अलविदा अरुण जेटली! जानिए कैसा था पूर्व वित्त मंत्री का वकील से राजनेता बनने तक का सफर

भारत के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली (Arun Jaitley) का निधन हो गया है। उन्हें भारतीय जनता पार्टी का संकटमोचक कहा जाता था। जानिए उन्होंने कैसे अपने पारिवारिक जीवन और राजनीति सफर में लोगों का दिल बखूबी जीता।

अरुण जेटली को 9 जुलाई की रात AIIMS में भर्ती कराया गया। (फोटो- ट्विटर)

देश के पूर्व वित्त मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दिग्गज नेता अरुण जेटली (Arun Jaitley) का दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया है। उन्हें 9 अगस्त को सांस लेने में दिक्कत होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू सहित तमाम दिग्गज नेताओं ने AIIMS पहुंचकर उनका हाल चाल जाना था।

देश के ऐसे महान नेता को खोने का गम हर किसी को है। बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने उनके निधन पर शौक जताया है। अरुण जेटल के निधन की खबर एम्स की मीडिया और प्रोटोकॉल प्रमुख आरती विज ने देते हुए कहा,’ बहुत ही दुख के साथ हमें ये जानकारी देनी पड़ रही है कि पूर्व वित्तमंत्री और सांसद अरुण जेटली जी का शनिवार को दोपहर 12.07 बजे निधन हो गया है। वह 9 अगस्त से अस्ताल में भर्ती थे और उनका इलाज वरिष्ठ डॉक्टरों की निगरानी में किया जा रहा था।,’ ऐसे में हिंदी रश आपके सामने लेकर आया है अरुण जेटली के पारिवारिक जीवन और उनके सियासी सफर की कुछ अनकहीं बातें जो शायद ही आप जानते होंगे।

अरुण जेटली का जन्म 28 दिसंबर, 1952 को दिल्ली में हुआ था।

– अरुण जेटली के पिता का नाम महाराज किशन जेटली और मां का नाम रतन प्रभा जेटली है।

– अरुण जेटली की पत्नी का नाम संगीता जेटली है। उनके बेटे का नाम रोहन जेटली और बेटी का नाम सोनाली जेटली है।

– अरुण जेटली ने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही एलएलबी की डिग्री हासिल की थी।

– अरुण जेटली 70 के दशक की शुरूआत में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल हुए थे। साल 1974 में वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष चुने गए।

– इमरजेंसी के दौरान अरुण जेटली को भी हिरासत में लिया गया था। इस दौरान उन्हें अंबाला जेल और फिर तिहाड़ जेल में रखा गया था।

– 1977 में जेटली लोकतांत्रिक युवा मोर्चा के संयोजक बनाए गए थे। जिसके बाद उन्हें दिल्ली एबीवीपी का अध्यक्ष बनाया गया। इस दौरान वह एबीवीपी की भारत इकाई में सचिव पद पर भी रहे। जेटली की राजनीति में सक्रियता को देखते हुए उन्हें बीजेपी की युवा इकाई का अध्यक्ष घोषित कर दिया गया।

– वकालत पूरी करने के बाद अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट और देश की कई हाईकोर्ट्स में प्रैक्टिस भी की थी। 1989 में उन्हें एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था।

– अरुण जेटली साल 1990 में दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील बने। 1998 में वह यूएन जनरल असेंबली भेजे गए भारतीय शिष्टमंडल में शामिल थे।

– 13 अक्टूबर, 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया था। इसके बाद जेटली विनिवेश नीति के लिए बनाए गए नए मंत्रालय के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाए गए थे।

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में अतिरिक्त प्रभार के तौर पर उनको कानून मंत्रालय भी सौंपा गया था। बाद में उन्हें इसी मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था।

– 3 जून, 2009 को राज्यसभा में उन्हें विपक्ष का नेता चुना गया। अरुण जेटली उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सदस्य भी थे।

– 26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी सरकार में उन्होंने बतौर कैबिनेट मंत्री शपथ ली थी। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वह देश के वित्त मंत्री रहे थे। कुछ समय के लिए उन्हें रक्षा मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया था।

– अरुण जेटली के वित्त मंत्री रहते हुए ही मोदी सरकार ने नोटबंदी का ऐतिहासिक फैसला लिया था। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने देश में जीएसटी लागू किया।

– अरुण जेटली आज तक लोकसभा चुनाव नहीं जीते थे। 2019 आम चुनाव में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था।

– अरुण जेटली को क्रिकेट बहुत पसंद था। वह बीसीसीआई के उपाध्यक्ष भी रह चुके थे। जेटली को राजनीति के साथ-साथ लिखना भी बहुत पसंद था। वह वकालत से संबंधित कई किताबें लिख चुके थे।

– कांग्रेस के दिवंगत नेता माधवराव सिंधिया, बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से लेकर जनता दल के शरद यादव तक, उनके क्लाइंट (वकालत के पेशे में) रह चुके थे।

– अरुण जेटली को भारतीय जनता पार्टी का संकटमोचक भी कहा जाता था। पार्टी के लिए चुनावी रणनीति तैयार करने से लेकर सरकार के अहम फैसलों तक, जेटली की अहम भूमिका रहती थी। जेटली के इतने लंबे सियासी सफर में पार्टी के लिए उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। यहीं वजह है कि उनके निधन की खबर सुनते ही सभी लोग गम में डूब गए।

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राहुल सिंह :उत्तराखंड के छोटे से शहर हल्द्वानी से ताल्लुक रखता हूं। वैसे लिखने को बहुत कुछ है अपने बारे में, लेकिन यहां शब्दों की सीमा तय है। पत्रकारिता का छात्र रहा हूं। सीख रहा हूं और हमेशा सीखता रहूंगा।