Maharishi Dayanand Saraswati Jayanti 2020: महर्षि दयानंद सरस्‍वती जयंती पर देखे उनकी जीवन की महत्वपूर्ण बातें

Maharishi Dayanand Saraswati Jayanti 2020: 18 फरवरी को महार्षि दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) की जयंती है। महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक थे जिन्होंने भारत को जोड़ने का काम किया

Maharishi Dayanand Saraswati Jayanti 2020: 18 फरवरी को महार्षि दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) की जयंती है। महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक थे जिन्होंने भारत को जोड़ने का काम किया। उन्होंने अपने ज्ञान से लोगों को सही राह दिखाकर लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देश को इकठ्ठा किया और उनको इसके बारे में सचेत किया। आइये जानते है महार्षि दयानंद सरस्वती जयंती और उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें और उनके अनमोल विचार:

स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम 'मूलशंकर' था। वे महान ईश्वर भक्त थे, उन्होंने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त(भारत) को स्वतंत्रता दिलाने के लिए मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। वेदों की ओर लौटो यह उनका प्रमुख नारा था।

स्वामी दयानंद ने वेदों का भाष्य किया इसलिए उन्हें ऋषि कहा जाता है क्योंकि "ऋषयो मन्त्र दृष्टारः वेदमन्त्रों के अर्थ का दृष्टा ऋषि होता है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले 1876 में 'स्वराज्य' का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। आज स्वामी दयानन्द के विचारों की समाज को नितान्त आवश्यकता है।

महार्षि दयानंद जी ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ जमकर लोहा लिया था जिसके बाद अंग्रजों ने षडयंत्र रचकर 30 अक्टूबर 1883 को स्वामी दयानंद सरस्वती की हत्या कर दी। महार्षि दयानंद सरस्वती ने 1846 में घर त्याग दिया और अंग्रेजों के खिलाफ प्रचार करना शुरू कर दिया. इसके लिए पहले उन्होंने पूरे देश का भ्रमण किया और पाया कि लोग अंग्रेजी शासन से खुश नहीं है। भारत के लोग कभी भी अंग्रेजी शासन के खिलाफ लोहा ले सकते हैं। इसी समय का फायदा उठाकर उन्होंने लोगों को एकत्रित करना शुरू कर दिया. उन्होंने तात्या टोपे,नाना साहेब पेशवा, हाजी मुल्ला खां, बाला साहेब प्रमुख हैं।

हालांकि 1857 की क्रांति पूरी तरह से विफल रही है। लेकिन स्वामी जी निराश नहीं हुए और उन्होंने यह बता लोगों तक पहुंचाई की कई वर्षों की गुलामी में एक बार में आजादी नहीं मिल सकती।