मीराबाई चानू ओलंपिक में मेडल जीतने वाली भारत की दूसरी वेटलिफ्टर बन गई हैं।
मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक 2020 में 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीता।
मीराबाई चानू का सपना तीरंदाज बनने का था, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्हें वेटलिफ्टिंग को अपना करियर चुनना पड़ा।
मीराबाई चानू का जीवन संघर्ष से भरा रहा है। मीराबाई का बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता। वह बचपन से ही भारी वजन उठाने की मास्टर रही हैं।
मीराबाई चानू बचपन में तीरंदाज यानी आर्चर बनना चाहती थीं। कक्षा आठ तक आते-आते मीराबाई का लक्ष्य बदल गया। कक्षा आठ की किताब में मीराबाई ने मशहूर वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी के बारे में पढ़ा।
इम्फाल की ही रहने वाली कुंजरानी भारतीय वेटलिफ्टिंग इतिहास की सबसे डेकोरेटेड महिला हैं। कोई भी भारतीय महिला वेटलिफ्टर कुंजरानी से ज्यादा मेडल नहीं जीत पाई है। यहीं से मीराबाई चानू ने तय कर लिया कि अब तो वजन ही उठाना है।
मीराबाई चानू ने 2014 में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में 48 किलो भारवर्ग में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता।
मीराबाई चानू रियो ओलंपिक में क्लीन एंड जर्क के तीनों प्रयासों में भार उठाने में नाकामयाब रही थीं। ये उनके लिए काफी कठिन समय रहा। 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स में मीराबाई चानू ने गोल्ड मेडल जीता।
मीराबाई चानू 2020 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली इकलौती भारतीय वेटलिफ्टर हैं।
मीराबाई चानू ने एशियन चैम्पियनशिप में 49 किलो भारवर्ग में कांस्य जीतकर टोक्यो का टिकट हासिल किया था।
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