Bhishma Ashtami Date 2020: भीष्म अष्टमी का पर्व महाभारत के महान व्यक्तित्व भीष्म पितामह से जुड़ा हुआ है। इस दिन लोग भीष्म अष्टमी का व्रत रखते है। पौराणिक कथाओं के आधार पर यह पर्व भीष्म पितामह की मृत्यु का प्रतीक माना जाता है। इसी दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राण को त्यागा था। इस ख़ास दिन को भीष्म पितामह ने स्वयं ही चुना था। उसके बाद से इस दिन की महत्ता बढ़ गई।
कब है भीष्म अष्टमी 2020?
हिन्दू पंचांग के अनुसार यह त्योहार प्रति वर्ष माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। भीष्म अष्टमी का पर्व इस वर्ष 2 फरवरी को मनाया जाएगा। इसका शुभ मुहूर्त इस बार-
माघ शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि प्रारंभ: 06:08 (01 फरवरी 2020)
माघ शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि समापन: 08:00 बजे तक (02 फरवरी 2020)
भीष्म अष्टमी व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, भीष्म देवी गंगा और राजा शांतनु के आठवें पुत्र थे। जिनका मूल नाम देवव्रत था। बचपन में उन्हें इसी नाम से पुकारा जाता था। पिता को खुश करने के लिए और अपने जीवन के लिए, देवव्रत ने जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन किया। देवव्रत को मुख्य रूप से मां गंगा द्वारा पोषित किया गया था। उन्होंने शुक्राचार्य के मार्गदर्शन में महान युद्ध कौशल की शिक्षा प्राप्त की और अजेय बन गए।
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद देवी गंगा देवव्रत को अपने पिता, राजा शांतनु के पास लायीं और फिर उन्हें हस्तिनापुर का राजकुमार घोषित किया गया। इस दौरान, राजा शांतनु को सत्यवती नाम की एक महिला से प्रेम हो गया और वह उससे विवाह करना चाहते थे। लेकिन सत्यवती के पिता ने एक शर्त पर गठबंधन के लिए सहमति व्यक्त की कि राजा शांतनु और सत्यवती की संतानें ही भविष्य में हस्तिनापुर राज्य का शासन करेंगी।
देवव्रत ने अपने पिता की खातिर अपना राज्य छोड़ दिया और जीवन भर कुंवारे रहने का संकल्प लिया। ऐसे संकल्प और बलिदान के कारण, देवव्रत भीष्म नाम से पूजनीय थे। उनकी प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा कहा गया। यह सब देखकर, राजा शांतनु भीष्म से बहुत प्रसन्न हुए और इस प्रकार उन्होंने उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। अपने जीवनकाल के दौरान भीष्म को भीष्म पितामह के रूप में बहुत सम्मान मिला।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के आधार पर यह माना जाता है कि जो व्यक्ति उत्तरायण के शुभ दिन अपना शरीर त्यागता है वह मोक्ष प्राप्त करता है। इसलिए भीष्म पितामह ने भी कई दिनों तक बाणों की शैय्या पर प्रतीक्षा की और अंत में अपने शरीर को छोड़ दिया। उत्तरायण अब भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।