आज यानी 17 अगस्त को पूरे भारत में पारसी समुदाय के लिए अपना नया साल (Parsi New Year 2019) बेहद ही धूमधाम से मना रहे हैं। पारसी नव वर्ष को नवरोज़ या जमशेदी नवरोज के नाम से भी जाना जाता है। हर साल नए ईरानी कैलेंडर (Iranian Calendar) की शुरुआत के तौर पर इस दिन को मनाया जाता है। जमशेद नवरोज़ का नाम फारस के राजा जमशेद से लिया गया है, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पारसी कैलेंडर में सौर गणना शुरू की थी। फारसी में ‘नव’ का मतलब नया है, और ‘रोज’ का मतलब है दिन और इन्हें साथ में जोड़ जाए तो ये ‘नए दिन’ बन जाता है। यानी आज के दिन पारसी लोग बेहद ही धूमधाम के साथ नया साल मना रहे हैं।
जमशेदी नवरोज (Jamshedi Navroz) गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में एक रिलिजन नेशनल होलीडे है, जोकि पारसियों की एक महत्वपूर्ण आबादी वाले राज्यों में से आते हैं। पारसियों को ज़ोरोस्ट्रियन के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि वे ज़ोरोस्ट्रियनवाद का पालन करते हैं, जो प्राचीन ईरान में पैगंबर ज़रथुस्त्र या ज़ोरोस्टर (ग्रीक) द्वारा स्थापित सबसे पुराने ज्ञात एकेश्वरवादी धर्मों में से एक है,जो पूर्व-इस्लाम युग में लगभग 3500 साल पहले 650 ई.पू में पाया गया था। 7 वीं शताब्दी में इस्लामी सेनाओं के आक्रमण के बाद, जोरास्ट्रियन फारस भाग गए और मुख्य रूप से भारत में रहने लगे।
फारसी नव वर्ष ज्यादातर 17 अगस्त को मनाया जाता है, जो कि वसंत विषुव के मूल दिन से लगभग 150-200 दिन बाद सेलिब्रेट होता है। भारत में पारसी समुदाय के लोग नवरोज शहंशाही पंचांग के मुताबिक इसे मनाते हैं। इस दिन पारसी परिवार के लोग नए कपड़े पहनकर अपने उपासना स्थल फायर टेंपल जाते है और एक दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते हैं। और वह बेहद ही जोर-शोर से अपना ये तैयार मनाते हैं।