यूपी के मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि स्थित है। वहां लगभग पांच हजार साल पहले राजा कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था। आज ये क्षेत्र कटरा केशवदेव नाम से जाना जाता है।
कंस का वो कारागार जहां भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था, उसे बाद में केशवदेव के मंदिर के रूप में बनवाया गया। इसी मंदिर के आसपास आज की मथुरा नगरी विकसित हुई। इतिहासकारों की मानें तो मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के स्थान पर अब तक चार बार मंदिर का निर्माण हो चुका है।
यह भी कहा जाता है कि कभी यहां बहुत विशाल और भव्य मंदिर हुआ करता था। वर्तमान में इस जगह पर मालिकाना हक को लेकर दो पक्षों में विवाद चल रहा है। कटरा केशवदेव और आस-पास के इलाकों को ही मथुरा के रूप में जाना जाता जाता था।
इतिहासकार डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने भी कटरा केशवदेव को ही कृष्ण जन्मभूमि माना है। विभिन्न अध्ययनों और साक्ष्यों के आधार पर मथुरा के राजनीतिक संग्रहालय के दूसरे कृष्णदत्त वाजपेयी ने भी स्वीकारा कि कटरा केशवदेव ही कृष्ण की असली जन्मभूमि है।
ऐसा माना जाता है कि इस जगह पर सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की याद में मंदिर बनवाया था। आम लोगों का मानना है कि यहां से मिले शिलालेख ब्राह्मी-लिपि में लिखे हुए हैं। इससे ये पता चलता है कि यहां शोडास के राज्य काल में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था।
इतिहासकारों के अनुसार, यहां दूसरा बड़ा मंदिर 400 ईसवी के आसपास सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में बनवाया गया था। उस समय मथुरा संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हुआ था। इस दौरान यहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी विकास हुआ था। इस दौरान मथुरा के आसपास बौद्धों और जैनियों के भी विहार और मंदिर भी बने।
इन निर्माणों के प्राप्त अवशेषों से यह पता चलता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान उस समय बौद्धों और जैनियों के लिए भी आस्था का केंद्र रहा था। इतिहासकारों के मुताबिक, सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए इस भव्य मंदिर पर महमूद गजनवी ने सन 1017 ईस्वी में आक्रमण कर इसे लूटने के बाद तोड़ दिया था।
एक संस्कृत शिलालेख से पता चलता है कि 1150 ईस्वी में राजा विजयपाल देव के शासनकाल के दौरान जज्ज नाम के एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नया मंदिर बनवाया था। उसने भी यहां एक विशाल और भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर को 16वीं शताब्दी के शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर डाला गया था।
इसके लगभग 125 वर्षों बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने सन 1669 में इसे तुड़वा दिया और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया।
इस मंदिर के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा मौजूद था। मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था। इस कुएं से पानी 60 फीट की ऊंचाई तक ले जाकर मंदिर के प्रांगण में बने फव्वारे को चलाया जाता था। इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद है।