चैत्र नवरात्रि का आज पहला दिन है। ज्योतिषाचार्यों की माने तो इस बार चैत्र नवरात्रि 8 दिन की होगी। इन आठ में दिन में सबसे पहले नवदुर्गा के पहले स्वरूप देवी मां शैलपुत्री की पूजा होती है। आपको बता दें कि शैल का मतलब होता है पहाड़ या चट्टान। शैलपुत्री यानि पहाड़ की बेटी। कहा जाता है कि मां दुर्गा के इस रूप का जन्म राजा हिमालय के यहां हुआ। जिसकी वजह से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। मां शैलपुत्री की आराधना जीवन में स्थिरता और पवित्रता लाने के लिए की जाती है।
जैसा सभी जानते हैं कि मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं इसलिए इन्हें हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ यानि बैल है। मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है। मां शैलपुत्री की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है।
मां शैलपुत्री का मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्रव कृतशेखराम्।
वृषारुढां शूल धरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
मां शैलपुत्री की कहानी
एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ करने के लिए निमंत्रण दिया। लेकिन उन्होंने इस यज्ञ में भगवान शिव को निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तो उन्होंने वहां जाने का मन बना लिया।
अपनी यह इच्छा उन्होंने भगवान शिव को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद शिवजी ने कहा कि प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी उचित नहीं है।
भगवान शिव के इस उपदेश से सती का सहमत नहीं हुई। वहां जाकर पिता का यज्ञ देखने, माता और बहनों से मिलने के लिए वे व्याकुल हो रही थी, जिसे देखकर भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती जब अपने पिता के घर पहुंची तो किसी ने भी उनसे प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा था। सारे लोग मुंह फेरे हुए थे। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।
परिजनों के इस व्यवहार से उनको बहुत दुख उन्होंने यह भी देखा कि वहां सभी तरफ भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ था। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक शब्द भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से भर उठा। उन्होंने सोचा भगवान शिव की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
वे अपने पति भगवान शिव के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को उसी समय वहीं योगाग्नि में जलाकर भस्म कर दिया। इस घटना को सुनकर भगवान शिव क्रोधित होकर अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ को पूरी तरह से तबाह कर दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। अगल जन्म में भी ‘शैलपुत्री’ देवी का विवाह भी भगवान शिव से ही हुआ।