Movie Review: चकाचौंध के बीच समाज का क्रूर चेहरा दिखाती है फिल्म ‘लव सोनिया’

लव सोनिया को देखना थोड़ा मुश्किल हो सकता है क्योंकि ये फिल्म हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई को बड़ी ही क्रूरता से दर्शाती है, जानें क्यों देखें फिल्म

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Movie Review: चकाचौंध के बीच समाज का क्रूर चेहरा दिखाती है फिल्म ‘लव सोनिया’
Movie Review: मृणाल ठाकुर, ऋचा चढ़ा और फ्रीडा पिंटो की फिल्म 'लव सोनिया' दिखाती है समाज का क्रूर और निर्मम चेहरा

‘मुंबई मेरी जान’ हर मुंबईकर शान से कहता हुआ नज़र आया है लेकिन इस शहर की भीड़ में चीखें दब जाती है| लव सोनिया फिल्म की कहानी हमारे रंग बिरंगी इस शहर की अलग ही छवि दर्शाती है| इस फिल्म में दो बहनों की भावनात्मक कहानी – सोनिया (मृणाल ठाकुर) और प्रीती (रिया सिसोदिया) के माध्यम से मानव तस्करी और वैश्विक यौन व्यापार की बड़ी सच्चाई को उजागर किया गया है|

‘लव सोनिया’ सोनिया की कहानी है जो अपनी बहन प्रीती की तलाश में है| उनका पिता (आदिल हुसैन) पैसे लेकर अपनी बेटी को बेच देता है| इसके बाद सोनिया को मुंबई ले जाया गया और जहाँ पर इस शहर की असलियत से रूबरू होती है| यहाँ पर वह अपनी बहन से मिलने के झूठे वादे के तहत एक वेश्यालय में शामिल हो जाती है| वेश्यालय का मालिक है फैजल (मनोज वाजपेयी) है और इसमें माधुरी (रिचा चढा) और रश्मी (फ्रीडा पिंटो) जैसी वेश्याएं हैं जो हमें सोनिया और प्रीती का भविष्य दिखाती हैं। कुल मिलाकर यह फिल्म एक ऐसी इमोशनल और कठोर कहानी है जो हमें इस ‘व्यापार’ के भयानक चेहरे से मिलवाती है|

मृणाल ठाकुर ने शानदार अभिनय से फिल्मों में पहला कदम रखने वालों के लिए एक बेंचमार्क बना दिया है| वहीँ रिया ने एक भोली भली बहन का किरदार ऐसा निभाया है जिसे देखने की इच्छा आपके मन में भी बस जाती है| मनोज ने एक दुष्ट इंसान का किरदार निभाया है जिसे आप उसके किये की सज़ा देना चाहते हैं| वहीँ फिल्म में रिचा की क्रूरता भयभीत करती है जबकि फ्रीडा लगभग पहचान में नहीं आती|

इस फिल्म में स्त्री के बाद राजकुमार को इस फिल्म में देखना आश्चर्यजनक है और हमें आश्चर्य होता है कि आखिर उन्हें ये फिल्म शूट करने का समय कब मिला होगा? सामाजिक कार्यकर्ता मनीष के रूप में, राजकुमार चमके हैं| वहीँ आदिल, शिव और अनुपम खेर बलदेव सिंह के रूप में अपने किरदार से फिल्म को और गहरा बना देते हैं| इसके अलावा डेमी मूर और मार्क डुप्लस का कैमियो भी है जो फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने में खास मदद नहीं करती

फिल्म का छायांकन बहुत क्लोज़ अप शॉट्स पर केंद्रित है और फिल्म में किरदारों के भावनाओं के अलग-अलग रंग दिखाता है, चाहे वह सोनिया की आंखों में पीड़ा और यातना हो या प्रीती के माध्यम से हार मान लेने की बात| बैकग्राउंड म्युज़िक भय की भावना को महसूस कराता है|

सामाजिक मुद्दे पर बानी फिल्मों का आमतौर पर एक दुखद अंत होता है और कहानी का नैतिक ऐसा होता है कि एक बार जब आप फंस जाते हैं, तो इसमें से बाहर निकलना मुश्किल होता है| हालांकि, लव सोनिया उस रूढ़िवादी की नहीं है।

फिल्म के दूसरे भाग में एक यादगार दृश्य है जिसे सेल्मा (डेमी मूर) और सोनिया के बीच फिल्माया गया है| जहाँ पर सोनिया अपने संघर्ष की कहानी बताती है। कम उम्र में ही उसे ऐसा संघर्ष करना होता है कि फिल्म की लीड नायक को ‘आशा’ मिलती है, और इस प्रक्रिया में, युवा लड़की से वयस्क बन जाती है।

आखिर में हम यही कहेंगे कि लव सोनिया को देखना थोड़ा मुश्किल हो सकता है क्योंकि ये फिल्म हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई को बड़ी ही क्रूरता से दर्शाती है| लेकिन यह फिल्म जरूर देखने के लायक है|

हम इस फिल्म को मूवी मीटर पर 70 % देते हैं|

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Story Author: श्रेया दुबे

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