Movie Review: ‘मंटो’ के अफ़साने जैसी कहानी को परदे पर नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने दी ज़िन्दगी 

मंटो, एक ऐसी कहानी है जिनकी कहानियों में सच्चाई को वैसे ही परोस दिया जाता है जैसी की वो है, जानें क्या देखनी चाहिए ये फिल्म?

मंटो, एक ऐसी कहानी है जिनकी कहानियों में सच्चाई को वैसे ही परोस दिया जाता है जैसी की वो है, जानें क्या देखनी चाहिए ये फिल्म?

मंटो, एक ऐसी कहानी है जिनकी कहानियों में सच्चाई को वैसे ही परोस दिया जाता है जैसी की वो है| उनकी कहानियों में समाज के असली चेहरे को  बिना किसी पॉलिश  के ही दिखाया जाता है| मंटो की कहानी एक ऐसे लेखक की है जिसकी शायरी में किसी अनजानी और अंदर तक झकझोर देने वाली घटना को जैसे का तैसा लिख दिया जाता है| ऐसे में जरूरी था कि ऐसे लेखक की कहानी को बड़े परदे पर लाया जाए| इस  फिल्म का निर्देशन नंदिता दास ने किया है एक  निर्देशक के तौर  यह उनकी दूसरी फिल्म है| उनकी पहली फिल्म ‘फ़िराक’ ने लोगों को प्रभावित किया  था लेकिन मंटो उम्मीदों पर उतनी खरी नहीं उतरती|
मंटो एक बायोपिक है जिसमें अफसानानिगार मंटो की असली कहानी को दिखाया गया है| लेकिन फिल्मो में मंटो के बचपन और उनके करियर  के शुरूआती दिनों और उनके परिवार को नहीं दिखाया गया है| फिल्म देखने के बाद भी आपको मंटो की लाइफ के बारे में सबकुछ पता नहीं चलता|
फिल्म में मंटो को एक लेखक की भूमिका में दिखाया गया है|  जो मुंबई में फिल्मों से जुड़ा हुआ है| वो एक खुद्दार लेखक हैं जो अपने लिखे हुए पर अड़ा हुआ था|   मंटो, हिमांशु रॉय के बॉम्बे टॉकीज में काम करते थे| मुंबई में रहते हुए कृश्नचंदर, अशोक कुमार, जद्दनबाई, नौशाद, इस्मत आदि महान लेखकों के साथ उनका  होता था लेकिन इन्ही में से एक एक्टर श्याम उनके सबसे खास दोस्त है|
इस फिल्म में दिखाया गया है कि मंटो जिस दौर में मुंबई में फिल्मों के लिए लिखते हैं उस दौरान देश में आजादी के आंदोलन का आखिरी दौर चल रहा होता है| जिसमें मुस्लिम पाकिस्तान की मांग कर रहा होता है|  ऐसे में इस  आंदोलन से मुंबई भी अछूता नहीं था| यहाँ भी बहुत दंगे हो रहे हैं|  एक रोज मंटो के दोस्त श्याम ने उनके मुस्लिम होने पर कुछ ऐसा कहा कि वो कर्मनगरी मुंबई को छोड़कर पाकिस्तान जाने का फैसला करते हैं| हालाँकि वो पकिस्तान जाने के लिए बिलकुल उत्साही नहीं थे|
इसके बाद मंटो की ज़िन्दगी हमेशा के लिए कैसे बदल जाती है  के बारे  में है | बता दें फिल्म का आखिरी कुछ समय आपको बांधे रखने में सफल होता है|
फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है| उनके साथ इस फिल्म में जावेद अख्तर, इला अरुण, दिव्या दत्ता, ऋषि कपूर, गुरदास मान, परेश रावल, शशांक अरोड़ा, रणवीर शौरी और नीरज कबीर जैसे दमदार कलाकार मौजूद है| फिल्म में रसिका दुग्धल की एक्टिंग प्रभावित करती है|
मंटो की कहानी उनकी शायरी की तरह ही है जिसमें किसी वाकये को वैसे ही दिखाया गया है जैसा की वो है| ऐसे में कुल मिलाकर फिल्म को एक बार देखना तो बनता ही है|
 मूवी मीटर पर हम इस फिल्म को 70%  देते है|
श्रेया दुबे :खबरें तो सब देते हैं, लेकिन तीखे खबरों को मजेदार अंदाज़ में आपतक पहुंचाना मुझे बहुत अच्छा लगता है। पिछले चार साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में हूं। कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं। फिलहाल इंटरनेट को और एंटरटेनिंग बना रही हूं।