30 जनवरी 1948 भारत के इतिहास में सबसे दर्दनाक और दुख भरे दिन के रूप में दर्ज किया गया। इस दिन देश के बापू महात्मा गांधी जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। नाथूराम गोडसे द्वारा चलाई गई गोलियां से छलनी होने के बाद महात्मा गांधी ने जो आखिरी शब्द अपने मुंह से निकले थे वो थे हे राम। ऐसे में हम आपको बताएंगे की देश के पिता महात्मा गांधी ने किस तरह से अपने जीवन का आखिरी दिन बिताया था। साथ ही उनकी मौत की खबर का असर भारत पर ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर भी देखने को मिला था।
30 जनवरी 1948 की शुरुआत भी बाकी दिनों की तरह ही हुई। इस दिन भी बापू की आंख साढ़े तीन बजे खुल गई। बापू ने प्रार्थना करने के बाद दो घंटे कांग्रेस की नई जिम्मेदारियों के ड्राफ्ट पर काम किया। काम के दौरान वह अपनी सहयोगियों मानु और आभा द्वारा बनाए गए नींबू और शहद वाला गर्मा पानी पीत रहे। बाद में दूसरे लोगों के उठने से पहले ही वह 6 बजे फिर से सोने चले गए। इसके बाद उनकी आंख सीधा 8 बजे खुली।
कराई तेल से मालिश, पिया बकरी का दूध
उठने के बाद उन्होंने अखबारों को पढ़ा और ब्रजकृष्ण से तेल की मालिश करवाई। नहाने के बाद उन्होंने खाना खाया। उनके खाने में बकरी का दूध, उबली हुई सब्जियां, टमाटर और मूली खाई और संतरे का जूस शामिल था। जहां एक तरफ महात्मा गांधी अपने दिन की शुरुआत कर चुके थे।तो वहीं, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे और विष्णु करकरे अभी भी सो रहे थे।
गांधी जी से मिलने उस दिन डरबन के उनके पुराने दोस्त रुस्तम सोराबजी अपने पूरे परिवार के साथ आए थे। उनसे मिलने के बाद गांधी जी ने हमेशा की तरह दिल्ली के मुस्लिम नेताओं से मुलाकात की। गांधी जी ने उनसे कहा,’ मैं आप लोगों की सहमति के बिना वर्धा नहीं जा सकता हूं।’
उधर गांधी जी के करीबी सुधीर घोष के साथ-साथ सचिव प्यारे लाल ने गांधी जी से नेहरू और पटेल के बीच में चल रहे विवाद को लेकर लंदन टाइम्स में छपी एक टिप्पणी पर उनकी राय मांगी। जिसके जवाब में गांधी जी ने कहा कि वह इस मामले को चार बजे उठाएंगे जिस वक्त पटेल उनसे मिलने आ रहे हैं और बाद में वह नेहरू से भी इस बारे में बात करेंगे जिनसे उनकी मुलाकात शाम सात बजे होने वाली थी।
इधर बिरला हाउस के लिए निकलने से पहले नाथूरामा गोडसे कहते है कि उनका मूंगफली खाने का मन कर रहा है। फिर क्या था आप्टे उनके लिए मूंगफली लाने के लिए निकल गए लेकिन कुछ देर बाद आकर वह बोले,’ पूरी दिल्ली में कहीं भी मूंगफली नहीं मिली। क्या काजू या फिर बादाम से काम नहीं चल सकता?’
गोडसे का मन तो मूंगफली के लिए ही बना हुआ था। ऐसे में आप्टे ने एक बार फिर कोशिश की और इस बार वो कामयाब भी हुए। वह एक बड़ा सा मूंगफली का लिफाफा लेकर गोडसे के वापस लौटे। गोडसे मूंगफलियों देखकर उस पर टूट पड़े लेकिन आप्टे उनसे कहने लगे कि अब वक्त चलने का हो गया है।
वहीं, सवा चार बजे नाथूरामा गोडसे ने अपने साथियों के साथ मिलकर कनॉट प्लेस के लिए एक तांगा लिया। वहां पहुंचने के बाद उन्होंने एक और तांगा लिया और बिरला हाउस से कम से कम दो सौ गज पहले ही वह उतर गए।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की वजह से हुई देरी
उस दिन शाम 4 बजे सरदार वल्लभ भाई पटेल अपनी बेटी मणिबेन के साथ गांधी जी से मिलने पहुंचे। गांधी जी से वह शाम 5 बजे तक विचार विमर्श करते रहें। जबकि वह समय गांधी जी की प्रर्थना करने का था। पटेल से बात करते-करते गांधी जी अपना चरखा चलते रहे और अपनी सहयोगी आभा द्वारा परोसे शाम का खाना खाते रहे।
