आज मुस्लिम समुदाय मुहर्रम मना रहा है। मुहर्रम के मौके पर देश भर में जगह-जगह ताजिया निकालकर पर्व मनाते दिखे। वैसे तो ये इस्लाम समुदाय के लिए शोक का पर्व है। इस दिन मुस्लिम तबका अपने हजरत इमाम हुसैन को याद करते हैं। इसके साथ ही या अली या हुसैन की गुहार के साथ ताजिया निकालकर गली-मुहल्ले में घूमते हैं।
शुक्रवार को मुहर्रम के 10वें दिन खासकर शिया मुसलमान ताजिया निकालकर शोक मनाए। इस दौरान अलग-अलग रंग के ताजिया और हाथों में लाठी-तलवार आदि लेकर करतब दिखाते भी देखे गए। इस दौरान देश के कई स्थानों पर कड़ी सुरक्षा की तैनाती कराई गई। हालांकि कहीं से भी किसी प्रकार की अशुभ घटनाओं की खबर नहीं मिली है।
मुहर्रम क्या है
मुहर्रम को कई जगहों पर ‘मोहर्रम’ भी कहा जाता है। मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम है। इसी महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है। इस महीने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है, इसी दिन को अंग्रेजी कैलेंडर में मुहर्रम कहा गया है। इस मौके पर सरकारी छुट्टी भी दी जाती है।
इसलिए मनाते हैं मुहर्रम
मुहर्रम मनाने को लेकर कहा जाता है कि आज ही के दिन बादशाह यजीद ने अपनी सत्ता कायम करने के लिए हजरत इमाम हुसैन के साथ उनके परिवार को मौत के घाट उतार दिया था। उनकी शहादत को याद करते हुए मुस्लिम ताजिया के साथ काले कपड़े पहन जुलूस निकालते हैं। कुल मिलाकर कहें तो मुसलमानों के लिए मुहर्रम का दिन शोक का दिन होता है। इस दौरान वे अपनी खुशियों को त्याग देते हैं।
जान लें कि इस घटना को 1400 से ज्यादा साल बीत चुके हैं। इस मौके पर आपने देखा होगा कि कई इस्लामिक देशों में मुस्लिम लोग खुद को लहूलुहान कर लेते हैं यानी कि अपने शरीर को जंजीर या सलाखों या बेल्ट से मारकर घायल करते हैं। इसके पीछे माना जाता है कि ऐसा करने से इमाम साहब खुश होंगे।