Naushad Ali: नौशाद अली हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। पहली फिल्म में संगीत देने के 64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फिल्मों में ही संगीत दिया, लेकिन उनका कौशल इस बात की जीती जागती मिसाल है कि गुणवत्ता संख्याबल से कहीं आगे होती है। नौशाद का जन्म 25 दिसम्बर 1919 को लखनऊ में मुंशी वाहिद अली के घर में हुआ था। वह 17 साल की उम्र में ही अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई कूच कर गए थे। शुरुआती संघर्षपूर्ण दिनों में उन्हें उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां, उस्ताद झण्डे खां और पंडित खेम चन्द्र प्रकाश जैसे गुणी उस्तादों की सोहबत नसीब हुयी। संगीत देने वाले संगीतकार नौशाद अली का आज पुण्यतिथि है। उन्होंने हिंदुस्तानी संगीत को एक अलग मुकाम तक पहुंचाने का काम किया। 64 सालों तक बॉलीवुड में अपना जादू बिखेरने वाला यह फनकार 5 मई 2006 को दुनिया को अलविदा कह दिया । उन्होंने हिंदी फिल्मी जगत को अपनी संगीत कला से खुशनुमा कर दिया। संगीत के अलावा उन्होंने शेरो- शायरी में भी उन्होंने खूब कलम चलाई। प्रस्तुत है दादा साहब फाल्के एवार्ड से सम्मानित संगीतकार नौशाद अली की कुछ गजलें…………
ख़ुद मिट के मोहब्बत की तस्वीर बनाई है
ख़ुद मिट के मोहब्बत की तस्वीर बनाई है
इक शम्अ जलाई है इक शम्अ बुझाई है
आग़ाज़-ए-शब-ए-ग़म है क्यूँ सोने लगे तारे
शायद मिरी आँखों से कुछ नींद चुराई है
मैं ख़ुद भी तपिश जिस की सहते हुए डरता हूँ
अक्सर मिरे नग़मों ने वो आग लगाई है
जब याद तुम आते हो महसूस ये होता है
शीशे में परी जैसे कोई उतर आई है
हर-चंद समझता था झूटे हैं तिरे वादे
लेकिन तिरे वादों ने क्या राह दिखाई है
जो कुछ भी समझ ले अब मर्ज़ी है ज़माने की
शीशे की कहानी है पत्थर ने सुनाई है
माना कि मोहब्बत ही बुनियाद है हस्ती की
‘नौशाद’ मगर तुझ को ये रास कब आई है
ख़ैर माँगी जो आशियाने की
ख़ैर माँगी जो आशियाने की
आँधियाँ हँस पड़ीं ज़माने की
मेरे ग़म को समझ सका न कोई
मुझ को आदत है मुस्कुराने की
दिल सा घर ढा दिया तो किस मुँह से
बात करते हो घर बसाने की
हुस्न की बात इश्क़ के क़िस्से
बात करते हो किस ज़माने की
दिल ही क़ाबू में अब नहीं मेरा
ये क़यामत तिरी अदा ने की
कुछ तो तूफ़ाँ की ज़द में हम आए
कुछ नवाज़िश भी ना-ख़ुदा ने की
मुझ को तुम याद और भी आए
कोशिशें जितनी की भुलाने की
वो ही ‘नौशाद’ फ़न का शैदाई
बात करते हो किस दिवाने की
जहाँ तक याद-ए-यार आती रहेगी
जहाँ तक याद-ए-यार आती रहेगी
फ़साने ग़म के दोहराती रहेगी
लहू दिल का न होगा ख़त्म जब तक
मोहब्बत ज़िंदगी पाती रहेगी
भुलाएगा ज़माना मुझ को जितना
मिरी हर बात याद आती रहेगी
बजाता चल दिवाने साज़ दिल का
तमन्ना हर क़दम गाती रहेगी
सँवारेगा तू जितना ज़ुल्फ़-ए-हस्ती
ये नागिन इतना बल खाती रहेगी
जहाँ में मौत से भागोगे जितना
ये उतना बाँहें फैलाती रहेगी
तमन्नाएँ मिरी पूरी न करना
मिरी दीवानगी जाती रहेगी
ये दुनिया जब तलक क़ाएम है ‘नौशाद’
हमारे गीत दोहराती रहेगी
ज़ंजीर-ए-जुनूँ कुछ और खनक हम रक़्स-ए-तमन्ना देखेंगे
ज़ंजीर-ए-जुनूँ कुछ और खनक हम रक़्स-ए-तमन्ना देखेंगे
दुनिया का तमाशा देख चुके अब अपना तमाशा देखेंगे
इक उम्र हुई ये सोच के हम जाते ही नहीं गुलशन की तरफ़
तुम और भी याद आओगे हमें जब गुल कोई खिलता देखेंगे
क्या फ़ाएदा ऐसे मंज़र से क्यूँ ख़ुद ही न कर लें बंद आँखें
इतनी ही बढ़ेगी तिश्ना-लबी हम आप को जितना देखेंगे
तुम क्या समझो तुम क्या जानो फ़ुर्क़त में तुम्हारी दीवाने
क्या जानिए क्या क्या देख चुके क्या जानिए क्या क्या देखेंगे
होने दो अंधेरा आज की शब गुल कर दो चराग़ों के चेहरे
हम आज ख़ुद अपनी महफ़िल में दिल अपना ही जलता देखेंगे
‘नौशाद’ हम उन की महफ़िल से इस वास्ते उठ कर आए हैं
परवानों का जलना देख चुके अब अपना तड़पना देखेंगे
ठोकरें खाइए पत्थर भी उठाते चलिए
ठोकरें खाइए पत्थर भी उठाते चलिए
आने वालों के लिए राह बनाते चलिए
अपना जो फ़र्ज़ है वो फ़र्ज़ निभाते चलिए
ग़म हो जिस का भी उसे अपना बनाते चलिए
कल तो आएगा मगर आज न आएगा कभी
ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में जो हैं उन को जगाते चलिए
अज़्म है दिल में तो मंज़िल भी कोई दूर नहीं
सामने आए जो दीवार गिराते चलिए
नफ़रतें फ़ासले कुछ और बढ़ा देती हैं
गीत कुछ प्यार के इन राहों में गाते चलिए
राह-ए-दुश्वार है बे-साया शजर हैं सारे
धूप है सर पे क़दम तेज़ बढ़ाते चलिए
काम ये अहल-ए-जहाँ का है सुनें या न सुनें
अपना पैग़ाम ज़माने को सुनाते चलिए
दिल में सोए हुए नग़्मों को जगाना है अगर
मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाते चलिए
रास्ते जितने हैं सब जाते हैं मंज़िल की तरफ़
शर्त-ए-मंज़िल है मगर झूमते गाते चलिए
कुछ मिले या न मिले अपनी वफ़ाओं का सिला
दामन-ए-रस्म-ए-वफ़ा अपना बढ़ाते चलिए
यूँ ही शायद दिल-ए-वीराँ में बहार आ जाए
ज़ख़्म जितने मिलें सीने पे सजाते चलिए
जब तलक हाथ न आ जाए किसी का दामन
धज्जियाँ अपने गिरेबाँ की उड़ाते चलिए
शौक़ से लिखिए फ़साना मगर इक शर्त के साथ
इस फ़साने से मिरा नाम मिटाते चलिए
आज के दौर में ‘नौशाद’ यही बेहतर है
इस बुरे दौर से दामन को बचाते चलिए