पेट्रोल-डीजल के दाम में ऊंची छलांग, लेकिन कच्चे तेलों के दाम नहीं है वजह!

इंटरनेशनल मार्केट में पेट्रोलियम के दाम की बात करें तो बहुत ज्यादा नहीं हैं फिर भी हम ज्यादा कीमत दे रहे हैं

भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से लोग परेशान हैं। लगातार पांच दिन से पेट्रोल और डीजल के रेट बढ़ते ही जा रहे हैं। लेकिन सरकार चुपचाप देखते जा रही है। मुंबई में पेट्रोल 90 रुपये लीटर के पार पहुंच गया वहीं दिल्ली में भी इसकी कीमत अब 82 रुपये प्रति लीटर के पार है। वहीं डीजल दिल्ली में 74.02, मुंबई में 78.58। इसके साथ ही बात करें बाकी राज्यों में पेट्रोल की कीमत की तो कोलकाता में 84.54 और चेन्नई में 85.99 रुपये प्रति लीटर हो गई।

वहीं अगर रविवार की बात करें तो मुंबई में पेट्रोल 89.97 रुपये प्रति लीटर और दिल्ली में 82.61 रुपये प्रति लीटर था। कोलकाता और चेन्नई में पेट्रोल का दाम क्रमश: 84.44 रुपये और 85.87 रुपये प्रति लीटर बिका। डीजल के दाम में भी रविवार को बढ़ोतरी देखने को मिली। बात अगर दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई की करें तो वहां भी डीजल की कीमतें क्रमश: 73.97 रुपये, 75.72 रुपये, 78.53 रुपये और 78.20 रुपये प्रति लीटर बिकी।

भारत और पेट्रोल-डीजल की खपत
भारत की आबादी और वाहनों की बात करें तो हम काफी आगे हैं इसीलिए तो हमारे यहां तेलों का खपत ज्यादा है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयात करने वाले देशों में शामिल है। अगर आंकड़ों की मानें तो 80 प्रतिशत तेल आयात होता है। तेल उत्पादन की मात्रा और उसकी कीमत निर्धारण तेल उत्पादक देशों का संगठन ओपेक (OPEC) करता है। हालांकि ओपेके के आने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेलों की कीमतें बढ़ती रही हैं।

केंद्र और राज्य सरकार के बल्ले-बल्ले
पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने से जनता बहुत परेशान है। खुद को गरीबों की सरकार बताने वाली मोदी सरकार भी इनके दाम नहीं घटा पा रही है। इनके टैक्स से दोनों सरकारों को खूब कर मिलता है जिससे सरकारी खजाना भरता है। इतना ही नहहीं पेट्रोल, डीजल आदि की कीमत में आधे के करीब टैक्स, वितरकों का मुनाफा और यातायात (भेजने) खर्च शामिल होता है।

विदेशी मुद्रा और व्यापार घाटा
हम देख रहे हैं कि किस प्रकार रुपया, डॉलर के मुकाबले गिरता जा रहा है। इसके अलावा विदेशी मुद्रा भंडार की बात करें तो रिपोर्ट की मानें तो अप्रैल 2018 में विदेशी मुद्रा का भंडार 426 बिलियन डॉलर था, जो अभी 400 बिलियन डॉलर के करीब है। इसके अलावा विदेशी मुद्रा का निर्गमन तेजी से हुआ है और देश का व्यापार घाटा बढ़ते जा रहा है। इसके साथ ही आयात वृद्धि की दर निर्यात वृद्धि दर से अधिक है। ये सभी बातें कमजोर अर्थव्यवस्था के संकेत हैं।

रवि गुप्ता :पत्रकार, परिंदा ही तो है. जैसे मैं जन्मजात बिहारी, लेकिन घाट-घाट ठिकाने बनाते रहता हूं. साहित्य-मनोरंजन के सागर में गोते लगाना, खबर लिखना दिली तमन्ना है जो अब मेरी रोजी रोटी है. राजनीति तो रग-रग में है.