श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम हर तरफ है। बड़ी संख्या में लोग मथुरा और वृंदावन जाकर कान्हा की पूजा कर रहे हैं। यहां जाने वाले भक्त गोवर्धन पूजा करना नहीं भूलते हैं। गोवर्धन पर्वत का बहुत ही ज्यादा धार्मिक महत्व है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि इसकी परिक्रमा करने से मांगी गई सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। यह आस्था का अनोखा मिसाल है। इसीलिए तिल-तिल घटते इस पहाड़ की लोग लोट-लोट कर परिक्रमा पूरी करते हैं।
हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर यहां आते हैं और 21 किलोमीटर के फेरे लगाते हैं। श्रद्धाभाव का आलम यह है कि सालोंभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। लोग सर्दी, गर्मी और बरसात की परवाह किए बिना ही 365 दिन यहां श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।
बताया जाता है कि पांच हजार साल पहले गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था। अब इसकी ऊंचाई करीब 30 मीटर ही रह गई है। पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह धीरे-धीरे घट रहा है। इसकी परिक्रमा के रास्ते में 21 पूजनीय स्थल हैं। सभी का अपना इतिहास है। यहां का माहौल देखकर ही लोग भक्ति भावना में डूब जाते हैं। यही कारण है कि तीर्थयात्रियों को इस सफर का पता ही नहीं चलता और अलौकिक आनंद की प्राप्ति भी हो जाती है।
क्यों शुरू हुई गोवर्धन परिक्रमा
एक बार श्रीकृष्ण गाय चराकर नंदभवन लौटे तो मां यशोदा ने उन्हें बताया कि देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी हो रही है। इंद्र वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है और उनसे गायों को चारा मिलता है। इस पर श्रीकृष्ण ने मां को सुझाव दिया कि हम सभी को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि इसी पर्वत पर गाएं चरती हैं।
उन्होंने कहा कि इंद्र तो कभी दर्शन नहीं देते हैं। इस बात से क्रोधित होकर इंद्र ने भयंकर बारिश कर दी। जब घंटों बारिश नहीं रुकी तो श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रज को बारिश और बाढ़ से बचाया। इसके बाद इंद्र का अभिमान शांत हुआ। इस घटना के बाद श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों के साथ पर्वत की परिक्रमा की थी। यहीं से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का चलन शरू हो गया।
21 किलोमीटर की पैदल परिक्रमा करने में करीब 12 घंटे का वक्त लगता है, जबकि वाहन से तीन-चार घंटे में परिक्रमा पूरी हो जाती है। लोग लेटकर भी परिक्रमा करते हैं। यह बेहद कठिन होता है। लेटकर परिक्रमा पूरी करने में सात दिन का वक्त लगता है। यहां आने वाले लोग गोवर्धन पर्वत पर बने गिरिराज मंदिर में पूजा करते हैं। इसके बाद परिक्रमा के लिए चल देते हैं।