Movie Review: बेदम है कमल हासन की Vishwaroopam 2, थ्रिलर नहीं बोर है फिल्म

विश्वरूपम 2 देखनी चाहिए? जानने के लिए पढ़िए हमारा रिव्यु...

विश्वरूपम 2 देखनी चाहिए? जानने के लिए पढ़िए हमारा रिव्यु..

कुछ जासूसी फिल्में होती हैं जो कुर्सी से आपको चिपकाए रखती हैं और कुछ फिल्में विश्वरूपम 2 की तरह होती हैं जो समय के साथ बोझिल हो जाती है| कई सारे छोरों को छोड़ती ये कहानी ना तो आपको थ्रिल करती है ना ही उत्साहित| इस फिल्म में वो सब कुछ है जो एक मसाला एंटरटेनर फिल्म में होनी चाहिए – एक ऐसा बागी जो कुछ भी कर सकता है, सुपरस्टार कमल हासन जिन्होंने फिल्म में विज़ाम का किरदार किया है, आँखों को लुभाने वाली दो अदाकाराएँ, दमदार विलेन, एक ऐसा प्लाट जिसे मेंशन करना जरुरी नहीं है, एक्शन से भरपूर ये फिल्म इन सभी कैटेगरी में बेहद निराश करती है|

कमल हासन द्वारा निर्देशित ये फिल्म एक पहेली सुलझाती है, फिल्म का पहला पार्ट साल 2013 में आई थी| फिल्म की शुरुआत होती है घायल विज़ाम के साथ जिसकी गैंग पर अटैक होता है| फिल्म का पहला 10 मिनट उसी में चला जाता है| इसके बाद हमें VFX के द्वारा लंदन पहुंचा दिया जाता है और फिर इधर भारत में ओमार (राहुल बोस) बदले की आग में जल रहा होता है | फिल्म का पहला हिस्सा कम से कम स्टंट्स के साथ रखा गाया है और ये विश्वरूपम की अपेक्षा में कुछ भी नहीं है| वहीँ फिल्म के दुसरे भाग में कुछ एक्शन सिक्वेंस है जो आपको फिल्म का क्लाइमेक्स दिखाने के लिए रोक कर रखेंगे| विश्वरूपम 2 एक स्पाई थ्रिलर है लेकिन इस फिल्म का सबसे बेस्ट पार्ट कोई एक्शन सिक्वेंस नहीं है बल्कि ये विज़ाम (कमल हासन) और उसकी माँ (वहीदा रहमान) के बीच का सीन है जो आपके दिल को छु जाएगा|

एक दर्शक के रूप में हमने कमल हासन के कई बेहतरीन फिल्मों को देखा है जिसमें उनकी एक्टिंग ने हमारा दिल जीत लिया है लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद ऐसा लगता है कि वो इस फिल्म को अकेले ही अपने कंधो पर उठाने को तैयार है| लेकिन मुझे कहना होगा कि 63 साल की उम्र में स्क्रीन पर वो बॉलीवुड के खांस को भी टक्कर दें रहे हैं| इस फिल्म में सपोर्टिंग कास्ट के किरदार इतने अहम् नहीं लगते| लेकिन हमें शेखर कपूर को मेंशन करना होगा| हालाँकि ऐसा लगता है कि ये फिल्म उनके लिए फिट नहीं थी| फिल्म में राहुल बोस आपको डार्क नाईट के विलेन की कॉपी करते नज़र आ जायेगे| जयदीप अहलावत ने परदे पर अपनी एक्टिंग से जान ला दी है| उन्हें स्क्रीन प्रेसेसं बहुत कम मिली है लेकिन उन्होंने इतने समय में भी अपना काम बखूबी किया है|

यहाँ तक कि फिल्म में म्युज़िक भी सही समय पर नहीं फिट किया गया है| यहाँ तक कि इसका इफ़ेक्ट भी कुछ खास नहीं है|

क्या हमें विश्वरूपम देखनी चाहिए? मैं कहूँगी इससे बेहतर है कि आप मिशन इम्पॉसिबल -फॉलआउट देख लीजिये| अगर इसे ना देखना हो तो बता दें, फिल्म के पहले पार्ट को बेस्ट प्रोडक्शन के नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया था|

मूवी मीटर पर हम इस फिल्म को 35% देते हैं|

श्रेया दुबे :खबरें तो सब देते हैं, लेकिन तीखे खबरों को मजेदार अंदाज़ में आपतक पहुंचाना मुझे बहुत अच्छा लगता है। पिछले चार साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में हूं। कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं। फिलहाल इंटरनेट को और एंटरटेनिंग बना रही हूं।