बुराई पर अच्छाई का पर्व दशहरा (Dussehra 2019) आज पूरे देश में मनाया जा रहा है। इसे विजयदशमी (Vijayadashami 2019) अथवा आयुध-पूजा (Aayudh Pooja) के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। 20 दिन बाद वह अयोध्या लौटे, तो अयोध्या वासियों ने उनके आगमन पर पूरे नगर में दीप प्रज्वलित कर श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और उनकी सेना का भव्य स्वागत किया था। इस दिन को वर्तमान में दिवाली (Diwali 2019) के तौर पर मनाया जाता है।
विजयदशमी 2019 का शुभ मुहूर्त
सप्तमी से दुर्गा पूजा (Durga Pooja) की शुरूआत भी हो चुकी है और दशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है। दशहरा के दिन दोपहर 1:42 बजे से ‘विजय मुहूर्त’ शुरू हो रहा है। यह दोपहर 2:29 बजे तक रहेगा। इस मुहूर्त में किसी भी कार्य की कामना को लेकर की गई पूजा जरूर विजय दिलवाती है। यही कारण है कि इसे ‘विजय मुहूर्त’ कहा जाता है। वैसे दशमी तिथि 7 अक्टूबर से दोपहर 12:39 बजे से शुरू हुई।
मां दुर्गा ने किया था महिषासुर का वध
विजयदशमी पर्व को भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध करने और सीता माता को उसकी कैद से छुड़ाने के तौर पर जाना जाता है। साथ ही इस दिन मां दुर्गा ने 9 दिनों तक चली लड़ाई के बाद महिषासुर राक्षस का भी संहार किया था। यही वजह है कि इस दिन मां दुर्गा की भी पूजा की जाती है।
क्यों खाते हैं दशहरा पर जलेबी?
कई राज्यों में दशहरा पर जलेबी खाने का भी रिवाज है। विजयदशमी पर लोग जलेबी खाते हैं और घर भी ले जाते हैं। दरअसल भगवान राम को शश्कुली नामक मिठाई अत्यधिक पसंद थी। जलेबी इसी मिठाई का रूप है। रावण के पुतले के दहन के बाद लोग जलेबी खाकर खुशी मनाते हैं। दशहरा पर रामलीला स्थल या मेले में किसी चीज का स्टॉल आपको मिले या ना मिले, जलेबी का स्टॉल आपको जरूर मिल जाएगा।
बिसरख गांव में नहीं होती रामलीला
उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के पास स्थित बिसरख गांव में ना ही रामलीला होती है और ना ही रावण का पुतला दहन होता है। शिवपुराण में इस गांव का जिक्र किया गया है। शिवपुराण के अनुसार, त्रेता युग में रावण का जन्म इसी गांव में हुआ था। रिपोर्ट्स के अनुसार, करीब 70 साल पहले इस गांव में रामलीला का आयोजन किया गया था। इस दौरान गांव में एक मौत हो गई थी। इस वजह से रामलीला पूरी नहीं हो पाई। गांव वालों ने एक बार फिर रामलीला का आयोजन कराया, तो एक पात्र की मौत हो गई। जिसके बाद से इस गांव में ना ही रामलीला होती है और ना ही रावण का पुतला दहन। इस गांव के लोग रावण का उनके गांव में जन्म होने की वजह से गौरवान्वित महसूस करते हैं।