“ज़िहाद का मतलब वॉर ना?” आरती मोहम्मद ने पूछा…और जवाब में मुराद अली मोहम्मद कहते है “ज़िहाद माने संघर्ष”
कुछ समय बाद भीड़ से शाहिद मोहम्मद के मृतक शरीर को घसीट कर ले जाया जाता है..सभी इस नज़ारे को हैरानी से देखते रह जाते है| ‘मुल्क’ की कहानी कुछ ऐसी है जो अनुभव सिन्हा अपने हाल में ही वायरल हुए ओपन लेटर के माध्यम से कहना चाहते थे|
‘मुल्क’ एक मुस्लिम फैमिली के संघर्ष की कहानी है जो एक अपने को निर्दोष साबित करने पर लगा हुआ है| शाहिद मोहम्मद को एक आतंकवादी माना जाता है जो हज़ारों के मौत का ज़िम्मेदार होता है| इस फिल्म की कहानी बताती है कि कैसे आजकल की युवा धर्म के अन्धविश्वास में फंसकर ऐसा कदम तो उठा लेते है , लेकिन वो इसके आगे और पीछे होने वाली घटनाओं के बारे में नहीं सोचते| मुराद और आरती जी जान लगाकर लड़ते हैं ताकि वो कोर्ट में ये साबित कर सकें कि शाहिद का पिता बिलाल मोहम्मद उसके बेटे जैसा आतंकवादी नहीं है| कोर्ट में उनका मुकाबला संतोष आनंद (आशुतोष राणा) से होता है|
फिल्म का पहला हिस्सा किसी तूफान के पहले होने वाली शांति जैसी है| जिसमें हमें मुराद और उसकी फैमिली के मासूम पलों को दिखाया गया है इससे पहले कि उनकी ज़िन्दगी शाहिद की वजह से तहस नहस हो जाए| बनारस में आधारित इस फिल्म की सिनेमेटोग्राफी देखने के बाद आप समझ जायेंगे कि आप इसे जैसा समझ रहे हैं ये वैसा नहीं है|
वहीँ फिल्म का दूसरा हिस्सा कोर्ट रूम ड्रामा है जिसमें दो धर्मों के बीच की लड़ाई दिखाई गयी है| शुरू से लेकर अंत तक , मुल्क नाच गाने और ड्रामा से भरा हुआ नहीं है| मुल्क धर्म और अंधविश्वास पर आधरित फिल्म है| ये टूटे हुए घरों की कहानी है ये हमारे और आपकी कहानी है| (हिन्दू और मुस्लिम)
ऋषि कपूर फिल्म का अहम् हिस्सा है| फिल्म में उनकी परफॉरमेंस देखकर आप भूल जायेंगे कि वो रियल लाइफ में एक मुस्लिम नहीं है| उनके किरदार का जो दर्द है वो उनकी और उनके परिवार में देखा जा सकता है| मनोज का भोलाभाला किरदार आपके दिल को छु जाएगा| नीना गुप्ता और प्राची शाह भी अपनी एक्टिंग से आपको फिल्म की कहानी में बहा ले जायेंगे| वहीँ तापसी पन्नू और रजत कपूर की एक्टिंग लाजवाब है|
हालाँकि उनमें से मुल्क का असली हीरो अनुभव सिन्हा है| जिन्होंने इस फिल्म से आने विचारों को साफ़-साफ़ रक्खा है| इस फिल्म को देखने के बाद आप खुद से कई सवाल पूछेंगे| रही बात स्क्रिप्ट की तो कहीं न कहीं ये थोड़ा ड्रमैटिक रहा इसे और भी छोटा किया जा सकता था| वहीँ फिल्म का अंत आज के हिसाब से बहुत ही आदर्शवादी है लेकिन हमें फिल्ममेकर की दाद देनी होगी कि उन्होंने हमारे देश में चल रहे इस वॉर को सभी के सामने लाया|
हाल में ही दिए एक इंटरव्यू में अनुभव सिन्हा ने कहा था कि मैं एक सेफ दस , सेफ रा.वन बना सकता हूँ लेकिन सेफ मुल्क नहीं बना सकता और फिल्म को देखने के बाद हमें पता चलता है कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा होगा|
और आखिरी में..हमें मुल्क देखनी चाहिए? हाँ ! क्योंकि कहीं न कहीं हमें धर्म का असली मतलब पता ही नहीं है| ‘मुल्क’ के नाम पर कुछ भी?
हम इस फिल्म को 70% की रेटिंग देते है|