कुम्भ मेला 2019 (Kumbh Mela 2019) का आगाज मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के दिन से शुरू होने वाला है। इसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खासी तैयारी में हुए हैं। इनके अलावा मकर संक्रांति के दिन प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में शाही स्नान को लेकर साधु-संतों, औघड़-नागा बाबाओं और श्रद्धालुओं में उत्सुकता है।
मकर संक्रांति के दिन अपने प्रदर्शन और बल के आधार पर संगम पर स्नान करने के लिए सभी 13 अखाड़ों के साधु संत पूरी तैयारियों के साथ आते हैं। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन संगम पर सबसे पहले नागा साधु या सन्यांसी अखाड़े के बाबा स्नान करते हैं। यहां नागा साधु (Naga Sadhu) लोगों के आर्कषण मुख्य केंद्र होते हैं। वह बिना किसी वस्त्र के कुंभ मेले में स्नान करने आते हैं। लोगों उनके दर्शन मात्र और चरण स्पर्श से अपने जीवन को सफल मान लेते हैं।
लेकिन क्या आप जानते है नागा साधु कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं। नहीं तो यहां हम आपको बताएंगे की नागा साधु कहा से आते हैं और कहां जाते हैं? और कुम्भ मेले से पहले क्या करते हैं और अपने यहां नागा साधुओं की भर्ती कैसे करते हैं? यहां हम आपको बताएंगे उनके जीवन से जुड़े रहस्य जो आप नहीं जानते।
यहां हम आपको बताएंगे नागा बाबाओं के जीवन के बारे में…
नागा साधु बनने के लिए एक साधु या संत को कई मुश्किलों और बाधाओं को का सामना करना होता है। नागा साधु बनने के लिए कुछ नीतियां और नियम होते हैं जिसका पालन उन्हें आजीवन करना होता है। किसी साधु या संत के नागा साधु बनने में लगभग छह साल लगते हैं। इस दौरान वह सिर्फ एक लंगोट में रहते हैं और कुम्भ मेले में स्नान के बाद लंगोट का त्याग कर देते हैं।
ये जितना आसान सुनने में लगता है वास्तविकता में उतना आसान नहीं है। इन छह सालों के दौरान नागा साधु को कड़ी परीक्षा और कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। और इन सबसे पहले नागा साधु की योग्यता के लिए भी परीक्षा देनी होती है। काफी जांच-पड़ताल के बाद ही किसी का साधु को नागा साधु बनने की दीक्षा देना शुरू करते हैं।
करनी होती है गुरुओं की सेवा और देनी होती है परीक्षाएं
जांच पड़ताल के बाद उसे नागा अखाड़े में शामिल किया जाता है और पहले साल नागा गुरुओं की सेवा करनी होती है। इसके साथ-साथ धर्म-कर्म और अखाड़ों के नियमों को जानना समझना होता है। इस दौरान उनके ब्रह्मचर्य की भी परीक्षा ली जाती है। इसके बाद अगर वे इसमें सफल हो जाते हैं तो उनके गुरु उन्हें अगले पड़ाव के भेजते हैं। और ये पड़ाव कुम्भ मेले के दौरान शुरू होता है। उसे संगम में डुबकी लगवाई जाती है और मंत्रोच्चार के जरिए उसे नागाओं की प्रतिबद्धता दिलाई जाती है।
पहाड़ों-जंगलों में रहते हैं
इसके बाद उनकी परीक्षा के आगे चरण चलते हैं। उनका मुंडन किया जाता है। जहां-जहां कुंभ का मेला लगता है, वहां-वहां उनको स्नान करना होता है। तब जाकर वह नागा साधु बनते हैं। लेकिन पूरी तरह से नहीं। इसके बाद भी नागा बन चुके साधुओं को सर्दी, गर्मी और बारिश में जंगल, हिमालय, पहाड़ों और पठारों में कठोर तपस्या, योग, पूजा और अनुष्ठान करना होता है। नागा साधु भस्म लगाते हैं। चिमटा और रुद्राक्ष धारण करते हैं। वह हमेशा धरती पर सोते हैं। वह मंदिरों और आश्रमों मे रहते हैं।
दिन में सिर्फ सात घरों से मांगते हैं भीख
कहा जाता है कि नागा साधु गांव और आबादी दूर अपनी झोपड़ी बनाकर डेरा डालते हैं। वह भ्रमण के दौरान भीख मांगते है। वह एक दिन में सिर्फ 7 घरों से भीख मांगते हैं। इन सात घरों में उन्हें जितना भी मिला, उसी में ही अपना गुजारा चलाते हैं। अगर इन 7 घरों उन्हें कुछ नहीं मिला तो वह भूखे सोते हैं। वह दिन में एक बार खाना खाते हैं। इसके अलावा नागा साधु युद्ध कौशल में भी निपुण होते हैं। उन्हें तलवारबाजी, लठ्ठबाजी और अन्य औजार चलाना भी सिखाया जाता है। उनके पास त्रिशूल और भाले होते हैं।
योग्यता और कर्म के आधार पर पद
दीक्षा पूरी होने के बाद उनकी योग्यता, कर्म और सेवा के आधार पर पद दिए जाते हैं। एक राज्य या संगठन की तरह नागा साधु के अखाड़ें चलते हैं। अखाड़ों की रक्षा के लिए कोतवाल और बड़ा कोतवाल, पूजा के लिए पुजारी, खाने और धन के भंडार के लिए भंडारी, आश्रम के लिए कोठारी और बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, दिगंबर श्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर नाम से कई पद होते हैं।
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