और हर साल की तरह इस बार भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जा रही है। श्रीकृष्ण की तरह उनकी लीलाएं भी अपरम्पार हैं। कृष्ण लीलाओं के चर्चे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। उन्हीं में से एक लीला है रासलीला। ऐसा माना जाता है कि वृंदावन में स्थित निधिवन में कृष्ण गोपियों संग रास रचाते थे। यह क्रम आज भी जारी है। इसलिए सुबह से दर्शन के लिए खुला रहने वाला निधि वन शाम को बंद हो जाता है। वहां कोई नहीं रुकता है।
मान्यता ऐसी भी है कि निधिवन में जो भी रुका उसने या तो अपना मानसिक संतुलन खो दिया या फिर उसकी मौत हो गई। निधि वन के मुख्य गोसाईं भीख चंद्र गोस्वामी की मानें तो बंदर और चिड़िया भी शाम होते ही इसे खाली कर देते हैं। दिनभर उनकी मौजूदगी के बाद शाम होते ही सन्नाटा छा जाता है। उनका कहना है कि सिर्फ निधि वन ही नहीं बल्कि थोड़ी दूर स्थित सेवाकुंज में भी गोपाल-कृष्णा रास रचाते हैं जोकि राधा रानी का मंदिर है।
बताया जाता है कि करीब 10 साल पहले संतराम नामक एक राधा-कृष्ण का भक्त था। वह जयपुर से आया था। वह भगवान की भक्ति में इतना लीन हो गया कि उसने रासलीला देखने की ठान ली और चुपके से निधिवन में छिपकर बैठ गया। सुबह जब मंदिर के पट खुले तो वह बेहोश था। संतराम जब होश में आया तो वह अपना मानसिक संतुलन खो चुका था। इस घटना के करीब 5 साल बाद संतराम ठीक हो सका था।
निधि वन की भूमि बहुत पवित्र मानी जाती है। यहा के पेड़ की डालें आसमान की ओर बढ़ने की बजाए, नीचे जमीन की ओर आती हैं। निधिवन के एक पुजारी के मुताबिक, यहां नंद गोपाल की चरणों में सिर्फ भक्त ही नहीं, बल्कि पेड़ पौधे भी उनकी मिट्टी में ही समा जाना चाहते हैं। इसलिए यह पेड़ हमेशा जमीन की ओर बढ़ते हैं। आलम यह है कि रास्ता बनाने के लिए इन पेड़ों को डंडे के सहारे रोका गया है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, निधि वन के अंदर बने ‘रंग महल’ में रोज रात को कन्हैया आते हैं। रंग महल में राधा और कन्हैया के लिए रखे गए चंदन की पलंग को शाम सात बजे के पहले सजा दिया जाता है। पलंग के बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन संग पान रख दिया जाता है। सुबह पांच बजे जब ‘रंग महल’ का पट खुलता है तो बिस्तर अस्त-व्यस्त, लोटे का पानी खाली, दातुन कुची हुई और पान खाया हुआ मिलता है।
ऐसी मान्यता है कि रात के समय जब कन्हैया आते हैं तो राधा जी रंग महल में श्रृंगार करती हैं। चंदन के पलंग पर कन्हैया आराम करते हैं। उसके बाद राधा जी के संग ‘रंग महल’ के पास बने ‘रास मंडल’ में रास रचाते हैं। मान्यता है कि जब राधा संग कृष्ण वन में रास रचाते हैं तब यही जोड़ेदार पेड़ गोपियां बन जाती हैं। जैसे ही सुबह होती है तो सब फिर तुलसी के पेड़ में बदल जाती हैं। निधि वन में ही वंशी चोर राधा रानी का भी मंदिर है।