Movie Review: पैसे और समय की बर्बादी है यमला पगला दीवाना फिर से, नहीं चला बाप-बेटों का जादू

धर्मेंद्र, सनी देओल और बॉबी देओल की फिल्म की स्क्रिप्ट बेहद कमजोर है...फिल्म का क्लाइमेक्स भी बहुत बेतुका है.

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Movie Review: पैसे और समय की बर्बादी है यमला पगला दीवाना फिर से, नहीं चला बाप-बेटों का जादू
फिल्म की राइटिंग कमज़ोर है और कई बार आपको सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर आपने ये फिल्म देखने का फैसला क्यों लिया होगा| यहाँ जानिए क्या देखनी चाहिए फिल्म?

फिल्म के पहले हाफ में बॉबी देओल गर्व के साथ इस बात का दावा करते हैं कि अगर पंजाबी रात को पीता है तो वो सुबह तक चढ़ी रहती है| ऐसा लगता है कि फिल्म के मेकर्स के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था तभी तो उन्होंने ये फिल्म बनाने की सोची जिसमें नाही कोई सेन्स है और नाही कोई भावना है और ना ही संवेदनशीलता। पिछली दो फिल्मों की तरह ही धर्मेंद्र, सनी देओल और बॉबी देओल ने वही किरदार किये है लेकिन इस बार सिर्फ उनका नाम और काम बदल गया है| सनी देओल वैद्य पूरन का किरदार निभा रहे है, एक आयुर्वेद व्यवसायी जिसके लिए सबसे ज्यादा मूल्यवान है इलाज करने वाले वज्रकवच की रक्षा करना, वहीँ उसका नटखट भाई काला (बॉबी देओल) जिसका एक ही उद्देश्य है कि वो प्यार में पड़े, और एक गुजराती डिश की तरह परोसा जाता है चीकू को जिसे (कृति खरबंदा) ने निभाया है| वहीँ धर्मेंद्र की बात करें तो वो पूरन के घर में किरायेदार है और इसके अलावा वो एक ऐसे वकील बने है जिसके आसपास हसीनाएं रहती है| तीनो पंजाबी एक साथ होते है लेकिन तभी पूरन का वज़्रकवच भूल जाने लायक विलेन ने चुरा लिया|

वैसे तो धर्मेंद्र को परदे पर देखना बहुत ही अच्छा लगता है, उन्हें सदाबहार कलाकार माना जाता है, लेकिन इस फिल्म में उनका चार्म भी काम नहीं आया| उनकी कॉमेडी से लोगों को हंसना नहीं आता| सनी इस फिल्म में वही एक्शन हीरो का किरदार निभाते नज़र आ रहे है लेकिन अब वो बहुत ही ओवररेटेड नज़र आता है| उनके एक्शन सीक्वेंस को देखकर मज़ा नहीं आता| सीटियां बजाने के बजाय लोग उबासी ले रहे थे| इसके बाद बारी आती है बॉबी देओल की जिन्हे हमने पिछली बार सलमान खान के साथ रेस 3 में देखा था| दुर्भाग्य से रेस 3 के बाद अब वो ऐसी ही एक बुरी फिल्म में फंस गए| हंसी की बात ये है कि ना सिर्फ कृति बल्कि बॉबी देओल भी फिल्म में ऑय कैंडी लग रहे थे|

फिल्म की राइटिंग कमज़ोर है और कई बार आपको सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर आपने ये फिल्म देखने का फैसला क्यों लिया होगा| वहीँ फिल्म में बॉबी देओल और कृति खरबंदा के बीच के लव सांग फिल्माया गया है जिसमें ना तो कोई केमेस्ट्री और ना ही कोई बायोलॉजी नज़र आती है| इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस फिल्म को बचा पाती|

फिल्म का क्लाइमेक्स एक कोर्टरूम ड्रामा है जोकि इतना बेतुका है कि आपको बॉलीवुड के दो महान कलाकार शत्रुघन सिन्हा और धर्मेंद्र के लिए बुरा लगता है कि उनके टैलेंट को किस तरह से मिसयूज़ किया गया है| फिल्म का अंत होता है राफ्ता-राफ्ता गाने से जोकि आप यूट्यूब पर भी देख सकते है और अपनी मेहनत की कमाई को बचा सकते है|

यमला पगला दिवाना फिर से देखना पैसे और समय को वेस्ट करना है| ये फिल्म ढाई स्टार्स भी डिसर्व नहीं करता|

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Story Author: श्रेया दुबे

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