Natkhat Review: नटखट, नाम से पता चलता हैं यह फिल्म किसी छोटे बच्चे पर निर्भर है, जो बहुत ही नटखट (Natkhat) है। इस फिल्म में दिखाया गया हैं कि एक छोटा बच्चा कैसे गलत संगत में आकर बड़ी बड़ी गलतियां करने लगता है जिसका उसे एहसास भी नहीं होता। इस फिल्म की कहानी ऐसे ही नन्हा बच्चा सोनू की है जो एक गांव की स्कूल में पड़ता है। उस बच्चे के परिवार में दादा जी, दादी, मां (विद्या बालन), पिताजी और चाचा है। दादाजी और चाचा अहंकारी दिखाए है जो अपने गांव में जोर जबरदस्ती से काम करवाते है। सोनू के मां (Vidya Balan) गृहणी और संस्कारी बहु है, जो हमेशा घूंघट के पीछे रहती है और अपने परिवार का कहना मानती है।
अब बात सोनू की करें तो वह स्कूल जाट है और बुरा कुछ लड़कों में आकर कुछ ऐसी चींजे सिख लेता हैं जो उसे नहीं सीखना चाहिए। जैसे लड़कियों को बोलना का हक़ नहीं है जो बोले तो उन्हें सबक सिखाओ। ये बच्चे की गलत हरकत तक परिवार के ध्यान में आती जब सोनू (Sonu) अपने दादा, पिता और चाचा के सामने एक महिला को अगवा करने की बात कहता है। वह कहता हैं, ‘उठवा क्यों नहीं लेते’। यह सुन सोनू की मां (विद्या बालन) डर जाती है और समझ जाती हैं कि जरूर सोनू कुछ गलत कर रहा है।
बजाय उसे मारने और पीटने से विद्या उसे उसे कहानी की रूप में उसे समझाने की कोशिश करती है। धीरे-धीरे वह बच्चा समझ भी जाता है। और गलत संगत को छोड़ अच्छे बच्चों की तरह पढाई करने लगता है। यह कहानी दर्शाती हैं कि अगर बच्चा गलत रह पर है तो उसे मारो मत वरना वह और भी बिगड़ेगा और ज्यादा गलतियां करेगा। उसे समझाए जैसे की सोनू की मां ने किया और अब वह कैसे किया उसके लिए आपको फिल्म ‘नटखट’ देखना पड़ेगा।
यह फिल्म हर मां, टीचर और उन सभी को देखना चाहिए जो छोटे बच्चे की परवरिश कर रहे है।
नटखट (Natkhat) शान व्यास द्वारा निर्देशित है और विद्या बालन और रोनी स्क्रूवाला द्वारा निर्मित है। इस फिल्म की एसोसिएट निर्माता है सनाया ईरानी जोहरी है तथा अन्नुकंपा हर्ष और शान व्यास ने फ़िल्म का लेखन किया है।
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