कलाकार- कंगना रनौत, अंकिता लोखंडे, डैनी डेंजोग्पा, सुरेश ओबेरॉय, अतुल कुलकर्णी, जीशु सेनगुप्ता, मोहम्मद जीशान अयूब।
निर्देशक- राधाकृष्ण जगर्लामुदी, कंगना रनौत।
फिल्म टाइप- बायोग्राफी, पीरियड, ड्रामा, एक्शन।
अवधि- 2 घंटा 28 मिनट।
रेटिंग- 2.5 स्टार।
‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ जी हां, जब भी यह पंक्तियां कानों में गूंजती हैं तो एक पल के लिए झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की वीरता के किस्से और कहानियां जेहन में घूमने लगती हैं। ख्याल आता है कि कैसा रहा होगा गुलामी का वह दौर जब चंद मतवालों को देश को अंग्रेजों से आजाद कराने का जुनून सवार हुआ और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई और मंगल पांडे जैसी महान विभूतियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका। कंगना रनौत की फिल्म ‘मणिकर्णिका’ हमें उसी दौर में ले जाती है। 25 जनवरी को फिल्म रिलीज हो रही है, लेकिन उससे पहले आपको बताते हैं कि कैसी है यह फिल्म।
फिल्म में झांसी की रानी का किरदार निभा रहीं कंगना रनौत दयालु मगर बहादुर रानी हैं। अमिताभ बच्चन की आवाज के साथ फिल्म शुरू होती है और सभी किरदार बारी-बारी से अपने अभिनय की क्षमता के चरम पर पहुंच दर्शकों का मनोरंजन करते हैं, उनके जेहन पर अपनी छाप छोड़ने की कोशिश करते हैं। हालांकि सभी किरदारों को समय के लिहाज से इतना मौका नहीं दिया गया है। अंकिता लोखंडे झलकारी बाई के रोल में दमदार दिखी हैं। अतुल कुलकर्णी तात्या टोपे के किरदार में हमेशा की तरह अपनी एक्टिंग से दिल जीत रहे हैं। सपोर्टिंग रोल में जीशु सेनगुप्ता, मोहम्मद जीशान अयूब, डैनी डेंजोग्पा, सुरेश ओबेरॉय और कुलभूषण खरबंदा भी अपने-अपने किरदारों के साथ इंसाफ कर रहे हैं।
कमजोर स्क्रीनप्ले फिर भी नहीं होंगे बोर
कमजोर स्क्रीनप्ले फिल्म पर असर डाल सकता है। फर्स्ट हाफ में कंगना रनौत की डायलॉग डिलीवरी भी कमजोर लग रही है, ऐसा लग नहीं रहा है कि प्रसून जोशी ने कंगना के किरदार को ध्यान में रखते हुए डायलॉग्स लिखे हैं। हालांकि एक के बाद एक फिल्म की कड़ी को जोड़ रहे सीन्स आपको बोर नहीं होने देंगे। पहले भाग में कई सीन ऐसे हैं जो आपको भीतर तक झकझोर देंगे और देश की आजादी का असल मतलब बताएंगे। फिल्म की भव्यता इसे और महान दिखाने की कोशिश करती है। फिल्म के एक सीन में आप कंगना की अदाकारी के कायल हो सकते हैं, जब कंगना फिरंगी अफसर के सामने नजरें झुकाने से इनकार कर देती हैं।
और दमदार हो सकती थी फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले
फिल्म में अंग्रेज अफसर इतना प्रभावित नहीं कर पाते हैं। फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले और दमदार हो सकता था अगर इसकी पटकथा का जिम्मा के.वी. विजयेंद्र प्रसाद के हाथों में न होता। फिल्म देखकर आप जान सकेंगे कि दक्षिण भारतीय राज्य के ताल्लुक रखने वाले विजयेंद्र प्रसाद को उत्तर भारतीय लोक संस्कृति की हकीकत में ज्यादा जानकारी नहीं है। यही वजह है कि इस फिल्म में काशी से लेकर झांसी तक की कहानी के असली रंग गायब हैं। शंकर, एहसान और लॉय का संगीत भी फिल्म की भव्यता के साथ मैच नहीं हो पाया है।
कंगना ने फर्स्ट हाफ की कमी सेकेंड हाफ में पूरी की
फर्स्ट हाफ की कमी कंगना रनौत सेकेंड हाफ में पूरी करती नजर आई हैं। यहां दमदार एक्शन सीन्स और डायलॉग्स की बदौलत कंगना मर्दानी के रूप में दर्शकों का दिल जीत लेती हैं। फिल्म में वीएफएक्स का काफी बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया गया है। कुल मिलाकर अगर आप ‘बाजीराव मस्तानी’ या फिर ‘पद्मावत’ जैसी फिल्म देखने की ख्वाहिश में मणिकर्णिका देखने जा रहे हैं तो आपको थोड़ा निराश होना पड़ सकता है। हां अगर आप हल्के-फुल्के मूड में झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की गाथा को बड़े पर्दे पर देखने के मकसद से फिल्म देखने जा रहे हैं तो आपको यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। ‘हिंदी रश’ इस फिल्म को देता है 2.5 स्टार।
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देखें ‘मणिकर्णिका’ के बारे में फिल्म समीक्षकों के ट्वीट्स…
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