पुरानी बातें और पुरानी यादें मानो कोई सुनहरे पल होते हैं, जिन्हें आप जब भी दोहराते हैं तो वक़्त रुक जाता है और आप इसे फिर से जीने लगते हैं। यूँ ही नहीं लोग कहते हैं कि ओल्ड इज़ गोल्ड! और अगर आप बॉलीवुड प्रेमी हैं तो आपको ओल्ड इस गोल्ड का असली मतलब पता होगा, तो आइये ऐसी ही ओल्डी गोल्डी पलों में से एक पल को ताज़ा किया जाए! बात है तबकी जब एक बार धर्मेन्द्र ने नशे में धुत्त होकर मशहूर फ़िल्ममेकर ऋषिकेश मुख़र्जी को कॉल किया और पूरी रात जगा कर रखा।
जी हां, आपके अपने धरम पाजी ने ये किया है। बता दें कि ये बात है 1971 की जब ऋषिकेश यानि ऋषि दा सुपरहिट फ़िल्म आनंद बनाने की सोच रहे थे। आनंद फ़िल्म को क्रिटिक्स और जनता ने बहुत पसंद किया था और आज भी आनंद हिंदी सिनेमा की बेस्ट फ़िल्मों में से एक हैं। बैंगलोर से मुंबई की हवाई यात्रा में ऋषि दा ने इस फ़िल्म की कहानी धर्मेन्द्र को सुनाई। कहानी सुनाने के बाद वो धर्मेन्द्र से कहने लगे कि हम इस फ़िल्म के लिए ये करेंगे…वो करेंगे! पर ऋषि दा की ये बातें उनकी यात्रा की तरह हवा में ही रही।
कुछ दिनों बाद समाचार आया कि ऋषि दा ने इस फ़िल्म में राजेश खन्ना को लिया है। फिर क्या, हमेशा की तरह धर्मेन्द्र ने शराब पी और शराब पीने के बाद अपनी आदत के अनुसार ऋषि दा को कॉल किया! देर रात धर्मेन्द्र का कॉल आया ऋषि दा के लिए भी आम बात थी मगर, वो नहीं जानते थे कि आज ये कॉल आया है वो उन्हें पूरी रात सोने नहीं देगा! धर्मेन्द्र ने ऋषि दा को अपने दिल का हाल बताते हुए कहा कि आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं। आपने आनंद की कहानी मुझे सुनाई थी और फ़िल्म में आपने राजेश को ले लिया। इस पर ऋषि दा भड़के नहीं, ना ही नाराज़ हुए मगर, शांति से धर्मेन्द्र से कहने लगे कि अभी तुम सो जाओ, हम सुबह बात करेंगे। लेकिन धर्मेन्द्र तो धर्मेन्द्र थे , उन्हें इस बात का इतना दुःख था कि वो बार बार यही बात दोहराए जा रहे थे।
यही नहीं, इस बीच ऋषि दा ने कई बार फ़ोन कट कर दिया मगर, धरमेद्र है कि फिर फ़ोन लगा लेते थे, ऐसे करते हुए धर्मेन्द्र ने ऋषि दा को पूरी रात जगा कर रखा। वो बार बार पूछते रहे कि ये रोल आपने मुझे क्यूं नहीं दिया। आनंद बनी और राजेश खन्ना और अमिताभ के साथ ही बनीं, ज़िन्दगी को एक नया मोड देने वाली, जनता को ज़िन्दगी एक प्रति एक नया नजरिया देने वाली ये फ़िल्म वाकई बेहद ख़ूबसूरत थी और ऐसे में धर्मेन्द्र का ये हाल लाज़मी था। बबुमोशाय ज़िन्दगी बड़ी होनी चाहिए लम्बी नहीं, ऐसे दिल को छू लेने वाले डायलॉग्स इसी फ़िल्म के हैं!
खैर, धर्मेन्द्र और ऋषि दा ने ‘अनमोल’, ‘मंझली दीदी’, ‘गुड्डी’ और चुपके चुपके’ जैसी बेहतरीन और यादगार फ़िल्में भी दी हैं!
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