जन्माष्टमी के साथ-साथ आज गोवर्धन पूजा (Govardhan Parvat Pooja) है। इस दिन लोग में गोवर्धन पर्वत की पूजा और परिक्रमा करते हैं। गोवर्धन पर्वत का धार्मिक महत्व है। कहा जाता है कि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने वाले की मनोकामना पूरी हो जाती है। वैसे तो रोजाना हजारों श्रीकृष्ण भक्त इस पर्वत की 21 किलोमीटर की परिक्रमा करते हैं। गोवर्धन पर्वत आस्था का पर्वत है। कहा जाता है कि आस 5 हजार साल पहले यह पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा था, जो कि अब 30 मीटर ही रह गया है। माना जाता है कि पुलस्त्य ऋषि के श्राप की वजह से धीरे-धीरे घट रहा है। इसकी इसकी परिक्रमा के दौरान 21 पवित्र और पूजा की जगह आती हैं। यहां का माहौल ऐसा की अपने आप ही लोग भक्तिमय हो जाते हैं।
मान्यता है कि एक बार श्रीकृष्ण (Lord Krishna) गाय चराकर वापस घर लौटे, तो यशोदा मैया ने उन्हें बताया कि वह भगवान इंद्र की पूजा की तैयारी कर रही हैं। भगवान इंद्र बारिश करते हैं जिससे अन्न होता है और उनसे पशुओं को चारा मिलता है। तभी श्रीकृष्ण ने मैया को कहा कि हम सभी को गोवर्धन पूजा करनी चाहिए, क्योंकि इसी पर्वत पर गाएं चरती हैं। उन्होंने कहा कि इंद्र तो कभी दर्शन नहीं देते हैं। इस बात से क्रोधित होकर इंद्र ने भयंकर बारिश कर दी। जब कई दिनों तक बारिश नहीं रुकी तो श्रीकृष्णन ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर लोगों को बारिश और बाढ़ बचाया। इसके बाद इंद्र का इगो शांत हुआ। इसके बाद से ही लोद गोवर्धन पर्वत की पूजा और परिक्रमा करने लगे। और फिर यह एक परंपरा बन गई।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के दौरान पड़ने वाले पवित्र स्थान्न-
गिरिराज मंदिर में पूजा
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से पहले लोग गिरिराज मंदिर में लोग पूजा करते हैं। गोवर्धन पर्वत से यात्रा शुरू करने के बाद पहला मंदिर यही आता है। यहां पर साक्षी गोपालजी की मूर्ति है।
श्रीराधा-गोविंद मंदिर
इस मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के पोते वज्रनाभी ने करवाया था। यह मंदिर प्राचीन काल का बताया जाता है। यहां पर एक भव्य गोविंद कुंड भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार गिरिराज गोवर्धन की पूजा से इंद्र ने कुपित होकर ऐसी भीषण वर्षा की, जिससे ब्रज डूबने लगा और तब बालकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर डूबते ब्रज को बचाया था। पराजित होकर इंद्र श्रीकृष्ण की शरण में आए और कामधेनु के दूध से उनका अभिषेक किया।
छरी का लौठा स्थित मंदिर और छतरी
परिक्रमा मार्ग पर पूंछरी लौठा नामक जगह पर बेहद पुराना भवन है, इसे छतरी कहते है। साधु गोविंद दास ने बताया कि यहां पर संत, साधु रहकर श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत का भजन करते हैं। यहां साधुओं का आना-जाना लगा रहता है। इसी जगह के पास एक मंदिर भी है।
हरजी कुंड
