नहीं रहे दादासाहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित फिल्ममेकर मृणाल सेन, अपने आवास पर ली अंतिम सांस

दादासाहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित फिल्ममेकर मृणाल सेन (Mrinal Sen) का रविवार को 95 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने कोलकाता में अपने आवास पर अंतिम सांस ली।

कोलकाता में अपने आवास पर मृणाल सेन ने ली अंतिम सांस।

भारतीय फिल्मों के प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक और दादासाहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित फिल्ममेकर मृणाल सेन (Mrinal Sen) अब हमारे बीच नहीं रहे। 95 साल की उम्र में रविवार को उनका निधन हो गया। मृणाल सेन (Mrinal Sen) ने कोलकाता स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। मिली जानकारी के अनुसार, वह पिछले काफी समय से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, राजनीति और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी तमाम हस्तियों ने सेन के निधन पर शोक व्यक्त किया और ईश्वर से उनकी आत्मा को शांति देने की प्रार्थना की।

मिली जानकारी के अनुसार, रविवार सुबह करीब 10 बजे मृणाल सेन (Mrinal Sen) ने अपने कोलकाता के कोलकाता के भवानीपोर स्थित घर पर आखिरी सांस ली। सेन के निधन की खबर मिलते ही स्थानीय कलाकार उनके घर पर पहुंचने लगे। बॉलीवुड जगत के कलाकार भी ट्विटर पर सेन को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। मृणाल सेन (Mrinal Sen) का जन्म 14 मई, 1923 को फरीदपुर (जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है) में हुआ था. साल 2005 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म विभूषण’ से नवाजा था. अपनी अलग शैली से फिल्में बनाने के लिए सेन कई राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुके थे।

मृणाल सेन (Mrinal Sen) अपनी फिल्मों में समाज की सच्ची कहानियों को पर्दे पर उतारने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने ज्यादातर फिल्में बांग्ला भाषा में बनाई थीं। सेन की पहली फीचर फिल्म ‘रातभोर’ थी। इस फिल्म में उनके काम को काफी सराहा गया था। ‘नील आकाशेर नीचे’ फिल्म ने उन्होंने स्थानीय स्तर पर पहचान दिलाई। फिल्म ‘बाइशे श्रावण’ ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी एक अलग पहचान कायम कर दी। इस फिल्म के बाद भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई बड़े एक्टर्स उनके साथ काम करने की इच्छा जताने लगे।

सरकार से मिली आर्थिक मदद के बाद उन्होंने ‘भुवन शोम’ फिल्म बनाई। इस फिल्म ने उन्हें देश के दिग्गज फिल्ममेकर्स की फेहरिस्त में शामिल कर दिया था। सेन ने राजनीति से प्रेरित भी कई फिल्में बनाईं। सेन को साल 2000 में रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन ने ऑर्डर ऑफ फ्रेंडशिप सम्मान से नवाजा था। इसके बाद 2003 में उन्हें ‘दादा साहब फाल्के’ पुरस्कार दिया गया था। बताते चलें कि सेन अपनी बढ़ती उम्र को भी मात देते थे। दरअसल उन्होंने साल 2002 में 80 साल की उम्र में अपनी आखिरी फिल्म ‘आमार भुवन’ बनाई थी।

मृणाल सेन के निधन पर हर ओर शोक की लहर…

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राहुल सिंह :उत्तराखंड के छोटे से शहर हल्द्वानी से ताल्लुक रखता हूं। वैसे लिखने को बहुत कुछ है अपने बारे में, लेकिन यहां शब्दों की सीमा तय है। पत्रकारिता का छात्र रहा हूं। सीख रहा हूं और हमेशा सीखता रहूंगा।