बायोपिक्स के नाम रहेगा साल 2019, रिलीज होंगी 15 फिल्में, फिल्ममेकर्स को इस वजह से पसंद आ रही हैं ये कहानियां

साल 2019 में करीब 15 बायोपिक्स दर्शकों का मनोरंजन करेंगी। पीएम नरेंद्र मोदी और एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की बायोपिक भी इस साल रिलीज हो रही है। क्या आप जानते हैं कि बॉलीवुड को क्यों पसंद आ रही हैं असली कहानियां?

इस साल रिलीज होंगी एक दर्जन से ज्यादा दमदार बायोपिक्स। (फोटो- इंस्टाग्राम)

साल 2018 में हमने कई रियल हीरोज़ की कहानियों का बड़े पर्दे पर देखा और उनके जीवन को काल्पनिक दुनिया के माध्यम से महसूस किया। 2019 में 2018 के मुकाबले करीब दोगुनी बायोपिक्स रिलीज होंगी/हो चुकी हैं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर आधारित फिल्म ‘मणिकर्णिका’ और शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की बायोपिक ‘ठाकरे’ जनवरी में रिलीज हो चुकी है। दर्शकों ने दोनों ही फिल्मों को काफी सराहा।

इसी साल पीएम नरेंद्र मोदी की बायोपिक ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ बनाने का भी फैसला लिया गया। फिल्म बनकर तैयार हो चुकी है और 5 अप्रैल को रिलीज भी हो रही है, लेकिन इससे पहले यह फिल्म विवादों के साये में भी घिरी हुई है। विपक्षी पार्टियां लोकसभा चुनाव से पहले रिलीज होने जा रही इस फिल्म को प्रदर्शित होने से रोकने की मांग कर रही हैं। चुनाव आयोग में शिकायत दाखिल कराई जा चुकी है और इसपर अभी फैसला आना बाकी है।

‘छपाक’ में दीपिका पादुकोण का फर्स्ट लुक आउट

इस साल रिलीज होने जा रही एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित फिल्म ‘छपाक’ का फर्स्ट लुक आउट हो चुका है। तेजाब से जल चुके चेहरे के साथ दीपिका पादुकोण की पहली झलक लोगों में इस फिल्म को देखने, लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी को और करीब से जानने की उत्सुकता पैदा कर रही है। क्या आपने सोचा है कि पिछले कुछ समय से बॉलीवुड रियल कहानियों (बायोपिक) को दिखाने में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है।

बायोपिक मतलब दोनों तरफ का फायदा

इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जिनमें से कुछ मुख्य वजहों की बात की जाए तो पिछली कुछ बायोपिक्स जैसे ‘नीरजा’, ‘एमएस धोनी’, ‘भाग मिल्खा भाग’, ‘पान सिंह तोमर’, दंगल और भी तमाम असल कहानियां दर्शकों को काफी पसंद आई हैं। इन फिल्मों के जरिए फिल्ममेकर्स को दर्शकों की मानसिकता समझने का मौका मिला है और इसी का फायदा उठाते हुए मेकर्स उन छुपे हुए हीरो की कहानियों को सामने ला रहे हैं जो गुमनाम हैं या फिर कहीं ना कहीं देश उन्हें भुला चुका है। ऐसा करके फायदा दोनों ही तरफ हो रहा है।

‘वर्तमान में बायोपिक का दौर चल रहा है’

बॉलीवुड के जाने-माने फिल्ममेकर विक्रम भट्ट कहते हैं, ‘कुछ कहानियां हैं जिनके बारे में लोग नहीं जानते, लेकिन फिर भी वो उसे देखते हैं। मुझे फिल्में बनाते हुए 26-27 साल हो गए हैं और मैंने अपने इस सफर में जनता की पसंद और बायोपिक्स के कनेक्शन को काफी बेहतरी से महसूस किया है। अगर कोई बायोपिक चल जाती है तो मेकर्स और ज्यादा बायोपिक बनाने लगते हैं, अगर कोई कॉमेडी फिल्म चल जाए तो कॉमेडी फिल्में और एक्शन फिल्म चल जाए तो हमारे सामने बस एक्शन फिल्में ही होती हैं। वैसे ही अभी बायोपिक का दौर चल रहा है।’

‘समाज से असली हीरो गायब हो गए हैं’