परिक्रमा मार्ग पर हरजी कुंड है। इस कुंड के संचालन समिति के अध्य्क्ष विश्वनाथ चौधरी ने बताया कि हरजी श्रीकृष्णके सखा थे। वह कृष्ण के साथ गाय चराने जाया करते थे। यहां पर दोनों की लीलाएं हुई थीं। इसी वजह से इस कुंड का बहुत महत्व है। वर्तमान में इस कुंड का पानी गंदा और मटमैला हो गया है। यहां के निवासी उमेश सिंह कहते हैं कि कुंड का रखरखाव ठीक से नहीं किया जा रहा है।
रूद्र कुंड
यहां पर विशाल रूद्र कुंड है जहां श्रीकृष्ण की लीला हो चुकी है। बाद में यहां पर अवैध कब्जा हो गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर अवैध कब्जा हटा दिया गया। अब इस कुंड का निर्माण फिर से हो रहा है।
धाकृष्ण मंदिर और कलाधारी आश्रम
यहां राधाकृष्ण का मंदिर है। इस मंदिर में परंपरा के तहत आश्रम संत सेवा काफी सालों से चल रहा है। करीब 70 साल पहले इसकी स्थापना हुई थी। हर दिन यहां पर 40 से 50 संत आते-जाते रहते हैं। यहां पर सौ गाएं पाली गई हैं। संत राघवदास कहते हैं कि हमेशा से यह आश्रम संतों की सेवा में लगा है।
ठाकुर जी बिहारीजी महाराज मंदिर
इस मंदिर के महंत सुखदेव दास हरी वंशी वाले ने बताया कि मंदिर बेहद पुराना है और इसकी स्थापना काल के बारे में कुछ पता नहीं है। इसे मैथिल ब्राह्मण समाज के लोग चलाते हैं।
लक्ष्मी वेंकटेश मंदिर, गऊघाट
इस मंदिर की स्थापना साल 1963 में दक्षिण भारतीय परंपरा से हुई थी। यह मानसी गंगा के बीच में स्थित है। स्वामी राम प्रपन्नाचार्य ने बताया कि पूजा की परंपरा दक्षिण भारतीय है।
चूतड़ टेका मंदिर
पंडित केशवदेव शर्मा ने बताया कि जब श्रीराम को लंका जाने के समय समुद्र पर पुल की आवश्यकता हुई तो पत्थर मंगवाए गए। उस वक्त हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत के पास गए। तब द्रोणगिरी ने अपने बेटे गिरिराज (गोवर्धन पर्वत) को इस कार्य के लिए भेजा। हनुमान जी गोवर्धन को लेकर समुद्र किनारे जा रहे थे, तभी आदेश हुआ कि अब पत्थरों की जरूरत नहीं है। इस बीच हनुमान जी ने गोवर्धन पर्वत को यहीं पर रख दिया। वे यहां बैठे भी थे। इसलिए इस जगह का नाम चूतड़ टेका हो गया। दूसरी कथा के अनुसार भयंकर बारिश के दौरान ब्रज को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। इसके बाद श्रीकृष्ण ने लोगों के साथ पर्वत की परिक्रमा की थी। इस दौरान श्रीकृष्ण यहीं पर बैठे थे। तब से इस जगह को चूतड़ टेका भी कहते हैं।
केदारनाथ धाम माता वैष्णो देवी मंदिर
इस मंदिर का निर्माण केदारनाथ नामक व्यक्ति ने करवाया है। केदारनाथ ने बताया कि 50 साल पहले गौसेवा और धर्मार्थ के लिए मंदिर की स्थापना की गई थी।
राधाकृष्ण मंदिर
इस मंदिर को कुछ दशक पहले आम लोगों ने बनवाया है। यहां पर राधाकृष्ण की प्रतिमा है।
उद्धव कुंड
जब श्रीकृष्ण मथुरा से द्वारिका चले गए थे, तब उन्होंने उद्धव को मथुरा में गोपियों का हाल जानने के लिए भेजा था। बताया जाता है कि यहां पर उद्धव जी महाराज कुंड में विराजमान हैं।
विट्ठल नामदेव धाम
परिक्रमा मार्ग पर विट्ठल नामदेव मंदिर है। भक्त यहां पर आकर भगवान को नमन करते हैं और फिर आगे बढ़ते हैं।
यहां देखिए श्रीकृष्णा के पॉपुलर भजन…