पेट्रोल-डीजल की महंगाई को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच जंग छिड़ गई है। महंगाई की मार से जनता का हाल बेहाल है। ऊपर से सरकार और विपक्ष हाय तौबा मचाए हुए हैं। विपक्ष इसी मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है। भारत बंद का बुलाकर इस मुद्दे को खूब उछाल रहा है।
इसी बीच बीजेपी ने कांग्रेस सरकार के दौरान कच्चे तेलों के रेट का खुलासा करते हुए पोस्टर जारी किया है, जो कि सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। लेकिन इस पोस्टर के जरिए बीजेपी खुद ही घिर गई है. पेट्रोल-डीजल की कीमत पर मचे घमासान के बीच असली सच छुपता दिख रहा है।
आइए साधारण शब्दों में पेट्रोल-डीजल की कीमत की सच्चाई को जानते हैं। यह जानते हैं कि पेट्रोल-डीजल और रुपये-डॉलर के खेल में सरकार कैसे फेल हुई और इस बीच कैसे जनता का तेल निकलता रहा। सबसे पहले आज से 10 साल पहले साल 2008 के आंकड़ों पर नजर डालते हैं।
आर्थिक मन्दी का दौर…
उस वक्त आर्थिक मन्दी का दौर चल रहा था, जब डॉलर का मूल्य बहुत ही अस्थिर था। 2008 में हमारा रुपया डॉलर के प्रति आज के मुकाबले काफी मजबूत था। उस समय 1 डॉलर करीब 42 रुपए के बराबर था। डॉलर गिरने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत रिकॉर्ड स्तर की ऊंचाई पर पहुंच गई थी।
उस समय मई 2008 में कच्चे तेल की कीमत करीब 126 डॉलर प्रति बैरल थी। इसको रुपयों के हिसाब से देखे तो मई 2008 में 1 बैरल की कीमत को समझते हैं। यहां 126 डॉलर के साथ 42 रुपए को गुणा करते हैं तो कुल आउटपुट निकलकर आता है 5362 रुपये के करीब, यानी कि उस वक्त 5362 चुकानी पड़ रही थी।
इसी कारण देश में पेट्रोल की कीमत 45.56 प्रति लीटर और डीजल की कीमत 31.86/लीटर (दिल्ली ) में थी। अब बात करते हैं वर्तमान समय की- आज रुपये की कीमत डॉलर की अपेक्षा अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। यानी कि आज 1 डॉलर 72 रुपये के बराबर है।
7 सितंबर, 2018 को इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत 67.75 प्रति बैरल रही। रुपये के हिसाब से देखा जाये तो एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 4901 रुपए पड़ रही है। अब खुद चाहें तो 67.75 के साथ 72.34 को गुणा करके आंकड़ा निकाल सकते हैं।
मतलब बीजेपी सरकार को वर्तमान में 1 बैरल कच्चे तेल के लिए 4901.03 देना पड़ रहा है। जबकि 2008 में 5362 चुकानी पड़ रही थी। वर्तमान समय में हमारे देश में पेट्रोल की कीमत- 80. 87 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत-72. 83 रुपये प्रति लीटर हैं जबकि अन्य राज्यों में भी इनकी कीमत अलग-अलग है।
इनके आंकड़ों के माधयम से हम आपको बताना चाहते हैं की वर्तमान समय में सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय बाजार में दी जाने वाली कच्चे तेल की कीमत आज से 10 साल पहले की अपेक्षा कम है। लेकिन वर्त्तमान समय में एक आम आदमी को पेट्रोल-डीजल के लिए 10 साल पहले की अपेक्षा दोगुनी कीमत चुकानी पड़ रही है। सीधे शब्दों में कहें तो आज से 10 साल पहले महंगा खरीद के बावजूद आज से लगभग आधी कीमतों में दे रही थी।
सस्ता खरीद के बावजूद…
आज सरकार सस्ता खरीद के बावजूद दोगुनी कीमत पर दे रही है। आखिर सरकार के पास ऐसी क्या मज़बूरी आ गई की सरकार को चाहते या न चाहते हुए आम आदमी के कंधों पर ऐसा बोझ डालना पड़ा। बता दें कि साल 2017 से पहले पेट्रोल-डीजल के दाम सरकार तय करती थी, कच्चे तेल और डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत को ध्यान में रख कर सरकार उसके ऊपर एक्साइज ड्यूटी लगाती थी। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय बाजार के मानक पर दाम तय होते हैं।
गौरतलब है कि सरकार की कमाई सबसे बड़ा स्रोत पेट्रोलियम है। जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो पेट्रोलियम पदार्थो से सरकार को मिलने वाला रेवेन्यू करीब 88,600 करोड़ रुपये थे। लेकिन आज ये बढ़कर 257856 करोड़ रुपये हो गई है। आज के समय में सरकार की पेट्रोलियम से होने वाली कमाई लगभग दोगुनी हो गई है।
इसके लिए सरकार ने पिछले 4 वर्षों में पेट्रोलियम पर लगाने वाले आयत कर में करीब 400 फीसदी और इसपर लगाने वाले वैट में 200 फीसदी बढोतरी की गई है, इससे सरकार का खजाना तो भर रहा है, लेकिन आम आदमी की हालत ख़राब हो रही है। महंगाई की चक्की में जनता पिसी जा रही है। सरकार सुनहरे भविष्य के सपने दिखाए जा रही है।
Story By- Ratnesh Mishra