Saand Ki Aankh Movie Review: बुल्स आई को टारगेट में सफल हुई हैं भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू

फिल्म सांड की आंख (Saand Ki Aankh Movie Review) दो ऐसी महिलाओं की कहानी है, जो समाज फैली में लिंगभेद की रूढ़ीवादी सोच को तोड़ने का काम करती हैं। पारिवारिक और सामाजिक बंधनों को तोड़ते हुए ये दोनों महिलाएं अपने परिवार, गांव, राज्य और देश का नाम रोशन करती हैं

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Saand Ki Aankh Movie Review: बुल्स आई को टारगेट में सफल हुई हैं भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू
फिल्म सांड की आंख के एक सीन में भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू। (फोटोः इंस्टाग्राम)

फिल्मः सांड की आंख
कलाकार: तापसी पन्नू, भूमि पेडनेकर, विनीत कुमार, प्रकाश झा
निर्देशक: तुषार हीरानंदानी
हिन्दीरश रेटिंग: 3 स्टार

फिल्म सांड की आंख दो ऐसी महिलाओं की कहानी है, जो समाज फैली में लिंगभेद की रूढ़िवादी सोच को तोड़ने का काम करती हैं। पारिवारिक और सामाजिक बंधनों को तोड़ते हुए ये दोनों महिलाएं अपने परिवार, गांव, राज्य और देश का नाम रोशन करती हैं और दुनिया में शूटर्स दादी के नाम से पॉपुलर होती हैं। रंगों की पहचान के बंधन को तोड़कर एक महान निशानेबाज बनती हैं। फिल्म में भूमि पेडनेकर शूटर दादी चंद्रों तोमर और तापसी पन्नू प्रकाशी तोमर के किरदार में दिखाई देती हैं। दोनों ने इस किरदार को बखूबी निभाया है। दोनों ही ।

फिल्म की शुरुआत होती है उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के जोहरी गांव से। जहां एक बड़े परिवार का मुखिया रतन सिंह तोमर यानी प्रकाश झा अपने भाईयों के साथ हुक्का पी रहा है और अपने छोटे भाई यानी प्रकाशी तोमर के पति से उसकी परेशानी के बारे में पूछता है। तब बताता है कि उसकी पत्नी मां चंडी के दर्शन करने का सपना देखा है, अगर ये सपना पूरा नहीं होगा, तो उसकी मौत हो जाएगा। लेकिन इसमें एक कंडिशन होती है कि चंडी मां के दर्शन के लिए उनके साथ कोई पुरुष नहीं जाएगा। इस पर प्रकाश झा छोटे बेटे के साथ जान के लिए कहते हैं। फिर शुरू होती है इन दोनों महिलाओं की उड़ान की कहानी। दरअसल, चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर को चंडीगढ़ शूटिंग कंपीटिशन में हिस्सा लेने जाना होता है। जैसे ही वे लोग वहां पहुंचते हैं, लोग उनकी उम्र और कपड़ों को देखते हैं, लेकिन निशानेबाजी में पहले और दूसरे नंबर आने के बाद लोगों की बोलती बंद होती है। इसमें विनीत कुमार सिंह जोकि फिल्म में डा. यशपाल के किरादर में है, अहम भूमिका निभाते हैं। वह शूटर्स दादी को ट्रेनिंग भी देते हैं और उन्हें इन कंपीटिशन में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते हैं।

रंगों की पहचान से निकलती हैं बाहर

इस बीच दोनों दादी अपने इस सफर को याद करती हैं और कहानी फ्लैशबैक में चलती है। प्रकाशी तोमर घर में बहू बनकर आती है। चंद्रों तोमर उसका स्वागत और तोमर परिवार कि नियम कायदे बताती हैं। इसके साथ ही घर में महिलाओं के कपड़ों के रंग बारे में भी बताती हैं। इस तरह चंद्रो तोमर का रंग आसमानी नीला, प्रकाशी तोमर का हरा और प्रकाश झा की पत्नी का लाल रंग होता है। इसके बाद पूरा जीवन घर, खाना, पति की सेवा और खेत जोतने का काम करती हैं। दोनों को 60 साल की उम्र में अपने शूटिंग के हुनर के बारे में पता लगता है। जब उनकी दोनों पोतियां सरकारी नौकरी के लालच में डां. यशपाल के पास शूटिंग की प्रैक्टिस करती हैं। इसी दौरान दोनों दादियों को अपने निशानेबाजी का पता चलता है। वह अपनी पोतियों के लिए इसको सीखती हैं और फिर इसके बाद कई मेडल जीतती हैं। उनकी निशानेबाजी देख अलवर की महारानी काफी इम्प्रेस होती हैं और उन्हें अपने यहां मेहमानबाजी के लिए बुलाती हैं।

पैरों में बंधी बेड़ियों को तोड़ने का काम

शूटर दादी ये कई कंपीटिशन जीतते हैं, लेकिन उनकी एक पोती अपना पहला कंपीटिशन हार जाती है, जबकि दूसरी पोती सिल्वर जीतती है। लेकिन पोतियों का मनोबल बढ़ाने के लिए दोनों दादी कंपीटिशन जीतती हैं। बाद में दोनों पोतियां भी कंपीटिशन जीतती हैं और उन्हें इंटरनेशनल शूटिंग की ट्रेनिंग के लिए कैंप में जाना होता है, लेकिन उनके सामने ये समस्याएं होती हैं कि पुरुषवादी सोच के लोगों से कैसे ये सब बताएंगी। लेकिन दोनों दादी पूरा सच बताकर अपने पतियों से टक्कर लेती हैं और पोतियों को कैंप में भेजने के लिए तैयार करती हैं। पूरी कहानी जानने के लिए आपको सिनेमाघरों का रुख करना होगा। यह एक मोटिवेशनल और महिलाओं के पैरों बंधी बेड़ियों को तोड़ने का काम करती है।

फिल्म में आपातकाल और जबरन नसबंदी का जिक्र

फिल्म में ऐसे कई प्वाइंट आएंगे जो आपको हंसाते हैं। आपका मोरल बूस्ट करते हैं। तापसी पन्नू, भूमि पेडनेकर, प्रकाश झा और विनीत कुमार सहित सबकी एक्टिंग काबिले तारीफ है। हालांकि कुछ नाइट सीन और गानों के बीच में तापसी पन्नू का वो 60 साल वाला किरदार फीका नजर आता है। भूमि पेडनेकर को थोड़ा दिखाया गया है। फिल्म के गाने, सिनेमैटोग्राफी बहुत ही कमाल के हैं। इसमें हंसी के साथ इमोशंस का भी काफी तड़का है। फिल्म में 1975 के दौरान लगे आपातकाल का भी जिक्र है। जबरन नसबंदी के मुद्दें को भी दिखाया है। लेकिन इसके बाद भी जनसंख्या नियंत्रण पर भी फोकस किया गया है।

यहां देखिए सांड की आंख का ट्रेलर…

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Story Author: रमेश कुमार

जाकिर हुसैन कॉलेज (डीयू) से बीए (हॉनर्स) पॉलिटिकल साइंस में डिग्री लेने के बाद रामजस कॉलेज में दाखिला लिया और डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटकल साइंस में पढ़ाई की। इसके बाद आईआईएमसी दिल्ली।

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