जब पूरा भारत मकर संक्रांति (Makar Sankranti), पोंगल(Pongal), लोहड़ी(Lohri) जैसे त्यौहार मनाता है, तब पूर्वोत्तर के असम में ‘माघ बिहू’ की धूम होती है। हालांकि ये सभी त्यौहार लगभग एक ही जैसे है। इन सभी त्यौहार में नेचर और एग्रीकल्चर को महत्व दिया जाता है। देश की संस्कृति और विभिन्नता के चलते एक ही त्यौहार को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।
‘माघ बिहु’ (Magh Bihu) को 14 जनवरी के दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठते है अपने घरों को साफ कर और नये कपड़े पहनते हैं। असम के लोग अपने गाय के उपले और लकड़ियां इकट्ठाकर आग लगाकर उसमें अपने पुराने कपड़े जलाते हैं। इसके बाद अपने पशुओं, खेतों और धरती मां की पूजा करते हैं। हिंदू माइथोलॉजी के अनुसार कुछ लोह भगवान इंद्र की भी पूजा करते हैं और बारिश और मौसम की कामना करते हैं, जिससे की उनकी फसलें उच्छी हों।
बिहू पर बनाते हैं सुंगा पिठा…
बनाए जाते हैं यह पकवान
बिहु पर्व की शाम को परिवार के सभी सदस्य इकट्ठा होते हैं और चावल, सब्जी और मीट से कई तरह के पकवान बनाते हैं। लोग सबसे प्रिय पिठा बनाते हैं। पिठा में भी लोग शुगना पिठा, तिल पिठा, तिल-गुड़-नारियल के लड्डू की मिठाई बनाते है, जिसे लारु नाम से जानते हैं। बिहू पर्व लगभग एक सप्ताह तक मनाया जाता है। इस दौरान परिवार के लोग, पड़ोसी और दोस्त एक-दूसरे को बधाइयां देते हैं और आग के चारों ओर घूम कर पारंपरिक डांस करते हैं। पारंपरिक गेम्स खेलते हैं।
ये है परंपरा
इसके अलावा अन्य परंपराओं के मुताबिक, गांव के कुछ यंग लड़के मिट्टी और लकड़ियों से टेंपरेरी हट्स बनाते हैं, जिसे ‘मेजिस’ के नाम से जाना जाता है। ‘मेजिस’ में जब पूरा परिवार अस्थायी तौर पर शिफ्ट हो जाता है तब इसे ‘बेलाघर’ बोलते हैं। परिवार ‘बेलाघर’ में रुकते हैं और मेजिस की रखवाली करते हैं। परिवार एवं समुदाय के लोग रातभर सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं। सुबह लोग अपने ‘बेलाघर’ से बाहर निकलते हैं और नदी में नहाते हैं और अपने मेजिस को जला देते हैं। जब ‘मेजिस’ जल जाती है, तब जले हुए लकड़ियों को टुकड़े और राख को इकट्ठा कर अपने खेतों में डाल देते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से फसले बहुत ही अच्छी होती हैं।
देखिए रणवीर सिंह का यह वीडियो…
देखिए बिहू से जुड़ी बेहतरीन तस्वीरें…