आभा को ये बात पता थी की गांधी जी को प्रार्थना सभा में देरी से पहुंचना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। वह ऐसा होता देख परेशान हुई लेकिन चाहकर भी कुछ न कर सकीं। उनको पटेल को टोकने का साहस ही नहीं हुआ, आखिर होता भी कैसे वह भारत के लौह पुरुष थे। उनकी हिम्मत ये भी नहीं थी वह गांधी जी को ये याद दिलाए कि उन्हें प्रार्थना सभा के लिए देरी हो रही है।
आखिर में मणिबेन ने बीच में दखल दिया और गांधी जी जिस वक्त प्रार्थना सभा में जाने के लिए उठे उस समय पांच बजकर 10 मिनट हो रखे थे। ऐसे में गांधी जी ने अपनी चप्पल तुरंत पहनी और अपना बायां हाथ मनु और दांया हाथ आभा के कंधे पर डालकर प्रार्थना सभी के लिए निकल गए। रास्ते में उन्होंने आभा से हंसी मजाक भी की।
गोलियों से छलनी हुआ गांधी जी का शरीर
आभा ने गांधी जी से कहा,’ आज आपकी घड़ी सोच रही होगी कि उसको कैसे नजरअंदाज किया जा रहा है।’ इसका जवाब देते हुए गांधी जी ने कहा,’ मैं अपनी घड़ी की तरफ क्यों देखूं। आज तुम्हारी वजह से मुझे 10 मिनट की देर हो गई। नर्स का ये कर्तव्य होता है कि वह अपना काम करे चाहे वहां ईश्वर ही क्यों न मौजूद हो। प्रार्थना सभा में किसी भी तरह की देरी होने से मुझे चिढ़ होती है।’ इस तरह बातचीत करते हुए गांधी जी प्रार्थना सभा वाली जगह पर जा पहुंचे।
गांधी जी ने लोगों के अभिवादन के जवाब में हाथ जोड़ लिए। उसी वक्त बाई ओर से नाथूराम गोडसे उनकी तरफ झुका। उस वक्त मनु को लगा कि वह गांधी जी के पैर छुना चाहता है कि इसलिए ऐसा कर रहा है। इस पर आभा ने चिढ़कर कहा उन्हें पहले ही बहुत देर हो चुकी हैं। उनका रास्त मत रोको, लेकिन तभी नाथूराम गोडसे ने मनु को धक्का दिया और पिस्टल निकालते ही एक के बाद एक गोलियां उनके सीने और पेट में डाल दी। मरते वक्त उनके मुंह से जो आखिरी शब्द निकला वो था- हे राम।
नाथूराम गोडसे के दिमाग में चल रही थी ये बात
नाथूराम गोडसे ने अपने भाई को बताया था कि गांधी जी के पास दो लड़कियों को देखकर वह कुछ परेशान हो गए थे। उन्होंने अपनी बात में बताया था,’ मैंने गोली चलाने के बाद पिस्टल को छोड़ा नहीं बल्कि कसकर अपने हाथ को ऊपर की तरफ उठाए रखा था और पुलिस… पुलिस चिल्लाने लगा था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं चाहता कि कोई ये देखे कि यह योजना बनाकर और जानबूझकर किए जाने वाला काम था। साथ ही मैं ये भी नहीं चाहता था कि कोई ऐसा कहे कि मैं ने घटनास्थल से भागने या पिस्टल को फेंकने की कोशिश भी की थी। लेकिन उस वक्त मानों जैसे सभी चीजे रुक सी गई और एक मिनट तक मेरे आसपास कोई भी इंसान नहीं भटका।’
गांधी जी को मारने के बाद जब नाथूराम गोडसे को पकड़ गया तो उस वक्त वहां मौजूद माली रघुनाथ ने नाथूराम के सिर पर अपने खुरपे से वार किया, जिसके चलते उनके सिर से खून निकलना शुरु हो गया था। इस बात का खंडन गोपाल गोडसे ने अपनी किताब ‘गांधी वध और मैं’ में किया है।
दुनिया भर में दौड़ी शोक की लहर
गांधी जी की मौत की खबर सुनते ही दुनिया भर में शोक की लहर दौड़ पड़ी। दक्षिण अफ्रीका से गांधी जी के धुर विरोधी फील़्ड मार्शल जैन ने कहा,’ हमारे बीच का राजकुमार नहीं रहा।’ वहीं, किंग जॉर्ज षष्टम ने संदेश दिया,’ गांधी की मौत से भारत ही नहीं बल्कि पूरे मानवता का नुकसान हुआ है। लेकिन उस वक्त सबसे भावुक संदेश गांधी जी के लिए पाकिस्तान से मियां इफ़्तिखारुद्दीन का आया। उन्होंने कहा,’ पिछले महीनों, हममे से हर एक जिसने मासूम मर्दों, औरतों और बच्चों के खिलाफ अपने हाथ उठाए हैं या ऐसा हरकत का साथ दिया है, गांधी की मौत का हिस्सेदार है।वहीं , मोहम्मद अल जिन्ना ने अपने संदेश में कहा,’ वह हिंदू समुदाय के महानत लोगों में से एक आते थे।’
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