

कबीर ने मीडिया से फोन पर बताया, ‘मुझे लगता है कि यह हम पर निर्भर करता है कि दूसरों के सामने हम खुद को कैसे प्रदर्शित करते हैं। मैं मॉडलों को डिजायनरों के साथ शराब पीते और उनके साथ अंतरंग डांस करते देखता था। तो अगर आप उन्हें इतनी आजादी देते हैं तो वे इसका फायदा उठाएंगे और यही बॉलीवुड में होता है।’

उनका मानना है कि लोगों को एक सीमा बनानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मॉडलिंग उद्योग में नई पीढ़ी बहुत खुली हुई है और वे बहुत कम समय में सफलता पाना चाहते हैं।’

कबीर दुहन सिंह

फरीदाबाद में जन्मे और पले-बढ़े कबीर 2011 में मुंबई चले गए थे और मॉडलिंग करने लगे थे। उन्होंने तेलुगू फिल्म ‘जिल’ से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की जिसके कारण उन्हें कई सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलीं।

मॉडलिंग जगत के एक अन्य स्थापित नाम अमित रंजन अब ए.आर. नाम का एक प्रोडक्शन हाउस चलाते हैं जो फैशन कार्यक्रम आयोजित करती है। उनका कहना है कि उन्होंने जब 2007 में फैशन दुनिया में प्रवेश किया था, वे उससे पहले से फैशन उद्योग के कार्यकलाप के बारे में जानते थे।

अमित ने कहा, ‘मुझे लगता है कि फैशन जगत में पुरुष मॉडलों का शोषण बहुत होता है क्योंकि उन्हें महिला मॉडलों की अपेक्षा कम रुपये मिलते हैं। वे अपने डिजायनरों द्वारा तैयार किए जाते हैं। वे उस सिद्धांत पर काम करते हैं, ‘मैं आपका खयाल रखूंगा, आप मेरा खयाल रखें।’ इसलिए कोई किसी का नाम नहीं लेता क्योंकि यह आपसी सहमति से होता है।’ उन्होंने कहा कि ऐसे मॉडलों को लोकप्रियता के लिए मीटू अभियान का सहारा नहीं लेना चाहिए।

कविता सिंह :विवाह के लिए 36 गुण होते हैं, ऐसा फ़िल्मों में दिखाते हैं, पर लिखने के लिए 36 गुण भी कम हैं। पर लेखन के लिए थोड़े बहुत गुण तो है हीं। बाकी उम्र के साथ-साथ आ जायेंगे।