भारतीय सैनिक और एथलीट रहे पान सिंह तोमर के बागी होने की कहानी पर फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया कहते हैं, ‘मुझे ऐसा लगता है कि सोसाइटी में इस समय असली हीरो की कमी होते जा रही है और इसी वजह से फिल्ममेकर्स अतीत के हीरोज़ की कहानियों को बड़े पर्दे पर दिखा रहे हैं। मौजूदा पीढ़ी में असली हीरो, असली प्रेरणा की कमी है। वो गायब हो गए हैं।’ तिग्मांशु इस समय 2-3 बायोपिक्स के आइडिया पर काम कर रहे हैं। वह कहते हैं, ‘अगर मैं अभी आपको अपनी फिल्मों के नाम बता दूंगा तो लोग (फिल्ममेकर्स) उस पर कूद पड़ेंगे। वक्त आने पर सब पता चल जाएगा।’

फिल्म की कहानी उसकी जान होती है

किसी भी फिल्म के लिए उसकी स्टोरी सबसे अहम होती है। यही वह वजह होती है जिसकी वजह से फिल्में सुपरहिट होती हैं या फ्लॉप होती हैं और फिल्ममेकर के हाथ में अगर स्टोरी हो तो उसका आधा काम तो वैसे ही हो जाता है। यह तब और बेहतर हो जाता है जब कोई रियल स्टोरी फिल्ममेकर के पास हो। लोगों को उन हीरो के बारे में पता होता है, उनकी कहानियों के बारे में पता होता है और ऐसे में बायोपिक्स के रूप में यह सफल होने की गारंटी बन जाता है। इस दौर में यह भी एक वजह है कि मेकर्स उन असल कहानियों को दोबारा दिखाकर उन हीरो को दर्शकों के जेहन में जिंदा रखते हैं और खुद भी मुनाफा कमाते हैं।

खिलाड़ियों-राजनेताओं की बायोपिक का मिलता है फायदा

अगर बायोपिक किसी खिलाड़ी या राजनेता की हो तो फिल्ममेकर को उसका ज्यादा फायदा मिलता है, क्योंकि कथित शख्स का अपना फैन बेस होता है और हर फैन चाहता है कि वह अपने हीरो की कहानी को 70 एमएम के पर्दे पर देखे। ‘एमएस धोनी’, ‘भाग मिल्खा भाग’, ‘मैरीकॉम’ और ‘ठाकरे’ फिल्म इसके उदाहरण हैं। किसी भी बायोपिक में असल किरदारों को जीने वाले कलाकारों की सनक भी इस कड़ी का अहम हिस्सा होती है। उदाहरण के तौर पर ‘पद्मावत’ के अलाउद्दीन खिलजी को ही ले लेते हैं। रणवीर सिंह ने इस रोल के लिए जी-तोड़ मेहनत की, जिसका नतीजा सबके सामने है।

रणवीर सिंह को लोग बुलाने लगे थे ‘खिलजी’

वह अपने इस नेगेटिव किरदार में इतना खो गए कि पूरी फिल्म में छाए रहे। इतना ही नहीं, मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक उन्हें ‘खिलजी’ कहकर बुलाया जाने लगा। ठीक इसी तरह ‘दंगल’ फिल्म में आमिर खान ने पहलवान महावीर सिंह फोगाट की कहानी और किरदार को खुद के भीतर इस कदर समाया कि फिल्म में उनके अभिनय की देश और दुनियाभर में जमकर तारीफ हुई। फिलहाल मराठा साम्राज्य के सेनापति तानाजी मालसुरे के जीवन पर बन रही फिल्म ‘तानाजी’ में अजय देवगन, बिहार के जाने-माने शिक्षक आनंद कुमार पर बनी फिल्म ‘सुपर 30′, कपिल देव की बायोपिक ’83’ में रणवीर सिंह और ओशो की बायोपिक में आमिर खान के परफेक्शन को देखने का उनके फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

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राहुल सिंह :उत्तराखंड के छोटे से शहर हल्द्वानी से ताल्लुक रखता हूं। वैसे लिखने को बहुत कुछ है अपने बारे में, लेकिन यहां शब्दों की सीमा तय है। पत्रकारिता का छात्र रहा हूं। सीख रहा हूं और हमेशा सीखता रहूंगा।