Lachhu Maharaj Interview: तबला के धुरंधर उस्ताद पंडित लच्छू महाराज को आज देश याद कर रहा है। गूगल ने भी उनकी जयंती के मौके पर डूडल बनाकर याद किया। जिसने केवल तबला से देश-विदेश में नाम कमाया। ऐसे फक्कड़-अल्हड़ और मस्तमौला कलाकार ने ना केवल कला के क्षेत्र में बल्कि राजनीति के क्षेत्र में भी ऐसे कारनामे किए कि सत्ता की घिग्घी बंध गई। अपनी कलाकारी के दम पर इन्होंने देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira gandhi), चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) और मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra modi) को चुनौती दी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और चंद्रशेखर को एक प्रकार से सबक सीखाया। इनके जज्बे के कारण कोई चूं तक नहीं कर पाया।
पंडित लच्छू महाराज का जिस वर्ष निधन हुआ उसी साल उन्होंने चौथी दुनिया को एक इंटरव्यू दिया था। उस दौरान उन्होंने कला-संगीत और देश की राजनीति पर खुल कर बात रखी। लेकिन किसे पता था कि वो साल उनके लिए आखिरी था, कौन जानता था कि फिर वो कभी बोल ना पाएंगे। पर जो उन्होंने कहा वो बातें हमारे लिए प्रेरणादायी हैं। आज भी हम किसी कलाकार को भटकते या कला को विलुप्त होते देखते हैं तो इनकी बातें कुरेदती हैं। लेकिन जाते-जाते उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कुछ कहा था। उनके शब्द में गुस्सा था लेकिन एक आशा भी दिखती है।
नरेंद्र मोदी को कहा
पंडित लच्छू महाराज ने संगीत-साधना और सरकार को लेकर किए गए एक सवाल पर कहा था कि संगीत के प्रति समपर्ण होना जरूरी है। जिस तरह का वातावरण चाहिए उस तरह का माहौल है ही नहीं। ऐसे में जरूरी है कि सरकार युवाओं को जागृत करने के लिए ठोस कदम उठाए। एक ऐसा माहौल बनाए जिसमें सृजन के बीज अंकुरित हो कर पौधा, फिर वृक्ष बनें। आज संस्कृति-संस्कार सूखते जा रहे हैं। ऐसे में सत्ताधारियों को आगे आकर इसे बचाना चाहिए। देश को नरेंद्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री मिला है, खुद वे अपने कर्म के प्रति समर्पण की बात कहते हैं, तो उन्हें संगीत की विधा के विकास के लिए सोचना चाहिए। देश से अगर वास्तविक प्रेम हो तो प्रधानमंत्री को ऐसा करना चाहिए। अब हमारी यह इच्छा नहीं कि भीख में तुम जमीन दे दो और हम चार सौ बीसी का धंधा शुरू करें।
पूर्व पीएम चंद्रशेखर को सबक
ऐसे बहुत कम कलाकार होते हैं जो कि सत्ता को ठोकर मारते हैं। यदि बात पंडित लच्छू महाराज की जाए तो वे सम्मान और सुख में विश्वास नहीं करते थे। इसके साथ ही वे समय के प्रति पाबंद थे। वे अपने इंटरव्यू में इस बात का जिक्र करते हैं कि चंद्रशेखर जी जिस समय देश के प्रधानमंत्री थे, उस समय पद्मश्री पुरस्कार के लिए मेरा नाम चुना गया था। तब मुझसे बात करने के लिए प्रधानमंत्री दफ्तर के किसी अधिकारी का मेरे यहां वाराणसी आना तय हुआ था। उनकी तरफ से 11 बजे दिन में आना तय किया गया था। लेकिन वे दोपहर दो बजे के बाद मेरे घर पहुंचे। उस वक्त उन्होंने पीएमओ के अधिकारियों को नीचे से ही लौटा दिया। वे उस समय शिष्यों को सिखाने में व्यस्त थे। उन्होंने कहा था, ‘जिसे लोभ-लिप्सा हो, वह सब कुछ छोड़ कर पद्म पुरस्कार के लिए जतन करे। मैंने तो अधिकारी महोदय को वापस कर दिया और फिर कभी चंद्रशेखर जी से इस बारे में कुछ कहा भी नहीं।’
नेहरू प्रेम और इंदिरा गांधी का विरोध
पंडित लच्छू महाराज का सत्ता के साथ कभी बना ही नहीं। अपनी पूरी जिंदगी में वे सत्ता के साथ भिड़ते नजर आते हैं। संगीत प्रेमियों से उनको इतना प्यार मिल रहा था कि उनको और कुछ की लालसा नहीं थी। वैसे तो कहा जाता है कि नेहरू परिवार के साथ पंडित लच्छू महाराज के बहुत अच्छे संबंध थे। इनके परिवारिक संबंध बेहतर थे। लेकिन जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी। 1975 में जब आपातकाल लगा तब वे भी जेल गए। जेल के अंदर मशहूर समाजवादी नेताओं जॉर्ज फर्नांडिस, देवव्रत मजुमदार और मार्कंडेय को तबला बजाकर सुनाया करते थे। दरअसल, जेल में तबला के जरिए वे विरोध जता रहे थे। आखिरकार बाद में उनको रिहा कर दिया गया।
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